हरीश गुप्ता का ब्लॉग: कोरोना के सामने प्रभावशाली वर्ग भी असहाय, लुटियंस की दिल्ली के उच्च वर्ग का भी बुरा हाल
By हरीश गुप्ता | Published: April 22, 2021 01:18 PM2021-04-22T13:18:05+5:302021-04-22T13:18:05+5:30
Coronavirus: कोरोना महामारी ने क्या आम और क्या खास, सभी का हाल बेहाल कर दिया है. प्रभावशाली वर्ग के लोगों को भी अस्पताल में बेड नहीं मिल पा रहा है.
पहली बार लुटियंस की दिल्ली के उच्च वर्ग के लोग कोरोना की दूसरी भयावह लहर की चपेट में आए हैं. और उन्हें मालूम नहीं है कि जाएं कहां. उन्हें विनम्रता से बताया जा रहा है कि एम्स में कमरे उपलब्ध नहीं हैं. 300 से अधिक बेड वाले अत्याधुनिक ट्रामा सेंटर को 5 अप्रैल से एक बार फिर कोविड अस्पताल में बदल दिया गया है और यह अपनी क्षमता भर पैक हो चुका है.
एक केंद्रीय राज्य मंत्री ने अपने किसी नजदीकी व्यक्ति को भर्ती कराने की कोशिश की. लेकिन दिल्ली में उनकी किस्मत साथ नहीं दे पाई. राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा को बताया गया कि कोई वीआईपी कमरा उपलब्ध नहीं है. उन्होंने दिल्ली-फरीदाबाद सीमा के पास अपोलो अस्पताल जाने का विकल्प चुना.
भाजपा के एक सांसद को एम्स में कमरा नहीं मिलने पर इतना गुस्सा आया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिख दिया. लेकिन इससे भी मदद नहीं मिली. नीति आयोग के सीईओ, जो देश के शक्तिशाली नौकरशाह हैं, एम्स में किसी को भर्ती कराना चाहते थे. उनको बताया गया कि हरियाणा के झज्जर में एक बेड की व्यवस्था की जा सकती है.
एक पूर्व गृह सचिव को एक बड़े निजी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में अपने दामाद के लिए इस शर्त पर बेड मिल सका कि उसे दूसरे मरीज के साथ साझा करना होगा. स्वर्गीय अरुण जेटली की पत्नी ने मेदांता (गुड़गांव) में कोविड का इलाज कराना पसंद किया. यहां तक कि उनकी बेटी व दामाद भी होम आइसोलेशन में ही स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं.
संपर्क सूत्र किसी काम नहीं आ रहे हैं. वास्तव में यह देश की राजधानी में हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति है, जहां कोई भी फोन रिसीव करने का इच्छुक नहीं है.
एंटी क्लाइमेक्स
जनवरी के अंत में उत्सव जैसा माहौल था, जब भाजपा ने घोषणा की कि भारत ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई जीत ली है. यूके, यूरोप और अमेरिका की ओर उंगली उठाई जा रही थी कि वे कोविड को नियंत्रित करने में विफल रहे हैं, जबकि भारत ने अपनी धरती से घातक वायरस का खात्मा कर दिया.
उत्साहित भाजपा ने तो प्रधानमंत्री को धन्यवाद देते हुए एक प्रस्ताव पारित कर दिया कि उन्होंने भारत के मुकुट में एक और सुनहरा पंख जोड़ा है.
डीआरडीओ ने अपना एक हजार बेड वाला अस्पताल बंद कर दिया तथा एम्स ने भी अपने झज्जर कोविड अस्पताल को बंद कर दिया और ऐसा लगा कि कोरोना अब भारत में कभी लौट कर नहीं आएगा.
राजनीतिक वर्ग विश्वास से इतना परिपूर्ण था कि लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य जो अलग-अलग कक्षों में बैठ रहे थे, उन्हें एक सुबह कहा गया कि वे अपने संबंधित कक्षों से कार्य करेंगे. ‘कोविड एप्रोप्रिएट बिहैवियर’ (सीएबी) इसका पहला शिकार हुआ. न तो लोकसेवक और न जनता सीएबी का अनुसरण कर रही थी.
हालत ऐसी हो गई थी कि जब प्रधानमंत्री ने 15 जनवरी को तीन करोड़ हेल्थ एवं फ्रंट लाइन वर्करों से लिए टीकाकरण अभियान शुरू किया तो कोई टीका लगवाने को इच्छुक नहीं था. कानून बनाने वाले सीएबी का पालन नहीं करने के लिए जनता को भले ही दोषी ठहराएं लेकिन कोविड एप्रोप्रिएट गवर्नेंस (सीएजी) कहां था?
सीएजी का अभाव हर जगह देखा गया, चाहे वह केंद्र में हो या राज्यों में. पुलिस ने मास्क नहीं पहनने वालों को दंडित करना बंद कर दिया.
अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कई वायरोलॉजिस्ट्स और एपिडेमियोलॉजिस्ट्स ने नियमित तौर पर सरकार को आगाह किया था कि वे सीएजी को दरकिनार न करें क्योंकि यूके वेरियंट जल्दी ही भारत के दरवाजे पर दस्तक दे सकता है.
टास्क फोर्स, जिसे पिछले साल फरवरी में प्रधानमंत्री द्वारा विशेषज्ञों को शामिल कर, कोरोना से लड़ने के लिए बनाया गया था, को दूसरी लहर आने की आशंका थी. लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि आत्मतुष्टि का एक वातावरण सा बन गया और हर कोई उसमें डूब गया.
यह सब विधानसभा चुनावों के लिए किया गया क्योंकि भाजपा प. बंगाल जीतने के लिए दृढ़ थी. ‘कड़ाई भी, दवाई भी’ के नारे को कहीं गहरे दफना दिया गया. लेकिन चुनाव आयोग क्यों रैलियों और चुनाव अभियानों के लिए सीएजी को लागू करने में विफल रहा? आज तक इसका कोई जवाब नहीं मिला है. और दो अप्रैल से जब दूसरी लहर का विस्फोट शुरू हुआ तो सारी सीमाएं टूटती जा रही हैं.
कोरोना टीकों की मंजूरी
जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार से पश्चिमी देशों और जापान में इस्तेमाल होने वाले टीकों को फास्ट ट्रैक आपातकालीन मंजूरी देने के लिए कहा तो भाजपा ने दो केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारा. रविशंकर प्रसाद और स्मृति ईरानी ने उनका मजाक उड़ाते हुए कहा कि वे अब पूर्णकालिक ‘लॉबीइस्ट’ बन गए हैं.
उन्होंने ट्वीट्स की एक श्रृंखला में आरोप लगाया कि पहले उन्होंने लड़ाकू विमान कंपनियों की पैरवी की और अब विदेशी टीकों के लिए मनमानी मंजूरी की मांग कर वे फार्मा कंपनियों की पैरवी कर रहे हैं.
मंत्रियों को लेकिन कुछ घंटों के भीतर ही लीपापोती करनी पड़ी जब प्रधानमंत्री ने कोविड-19 के खिलाफ पात्र विदेशी टीकों (रूस में निर्मित स्पुतनिक वी, फाइजर, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन और अन्य) को आवेदन करने पर केवल सौ व्यक्तियों पर परीक्षण कर एक हफ्ते के भीतर आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दिए जाने की बात कही.