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गौरीशंकर राजहंस का ब्लॉग: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘लुक ईस्ट’ विदेश नीति को मूर्त रूप दिया

By गौरीशंकर राजहंस | Updated: March 10, 2021 13:20 IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के आखिर में बांग्लादेश की यात्रा पर जा रहे हैं. इससे पहले उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को बांग्लादेश भेजा. दोनों देश रिश्तों को लेकर कितने गंभीर हैं, ये उसका उदाहरण है.

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भारत-बांग्लादेश के संबंध सही मायने में अत्यंत ही मजबूत होंगे. इस संदर्भ में यही कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मार्च महीने के अंत में बांग्लादेश जाएंगे तथा भारत और बांग्लादेश के 50 वर्षों के राजनयिक संबंधों को हर दृष्टिकोण से मजबूत करेंगे. 

इस संदर्भ में यही कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने अपनी आगामी मार्च माह के अंत की यात्रा को सफल बनाने के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर को बांग्लादेश भेजा. उन्होंने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बेगम शेख हसीना से मुलाकात कर उन्हें विश्वास दिलाया कि भारत हर हालत में बांग्लादेश के साथ खड़ा रहेगा.

बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए.के. अब्दुल मेमन ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ विस्तृत बातचीत करके कहा है कि बांग्लादेश हर हालत में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘लुक ईस्ट’ या ‘एक्ट ईस्ट’ के सपनों को साकार करेगा. 

भारत से दोस्ती निभाने का बांग्लादेश ने दिया है भरोसा

बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने ट्विट करके कहा कि आपके सभी सपने पूरे हों और मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि बांग्लादेश भारत का एक भरोसेमंद दोस्त की भूमिका निभाता रहेगा. 

बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने भारत के विदेश मंत्री को आश्वस्त किया कि दोनों देशों के संबंध मजबूत हैं और भविष्य में भी रहेंगे जिससे शांतिपूर्ण, समद्ध और प्रगतिशील दक्षिण एशिया के सपने भी पूरे होंगे. सपनों को पूरा करने के लिए दोनों देशों के संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति होगी. 

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यह भी कहा कि मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार भारत के प्रधानमंत्री हुए तब उन्होंने बांग्लादेश को एक प्रमुख पड़ोसी देश के रूप में माना और हरसंभव प्रयास किए कि बांग्लादेश की आर्थिक उन्नति हो.

बांग्लादेश की आजादी में भारत की रही थी अहम भूमिका

फील्ड मार्शल मानिकसॉ ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि जब इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को पूर्वी पाकिस्तान पर चढ़ाई कर उसे मुक्त कराने का आदेश दिया तब मानसून बिहार, बंगाल, उड़ीसा (अब ओडिशा) और असम में शुरू हो गया था. 

इंदिरा गांधी की लेकिन जिद थी कि इसी समय पूर्वी पाकिस्तान पर चढ़ाई कर उसे आजाद कराया जाए. परंतु मानिकसॉ ने इंदिरा गांधी को समझाया कि इस बरसात में लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है और बरसात के कारण सारे टैंक और सैनिक दलदल में फंस जाएंगे तथा सेना भी एक जगह से दूसरी जगह आसानी से नहीं आ-जा सकेगी. सभी कीचड़ में लथपथ हो जाएंगे. इसीलिए बेहतर है कुछ इंतजार किया जाए. 

इंदिरा गांधी का कहना था कि हजारों की संख्या में लोग पूर्वी पाकिस्तान से पलायन कर असम, पश्चिम बंगाल और बिहार आ रहे हैं और इन राज्यों की आर्थिक हालत दिनों दिन खस्ता होती जा रही है. परंतु मानिकसॉ ने उन्हें समझाया कि प्राकृतिक परिस्थिति ऐसी है कि इस घनघोर वर्षा में पूर्वी पाकिस्तान पर चढ़ाई करने से दांव उल्टा भी पड़ सकता है. अत: कुछ समय इंतजार करने की आवश्यकता है. 

बड़ी कठिनाई से इंदिरा गांधी मानिकसॉ की बात मान गर्इं और पूर्वी पाकिस्तान पर चढ़ाई करने के लिए कुछ महीनों का इंतजार करने का निर्णय लिया. इस बीच पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिक पूर्वी पाकिस्तान पर निर्दयतापूर्वक अत्याचार करते रहे.

जब परिस्थिति थोड़ी अनुकूल हुई तब जनरल मानिकसॉ ने अपने सैनिकों को ‘मुक्ति वाहिनी की’ पोशाक पहना कर पूर्वी पाकिस्तान पर चढ़ाई कर दी और कुछ ही दिनों के संघर्ष के बाद जनरल नियाजी जो पश्चिमी पाकिस्तान के प्रमुख सैनिक जनरल थे, ने अपने 90 हजार से ज्यादा सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.

भारत के योगदान को नहीं भूल सकता बांग्लादेश 

भारत के इस योगदान को बांग्लादेश कभी नहीं भूला. बाद में कुछ गद्दारों ने पूर्वी पाकिस्तान के नायक शेख मुजिबुर्रहमान, जिन्होंने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश का नाम दिया, की हत्या कर दी. परंतु उनकी बेटी बेगम शेख हसीना कुछ अंतराल के बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं और उनके समय में भारत-बांग्लादेश के संबंध मधुर होते गए. 

आज की तारीख में न तो भारत में और न ही बांग्लादेश में नई पीढ़ी के लोगों को पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बनने के संघर्ष के बारे में जानकारी है.

आज की तारीख में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश जाएंगे तो उन्हें पुरानी सारी बातें याद आ जाएंगी और नए सिरे से भारत और बांग्लादेश के संबंध मधुर और मजबूत हो जाएंगे. 

सबसे पहले स्वर्गीय नरसिंह राव ने ‘लुक ईस्ट’ पॉलिसी की कल्पना की थी और भारत के पड़ोसियों से मधुर संबंध बनाने की कोशिश की. बाद में नरेंद्र मोदी ने इस नीति को आगे बढ़ाया और पूरे देशवासियों को यह विश्वास दिलाया कि यदि पड़ोसियों के साथ हमारे संबंध मजबूत होंगे तो मजबूत संबंधों के बल पर भारत भी मजबूत देश बनकर उभरेगा.

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