अल्पकालिक समाधान से बचना चाहिए सरकार को, कपिल सिब्बल का ब्लॉग

By कपील सिब्बल | Published: October 30, 2020 02:20 PM2020-10-30T14:20:12+5:302020-10-30T14:20:12+5:30

दिल दहला देने वाली निर्भया की घटना के सरलीकृत समाधान के रूप में कानून में संशोधन कर मौत की सजा का प्रावधान किया गया और उम्मीद की गई कि यह एक निवारक के रूप में काम करेगा. फिर भी बलात्कार की घटनाएं कम नहीं हुई हैं.

government of india women child Rape molestation avoid short term solution Kapil Sibal's blog | अल्पकालिक समाधान से बचना चाहिए सरकार को, कपिल सिब्बल का ब्लॉग

कालाधन, आतंकवाद और नकली मुद्रा को लक्षित कर की गई थी, पीएम के अल्पकालिक समाधान की एक ऐतिहासिक गलती थी.

Highlightsबलात्कार और छेड़छाड़ की भयावह घटनाओं को विभिन्न तरीकों से और विभिन्न स्तरों पर हल किया जाना आवश्यक है.अपराधी सबूत नष्ट करने के लिए पीड़ित को खत्म करने या यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि वह सबूत देने की स्थिति में नहीं हो.जाति और सामाजिक रिश्तों की गतिशीलता को पहचानने और लोगों की मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है.

भारत में राजनीति की विडंबना यह है कि सरकारें कुछ ऐसे अल्पकालिक समाधान प्रदान करती हैं जिनसे समस्या दूर होने के बजाय और अधिक समस्याएं पैदा होती हैं.

विपक्ष की प्रतिक्रिया भी अक्सर ज्यादा सोची-समझी नहीं होती. जो निर्णय लिए जाते हैं वह व्यावहारिक और प्रभावी समाधान प्रदान करने से दूर होते हैं, विशेष रूप से अत्यधिक जटिल मुद्दों के संदर्भ में. भारत में राजनीतिक वर्ग विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता के मामले में पिछड़ा हुआ है. नियम-कानूनों की दलदल में नौकरशाही मजे करती है.

परिणामस्वरूप, लिए जाने वाले निर्णय हमारी सामाजिक संरचनाओं की गतिशीलता और जातिगत समीकरणों की जटिलता को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करते हैं, जो नतीजों को खतरे में डालते हैं. इसके अलावा, सत्ता में रहने वाले लोग सुर्खियों में आने की इच्छा से सार्वजनिक घोषणा करने को लालायित होते हैं लेकिन अक्सर वे व्यर्थ होती हैं.

महिलाओं और बालिकाओं के साथ बलात्कार और छेड़छाड़ की भयावह घटनाओं को विभिन्न तरीकों से और विभिन्न स्तरों पर हल किया जाना आवश्यक है. दिल दहला देने वाली निर्भया की घटना के सरलीकृत समाधान के रूप में कानून में संशोधन कर मौत की सजा का प्रावधान किया गया और उम्मीद की गई कि यह एक निवारक के रूप में काम करेगा. फिर भी बलात्कार की घटनाएं कम नहीं हुई हैं.

अब अपराधी सबूत नष्ट करने के लिए पीड़ित को खत्म करने या यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि वह सबूत देने की स्थिति में नहीं हो. सिर्फ कानून में संशोधन कोई समाधान नहीं है. हालांकि कठोर दंड के प्रावधानों को लागू करने में जनता का समर्थन मिलता है, लेकिन हमें जाति और सामाजिक रिश्तों की गतिशीलता को पहचानने और लोगों की मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है.

एक समानांतर सामाजिक सुधार की जरूरत है, जो सब तक पहुंच सके. यह तभी संभव है जब हम शोध के माध्यम से सामाजिक संबंधों की गतिशीलता का विेषण करें और सोचें कि उसके संदर्भ में क्या करना चाहिए. 8 नवंबर 2016 को 500 रु. और 1000 रु. के पुराने करेंसी नोटों की नोटबंदी, जो प्रकट रूप से कालाधन, आतंकवाद और नकली मुद्रा को लक्षित कर की गई थी, पीएम के अल्पकालिक समाधान की एक ऐतिहासिक गलती थी.

उन्होंने व्यवासायिक गतिविधि और गरीबों पर इसके प्रभाव, दोनों के कारण होने वाली अव्यवस्थाओं की अवहेलना की. इस फैसले से कालेधन, आतंकवादी हमलों और नकली मुद्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इसने शायद ही अमीरों को प्रभावित किया हो, जो अपने बेहिसाब धन के अवैध रूप से आदान-प्रदान को सुरक्षित रखने के लिए सिस्टम का इस्तेमाल करते थे. यह एक घोटाला है जिसकी जांच की आवश्यकता है. हमारी अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट की शुरुआत के लिए यही निर्णय जिम्मेदार है.

करों की बहुलता के स्थान पर गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लाने के लिए संविधान में संशोधन करने का निर्णय एक सही पहल थी, लेकिन यह भी एक अल्पकालिक समाधान था. अर्थव्यवस्था पर इसका नकारात्मक प्रभाव आज भी महसूस किया जा रहा है. इसका उद्देश्य कर संरचना को सरल बनाना था, लेकिन इसके बदले हमें जो मिला वह दरों की बहुलता थी.

परिणाम जटिल था, जिसका हितधारक, विशेष रूप से छोटे व्यापारी और थोक व खुदरा विक्रेता सामना नहीं कर सके, क्योंकि उनके पास अत्यधिक जटिल नियमों और विनियमों की आवश्यकताओं का पालन करने के लिए न तो वित्तीय संसाधन थे और न ही तकनीकी सहायता प्रणाली. राज्यों को क्षतिपूर्ति के लिए किए गए अनुमान अवास्तविक थे. इसका नतीजा यह है कि जीएसटी परिषद आर्थिक मंदी के कारण न तो संग्रह में आई कमी का संतोषजनक समाधान दे पा रही है और न ही राज्यों को पर्याप्त मुआवजा दे पा रही है.

नीतिगत निर्णय जब लिया जाता है तो घटना के अनुमानों में वैकल्पिक रास्ते की परिकल्पना करनी चाहिए. कृषि कानूनों में संशोधन, अनुबंध की खेती को वैध बनाने और एपीएमसी के बाहर लेनदेन की अनुमति देने के हाल के कानून में संशोधनों के परिणामस्वरूप शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा के साथ अपने 24 साल पुराने गठबंधन को तोड़ दिया.

24 मार्च 2020 को देशव्यापी तालाबंदी की घोषणा जैसा अविवेकी फैसला देश में पहले कभी नहीं देखा गया था, जिससे बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों को अपने घरों की ओर लौटना पड़ा. इस दौरान उन्हें भारी परेशानी भेलनी पड़ी और कुछ ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया.  

हमारे राजनीतिक वर्ग को यह महसूस करना चाहिए कि चुनावी सफलता को ध्यान में रखकर कदम उठाने के बजाय उसका मौलिक कर्तव्य सभी स्तरों पर न्याय और विचारशील समाधान प्रदान करना है. अल्पकालिक समाधान केवल हमारी राजनीतिक और सामाजिक संरचनाओं को अस्थिर ही करेंगे जिससे हमारे संविधान में निहित मूल्यों का ह्रास होगा. राजनीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राज्य को उन मूल मूल्यों का एहसास हो जो हमारी संवैधानिक संरचना के आधार हैं. हमें एक मानवीय चेहरे के साथ शासन आवश्यकता है.

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