हैप्पीनेस इंडेक्स : आखिर क्यों ‘खुश’ नहीं रह पाते भारतीय? पढ़ें शशांक द्विवेदी का ब्लॉग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 20, 2020 12:05 PM2020-05-20T12:05:35+5:302020-05-20T12:05:35+5:30

रिपोर्ट में शुरू के 20 स्थानों में से एक पर भी एशिया के किसी देश को जगह नहीं मिली है. पिछले साल 140वें स्थान पर रहा भारत इस बार चार पायदान और फिसल कर 144वें नंबर पर पहुंच गया है. पाकिस्तान हमसे कहीं बेहतर 66वें नंबर पर रहा. चीन 94वें, बांग्लादेश 107वें और नेपाल 92वें स्थान पर आंके गए.

Happiness Index: Why do Indians not be 'happy'? Read Shashank Dwivedi blog | हैप्पीनेस इंडेक्स : आखिर क्यों ‘खुश’ नहीं रह पाते भारतीय? पढ़ें शशांक द्विवेदी का ब्लॉग

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

पिछले दिनों दुनिया भर में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच संयुक्त राष्ट्र ने ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स 2020’ जारी किया जिसमें फिनलैंड ने दुनिया के सबसे खुशहाल देशों की सूची में लगातार तीसरी बार पहला स्थान हासिल किया है. वहीं चार पायदान फिसलकर भारत 144वें स्थान पर पहुंच गया है. 156 देशों की सूची में अफगानिस्तान सबसे कम खुशहाल देश है. रिपोर्ट के मुताबिक, इन 156 देशों की खुशहाली मापने के लिए 6 मानकों पर सवाल तैयार किए गए थे. इनमें संबंधित देश के प्रति व्यक्ति की जीडीपी, सामाजिक सहयोग, उदारता और भ्रष्टाचार, सामाजिक स्वतंत्नता, स्वस्थ जीवन के जवाब के आधार पर रैंकिंग की गई है .

संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क द्वारा जारी इस रिपोर्ट के लिए साल 2019 में डाटा जुटाया गया था. इसलिए इस साल दुनियाभर में कोरोना वायरस की फैली दहशत का असर इस रिपोर्ट में नहीं देखा जा सकता. वार्षिक विश्व खुशहाली रिपोर्ट, जो दुनिया के 156 देशों को इस आधार पर रैंक करती है कि उसके नागरिक खुद को कितना खुश महसूस करते हैं, में इस बात पर भी गौर किया गया है कि दुनिया भर में  चिंता, उदासी और क्रोध सहित नकारात्मक भावनाओं में वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट में शुरू के 20 स्थानों में से एक पर भी एशिया के किसी देश को जगह नहीं मिली है. पिछले साल 140वें स्थान पर रहा भारत इस बार चार पायदान और फिसल कर 144वें नंबर पर पहुंच गया है. पाकिस्तान हमसे कहीं बेहतर 66वें नंबर पर रहा. चीन 94वें, बांग्लादेश 107वें और नेपाल 92वें स्थान पर आंके गए.

अधिकांश भारतीयों के प्रसन्न नहीं होने की तीन प्रमुख वजहें हैं. पहली यह कि सरकार के स्तर पर उनकी बुनियादी जरूरतें मसलन शिक्षा, चिकित्सा पूरी नहीं हो पा रही हैं, देश की तमाम आर्थिक प्रगति के बाद समाज के विभिन्न वर्गो में आर्थिक विषमता तेजी से बढ़ी है. यानी लखपति करोड़पति हो गए और करोड़पति अरबपति बन गए. लेकिन एकदम साधारण आदमी अभी भी कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है मसलन बेरोजगारी,  महंगाई, पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम, रुपये का अवमूल्यन,  भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध, शिक्षा, चिकित्सा ऐसे अनेक ज्वलंत मुद्दे हैं जिनका सामना करते हुए व्यक्ति निश्चित ही तनाव में आया है, उसकी खुशियां कम हुई हैं, जीवन में एक अंधेरा व्याप्त हुआ है. ये ऐसे मुद्दे हैं जिनका सामना करते हुए व्यक्ति की खुशहाली में लगातार कमी आई है. समाज के निर्धन वर्ग को उत्पादन प्रक्रिया का हिस्सा बनाने की समुचित कोशिश नहीं हो रही है. यह वर्ग भुखमरी से तो उबर रहा है मगर शिक्षा, स्वास्थ्य उसकी पहुंच से अभी भी बाहर हैं.

खुशहाल न होने की दूसरी वजह ‘आत्मिक’ है. देश के अधिकांश साधनसंपन्न लोग भी दुखी हैं. आर्थिक रूप से मजबूत होते हुए भी इनके जीवन में प्रसन्नता नहीं है, इससे स्पष्ट रूप से समझ में आता है कि पैसा खुशहाली का आधार नहीं हो सकता. असल में प्रसन्नता और खुशहाली भीतर से आती है, जब हमारे अंदर सब कुछ ‘लेने’ के भाव से ज्यादा परिवार या समाज को देने का भाव आएगा तभी हम प्रसन्न हो सकते हैं. तीसरी वजह यह है कि हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति ने भी डिग्री लेने और साधनसंपन्नता को ही अपना आधार बनाया है. ऐसे में दिल्ली सरकार द्वारा बच्चों को दी जाने वाली हैप्पीनेस क्लासेस एक बड़ा और सकारात्मक कदम है जिसे समूचे देश में लागू किया जाना चाहिए. मोबाइल, इंटरनेट और तकनीक के मायाजाल ने भी हमारी खुशी को बाधित किया है. लोग उसी में उलझकर रह गए हैं, वो ‘जरूरत’ से ज्यादा एक ‘लत’ बन चुकी है इसलिए तकनीक का भी उतना ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए जिससे मौलिकता और प्रसन्नता प्रभावित न हो. कोरोना वायरस ने एक बार फिर समूची मानवता को यह संदेश दिया है कि अभी भी समय है चेत जाइए, आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण और जैव विविधता का ध्यान रखिए, नहीं तो सब कुछ नष्ट होने में समय नहीं लगेगा.

Web Title: Happiness Index: Why do Indians not be 'happy'? Read Shashank Dwivedi blog

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