संदीप पांडेय का ब्लॉगः गंगा संरक्षण के लिए दांव पर लगाते जीवन
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 28, 2018 09:02 AM2018-09-28T09:02:51+5:302018-09-28T09:02:51+5:30
अब स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जो पहले प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल के रूप में जाने जाते थे व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में अध्यापन व शोध कर चुके हैं, गंगा को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगाए हुए हैं।
हरिद्वार का मातृ सदन कोई साधारण आश्रम नहीं व स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जो 22 जून 2018 से गंगा संरक्षण हेतु कानून बनाने की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे हैं कोई साधारण साधु नहीं। इससे पहले आश्रम के प्रमुख स्वामी शिवानंद व उनके शिष्य निगमानंद, दयानंद, यजनानंद व पूर्णानंद गंगा में अवैध खनन को रोकने की मांग को लेकर लंबे अनशन कर चुके हैं। स्वामी निगमानंद को तो 2011 में खनन माफिया द्वारा अस्पताल में इंजेक्शन के साथ ऑरगैनोफॉस्फेट जहर देकर उनके अनशन के 115वें दिन मरवा दिया गया।
अब स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जो पहले प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल के रूप में जाने जाते थे व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में अध्यापन व शोध कर चुके हैं, गंगा को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगाए हुए हैं। वे अपने शुभचिंतकों से कहते हैं कि उनके स्वास्थ्य की चिंता न कर लोग गंगा के स्वास्थ्य की चिंता करें।
उनका मानना है कि काफी देर हो चुकी है। वे सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के कठोर आलोचक हैं। वे नहीं मानते कि कुछ लोग कहीं झाड़ू उठा लें तो स्थानीय इलाके की सफाई कर सकते हैं। प्रदूषण का कारण सरकार की दोषपूर्ण नीतियां हैं। सतत विकास के लिए पर्यावरण-पक्षीय नीतियों की आवश्यकता है जबकि भाजपा सरकार ने पिछले साढ़े चार वर्षो में सतत विकास का एक बार नाम भी नहीं लिया।
सरकार के लिए विकास का मतलब सिर्फ निर्माण होता है। हल ही में उत्तराखंड सरकार ने जिम कॉरबेट राष्ट्रीय अभ्यारण्य के बीच से एक सड़क निर्माण का फैसला लिया है जिससे वन एवं वन्य जीवों को खतरा है। सरकार ने अनुमानित 12,000 करोड़ रु. की लागत से गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ को जोड़ने वाली एक महत्वाकांक्षी चार धाम सड़क परियोजना पर भी काम शुरू किया है। स्वामी सानंद का मानना है कि यह परियोजना विनाशकारी साबित होगी क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में पेड़ काटे जाएंगे, पहाड़ी ढलान को काटने से अस्थिरता पैदा होगी व सारा मलबा नदी में जाएगा।
स्वामी सानंद का मानना है कि वर्तमान में विकास की अवधारणा पर्यावरण विरोधी है और गंगा को तभी बचाया जा सकता है जब उसके संरक्षण का काम गंगा के प्रति संवेदनशील लोगों को दिया जाएगा। 20 अगस्त, 2018 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा कि गंगा में शहरों के गंदे नालों का पानी बिना साफ किए न डाला जाए। हरिद्वार में सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र की क्षमता 4.5 करोड़ लीटर प्रतिदिन गंदा पानी साफ करने की है जबकि करीब इसका दोगुना गंदा पानी बिना साफ किए रोजाना गंगा में गिराया जा रहा है। स्वामी सानंद सवाल खड़ा करते हैं कि अभी तक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व हरित न्यायालय कहां थे?
स्वामी सानंद यह भी सवाल खड़ा करते हैं कि आखिर कितना गंदा पानी निकल रहा है यह कैसे नापा जाता है? संभवत: यह तो उस समय का आंकड़ा है जब गंदे पानी का बहाव नापा गया। क्या यह अधिकतम बहाव है? कई बार यह मानते हुए कि प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 50 लीटर गंदा पानी निकलता है जनसंख्या से गुणा कर बहाव का आंकड़ा निकाल लिया जाता है।
स्वामी सानंद ने 13 से 30 जून 2008, 14 जनवरी से 20 फरवरी, 2009 व 20 जुलाई से 23 अगस्त 2010 के दौरान क्रमश: तीन पनबिजली परियोजनाओं भैरों घाटी, लोहारी नागपाला व पाला मनेरी को रुकवाने के लिए अनशन किए और रुकवा भी दिया जबकि लोहारी नागपाला पर काफी काम हो चुका था और भागीरथी नदी के शुरू के 125 किमी को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करवाया।
उनका चौथा अनशन 14 जनवरी से 16 अप्रैल 2012 में कुछ चरणों में हुआ। पहले इलाहाबाद में फल पर, फिर हरिद्वार में नींबू पानी पर और अंत में वाराणसी में बिना पानी के जिसके बाद उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली में भर्ती कराया गया। 2013 में 13 जून से 13 अक्टूबर तक उन्होंने अनशन किया जिसमें 15 दिन जेल में भी गुजारने पड़े।
उस समय गंगा महासभा के अध्यक्ष जितेंद्रानंद उनके पास भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह का पत्र लेकर आए कि यदि अगले चुनाव में भाजपा की सरकार बनेगी तो स्वामी सानंद की गंगा संबंधित सारी मांगें मान ली जाएंगी। किंतु भाजपा सरकार ने स्वामी सानंद को निराश किया है। वे जयराम रमेश की इस बात के लिए तारीफ करते हैं कि उन्होंने अमेरिका के पैसे से विदेशी विशेषज्ञों द्वारा गंगा मास्टर प्लान बनाने की पेशकश को रद्द करवाया। प्रणब मुखर्जी के सुझाव पर यह काम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के समूह को दिया गया। स्वामी सानंद ने अपना जीवन दांव पर लगाया है। क्या हम उनको यूं ही प्राण त्यागने देंगे?