गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः साहित्य का समय और सामाजिकता से जुड़ाव

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 13, 2019 10:30 AM2019-02-13T10:30:23+5:302019-02-13T10:30:23+5:30

भारतीय संदर्भ में यह सवाल कई कई तरह से उठता रहता है कि अपनी परंपरा को वर्तमान या समकालीन प्रवृत्तियों से किस तरह जोड़ा जाए. क्या उसे ज्यों का त्यों लिया जाए? सुधारा जाए?

Girishwar Mishra's Blog: Time for Literature and Socialism Linkage | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः साहित्य का समय और सामाजिकता से जुड़ाव

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः साहित्य का समय और सामाजिकता से जुड़ाव

इक्कीसवीं सदी सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की दृष्टि से युगांतर का अवसर प्रस्तुत कर रही है. त्वरा, सुगमता और व्यापकता की दृष्टि से अंतर्जाल (इंटरनेट) ने एक अभूतपूर्व और विलक्षण संचार शक्ति से हमें संपन्न कर दिया है. इस अवधि में ज्ञान, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, धर्म आदि को लेकर सोच-विचार में तीव्र विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई. इस बीच हम वैश्विक या भूमंडलीकरण की प्रक्रियाओं के दौर में पहुंच गए हैं.

अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विविध प्रकार के विनिमयों की शुरुआत हो चुकी है. उनके संजाल या नेटवर्क में शामिल होना सबकी नियति हो रही है. राज शक्ति के संतुलन बन बिगड़ रहे हैं. इन सबने जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श किया है. साथ ही परिवर्तन कुछ ऐसी तेजी से होने शुरू हुए कि उनसे काल की गति तीव्र प्रतीत होने लगी. आज साहित्य इन सभी परिवर्तनों की छाया के बीच जन्म लेता, पलता और पनपता दिखता है परंतु उसका मूल स्थानीयता में ही है. 

भारतीय संदर्भ में यह सवाल कई कई तरह से उठता रहता है कि अपनी परंपरा को वर्तमान या समकालीन प्रवृत्तियों से किस तरह जोड़ा जाए. क्या उसे ज्यों का त्यों लिया जाए? सुधारा जाए? या फिर पश्चिमी विचारधारा के अधीन हो लिया जाए? पश्चिम की दुनिया में परंपरा के प्रति तीव्र असंतोष के अपने ऐतिहासिक कारण हैं परंतु भारत की स्थिति भिन्न है.

अंग्रेजी राज एक विजयी संस्कृति को व्यक्त करता था. अंग्रेजी शिक्षा ने हमारे मनोभाव को बदला, हम पिछड़े देश, विकासशील देश और अब संभावनाओं के देश के रूप में अपने को देख रहे हैं. पश्चिमी चिंतन हमें प्रभावित करता रहा है.  पश्चिमी दृष्टि में ‘आधुनिक होने को’ भविष्य का राजमार्ग माना जा रहा था. आज आर्थिक व्यवस्था सांस्कृतिक भेदों को लीलती जा रही है.  

साहित्य समय में सृजनात्मक हस्तक्षेप होता है. वह समाज या उसके यथार्थ की कोरी प्रतिलिपि नहीं होता. अपनी कल्पना की सहायता से कवि या लेखक  वर्तमान से परे जाकर नई दिशाओं की पहचान करता है. साहित्य इन चिरंतन सरोकारों को उद्भासित करता है. अपने समय का अतिक्र मण कर अच्छा साहित्य कालजयी हो उठता है. उसकी चेतना समस्त मनुष्य की चेतना के साथ तादात्म्य हो जाती है.

साहित्य की उद्दाम जिजीविषा उत्कट रूप से समावेशी होती है और सबको समेटते हुए चलती है. गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए साहित्य का कोई विकल्प नहीं है. जीवनाभिमुख होने के कारण साहित्य अनेक तरह के स्पंदनों को संभव करता है जो ‘अपूर्व’ कहे जाते हैं. वही मौलिक होता है, प्रिय होता है और कल्याणकारी होता है. चूंकि मनुष्य की चेतना में नवीनता का दुर्निवार आग्रह होता है और साहित्य इसके लिए उर्वर क्षेत्न है, इसलिए साहित्य की संभावना सदैव बनी रहेगी.

Web Title: Girishwar Mishra's Blog: Time for Literature and Socialism Linkage

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