विजय दर्डा का ब्लॉगः चीन से दोस्ती अच्छी बात, लेकिन भरोसा तो जगे!
By विजय दर्डा | Updated: October 14, 2019 06:22 IST2019-10-14T06:22:24+5:302019-10-14T06:22:24+5:30
चीन की नजर केवल हमारे उपभोक्ता बाजार पर है. वह अपना माल ज्यादा से ज्यादा हमारे यहां खपाना चाहता है. दरअसल चीन ने पिछले 40 साल में गजब की तरक्की की है. अपने पूरे देश में उसने पहले तो कुटीर उद्योगों का जाल बिछाया और फिर औद्योगिक क्रांति के माध्यम से इतना उत्पादन करने लगा कि उसके लिए बाजार का फैलाव जरूरी हो गया. कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें चीन उत्पादन में पीछे हो.

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तमिलनाडु का महाबलीपुरम वह जगह है जहां इतिहास के किसी दौर में चीन और भारत के बीच नौकाओं के माध्यम से व्यापार होता था. उसी महाबलीपुरम में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिन साथ-साथ गुजारे तो एक संदेश यह जरूर उभरा कि दोनों देशों में दोस्ती पनप रही है. क्या वाकई ऐसा है?
यदि आप आकलन करें तो पाएंगे कि इस वक्त दुनिया में चीन ऐसे देश के रूप में उभरा है जिस पर किसी को भी भरोसा नहीं होता! शंका की गुंजाइश हमेशा ही बनी रहती है. दोस्ती की इस संभावना के पीछे यह उम्मीद कायम करना कि चीन के साथ हमारे उलङो हुए मसले सुलझ ही जाएंगे, खुद को भ्रम में डालने के अलावा कुछ भी नहीं है. जवाहरलाल नेहरू के दौर में हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे के बीच भारत पर हमले से लेकर जम्मू-कश्मीर में धारा 370 निष्प्रभावी किए जाने के मसले पर पाकिस्तान का साथ देकर चीन ने यही साबित किया है कि वह हमारा मित्र कभी नहीं रहा और न होना चाहता है.
चीन की नजर केवल हमारे उपभोक्ता बाजार पर है. वह अपना माल ज्यादा से ज्यादा हमारे यहां खपाना चाहता है. दरअसल चीन ने पिछले 40 साल में गजब की तरक्की की है. अपने पूरे देश में उसने पहले तो कुटीर उद्योगों का जाल बिछाया और फिर औद्योगिक क्रांति के माध्यम से इतना उत्पादन करने लगा कि उसके लिए बाजार का फैलाव जरूरी हो गया. कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें चीन उत्पादन में पीछे हो.
उसके कारखानों के आकार यदि आप देखें तो दंग रह जाएंगे. कई मामलों में तो वह दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है. इसी का नतीजा है कि ‘वन बेल्ट, वन रोड’ योजना वह लेकर आया ताकि दुनिया के 152 देशों को इससे जोड़ा जा सके. भारत हालांकि इससे अलग है लेकिन ज्यादातर देश इसमें शामिल हो चुके हैं. अपने माल की खपत के लिए उसने बहुत से देशों को कर्ज भी देना शुरू कर दिया. उसका कारोबार चल निकला है, लेकिन इसमें अमेरिका एक बाधा बनकर खड़ा हो गया है. दोनों के बीच ट्रेड वार चल रहा है.
ऐसी स्थिति में चीन की मजबूरी है कि वह भारत के साथ दोस्ती बढ़ाए. व्यापार के मामले में यदि चीन को अमेरिका से घाटा होता है तो निश्चय ही इसके लिए वह जगह तलाशेगा और भारत से बेहतर जगह और कोई हो नहीं सकती. चीन चाहता है कि भारत में उसका निर्यात 200 अरब डॉलर तक पहुंच जाए. 2018-19 में दोनों देशों के बीच 88 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें भारत का व्यापार घाटा 63 अरब डॉलर हो गया.
चीन से भारत मुख्यत: बिजली के उपकरण, कार्बनिक रसायन आदि मंगाता है तो चीन को खनिज, कुछ दवाइयां और कपास बेचता है. मौजूदा आकलन यह है कि दोनों देशों के बीच जल्दी ही व्यापार का आंकड़ा 100 अरब डॉलर पहुंच जाएगा. भारत चाहता है कि चीन न केवल ज्यादा सामान खरीदे ताकि व्यापार घाटा कम हो, बल्कि भारत में निवेश भी करे. भारत का तर्क है कि आईटी, बागवानी, कपड़ा, केमिकल, डेयरी उत्पादन में वह मजबूत स्थिति में है और विश्व में उसकी महत्वपूर्ण उपस्थिति है तो यह माल चीन भी खरीदे. भारत ने ऐसे 380 उत्पादों की सूची चीन को सौंपी भी है.
चीन कभी आश्वासन देता है तो कभी चुप्पी साध जाता है. कभी लॉलीपॉप देता है. चीन का निवेश अभी भारत में करीब 8 अरब डॉलर है. आंकड़े बताते हैं कि चीन ने पूरी दुनिया में जितना निवेश कर रखा है उसका केवल 0.5 प्रतिशत निवेश ही भारत में है. हालांकि चीन ने भारत में कुल 20 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया है लेकिन भारत चाहता है कि यह निवेश कम से कम 50 अरब डॉलर तो होना ही चाहिए. लेकिन ऐसा होना तत्काल संभव नजर नहीं आ रहा है.
हालांकि भारत इसके लिए चीन पर लगातार दबाव बनाए हुए है. यह दबाव अभी काम कर सकता है क्योंकि अमेरिका के साथ चीन उलझा हुआ है. लेकिन केवल दबाव से काम नहीं चलेगा. चीन से यदि मुकाबला करना है तो भारत को कम लागत में अच्छा उत्पादन देने वाले देश के रूप में अपनी पहचान बनानी होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्योगपतियों के लिए बेहतर स्थिति बनाने की बात की है लेकिन उसे अमलीजामा भी पहनाना होगा. हमें उस सेक्टर में घुसना होगा जो चीन की जरूरतें पूरी करता है. उदाहरण के लिए चीन हर साल 450 अरब डॉलर की इलेक्ट्रिकल मशीनरी और 97 अरब डॉलर के मेडिकल उपकरण आयात करता है. और भी कई सेक्टर हैं जहां चीन का आयात बहुत है. हमें इस सेक्टर में संभावना तलाशनी होगी.
जहां तक चीन के साथ सीमा विवाद का सवाल है तो व्यापार पर उसका कोई खास असर नहीं होगा. दोनों ही देशों ने इन विवादों के लिए कमेटियां गठित कर रखी हैं. कमेटियों के अधिकारी बात करते रहते हैं. व्यापार चलता रहता है! हां, भारत को इस बात पर जरूर नजर रखनी होगी कि हमें चोट पहुंचाने का कोई भी मौका चीन छोड़ेगा नहीं क्योंकि भारत को वह भविष्य के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है. उसे पता है कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास बड़ा उपभोक्ता बाजार भी है, संसाधन भी जुटने लगे हैं और वक्त के साथ चीन को टक्कर देने की स्थिति में भारत आ सकता है.