गिरिश्वर मिश्र का ब्लॉग: सामाजिक दूरी और मानसिक स्वास्थ्य
By गिरीश्वर मिश्र | Published: April 10, 2020 03:07 PM2020-04-10T15:07:21+5:302020-04-10T15:07:21+5:30
आज सभी लोग जीवन के अस्तित्व की चिंता से ग्रस्त हो रहे हैं. सब के मन में एक ही प्रश्न और आशंका है कि कोरोना की महामारी से कैसे उबरें. कोरोना का विषाणु देश, धर्म, जाति या भाषा की चिंता किए बगैर राजा और रंक सभी को अपने प्रभाव में ले रहा है. सामान्य जीवन का सारा कारोबार ठप पड़ा है और आम जनों में अविश्वास, चिंता व भय का वातावरण बन रहा है. इस सर्वव्यापी आपदा से लड़ने में सामूहिक संकल्प की विशेष भूमिका है. इसी भाव से प्रधानमंत्नी ने अंधकार के विरुद्ध दीपक के प्रकाश द्वारा प्रतिरोधी क्षमता का राष्ट्रव्यापी आह्वान किया जिसे पूरे देश का समर्थन मिला. इस महामारी को रोकने के लिए व्यापक कार्रवाई की जरूरत है.
कोविड-19 विषाणु ने आम आदमी के दैनंदिन जीवन को झकझोर दिया है. सामाजिक संपर्क पर पाबंदी और अलगाव का अभ्यास करना ताकि संक्रमण न फैले, आज की आवश्यकता हो गई है. इसके लिए देशबंदी के दौर में जो लगाम कसी गई है उससे उन तमाम कामों को करने में भी विघ्न पहुंचने लगे जिन पर हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य निर्भर करता है. अकेलापन और अलगाव क्षय रोग, अवसाद, मद्यपान और कई मानसिक बीमारियों का भी कारण बन जाता है. अलगाव स्वयं में हमारे प्रतिरक्षा तंत्र के लिए नुकसानदेह होता है. दूसरों से जुड़े रहना हृदय और श्वास आदि के सुचारु संचालन के लिए जरूरी है. दूसरी ओर पारस्परिक जुड़ाव और सहयोग सुरक्षा प्रदान करता है. स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए जिसमें लोग कठिनाइयों का सामना कर सकें और उबर सकें, पारस्परिक संबंधों का विशेष महत्व है. हमारी ज्ञानेंद्रियों को उचित उद्दीपन न मिले तो बौद्धिक विकास कुंठित हो जाता है. जेलों में लंबी अवधि तक रहने पर ब्रेकडाउन होना आम बात है. तभी खूंखार अपराधियों को ‘काला पानी’ की सजा दी जाती थी. आम जीवन में भी लोग उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर पाते और भावनात्मक रूप से टूट जाते हैं.
इन दिनों जीवन की गति धीमी पड़ गई है और नौकरीपेशा लोगों ही नहीं स्कूली बच्चों के दैनिक कार्यक्रम का बंधा-बंधाया ढांचा या रूटीन भी ढीला पड़ने लगा है. इस कठिन घड़ी में हम किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं यह इस पर भी निर्भर करता है कि हम इस परिस्थिति को किस रूप में ग्रहण करते हैं और कितनी सक्रियता और सावधानी के साथ सामने आ रही चुनौतियों का सामना करते हैं. इसे एक अनिवार्य तनाव की विवशता मानना जीवन को और मुश्किल में डालेगा. इसकी जगह साहस, आशा, संतोष और लचीले दृष्टिकोण के साथ ही इस अदृश्य शत्रु का मुकाबला करना जीवन की संभावनाओं का विस्तार करेगा. इनके साथ ही उभर रही अनिश्चय की स्थिति से उबर सकेंगे.