फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का आडिट समय की मांग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 15, 2020 02:35 PM2020-12-15T14:35:19+5:302020-12-15T14:35:36+5:30

प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करने वाला एकमात्र कानून प्रेस एंड रजिट्रेशन ऑफ बुक्स एक्ट, 1867 है जो प्रेस रजिस्ट्रार द्वारा समाचार पत्रों के रजिस्टर की देखरेख के लिए निर्धारित किया गया है, जिसमें समाचार पत्रों द्वारा स्वेच्छा से दी गई जानकारी को क्रॉस चेकिंग की व्यवस्था के बिना दर्ज किया जाता है.

Firdaus Mirza blog: fourth pillar of democracy demands audit time | फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का आडिट समय की मांग

लोग इसे ‘गोदी मीडिया’ जैसे नाम दे रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि यह पक्षपाती है

मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, यह नागरिकों की आंखें और कान है. एक ईमानदार और निष्पक्ष मीडिया ही लोकतांत्रिक संस्थाओं को बचा सकता है. बेईमान, भ्रष्ट और बिका हुआ मीडिया लोकतंत्र के लिए अभिशाप है.

हाल के दिनों में भारत में मीडिया संदेह से घिर गया है और किसी न किसी प्रकार से अपनी उस विश्वसनीयता को खो चुका है जो उसे पहले हासिल थी.

लोग इसे ‘गोदी मीडिया’ जैसे नाम दे रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि यह पक्षपाती है, सच्चाई को सामने नहीं लाता है. टीआरपी बढ़ाने के लिए अपने प्राइम टाइम व्यूअरशिप के गलत आंकड़े पेश करने के लिए हाल ही में पुलिस ने एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हाउस के खिलाफ अपराध दर्ज किया. पुलिस के अनुसार ऐसा कर उक्त मीडिया हाउस न केवल निजी संस्थाओं बल्कि सरकारी एजेंसियों से भी ऊंची दर पर अधिक विज्ञापन प्राप्त करने में सफल रहा.

एक और बड़ा झटका हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गुजरात के एक समाचार पत्र के खिलाफ की गई कार्रवाई से लगा, जिसमें पता चला कि उसने गुजराती में 23500 प्रतियां और अंग्रेजी में 6300 प्रतियां छापे जाने की जानकारी दी थी, जबकि वास्तविक सकरुलेशन क्रमश: केवल 300-600 और 0-290 के आसपास ही था. प्रकाशक द्वारा सकरुलेशन के बढ़े हुए आंकड़े रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर्स (आरएनआई) और विज्ञापन एजेंसियों सहित विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय को बताए गए थे, जिसके पीछे उद्देश्य ऊंची दरों पर अधिक विज्ञापन हासिल करना था.

ऐसे समय में जबकि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ यानी मीडिया पहले से ही संदेह के बादल से घिरा हुआ है और आम आदमी इस पर विश्वास करने को तैयार नहीं है, ऐसे घोटालों के खुलासे ने प्रतिष्ठित मीडिया हाउसों की बची-खुची साख को भी चूर कर दिया.

प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करने वाला एकमात्र कानून प्रेस एंड रजिट्रेशन ऑफ बुक्स एक्ट, 1867 है जो प्रेस रजिस्ट्रार द्वारा समाचार पत्रों के रजिस्टर की देखरेख के लिए निर्धारित किया गया है, जिसमें समाचार पत्रों द्वारा स्वेच्छा से दी गई जानकारी को क्रॉस चेकिंग की व्यवस्था के बिना दर्ज किया जाता है.

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ऑडिट ब्यूरो ऑफ सकरुलेशन (एबीसी) चल रहा है. भारत में इसकी स्थापना 1948 में एक गैर-लाभकारी स्वैच्छिक संगठन के रूप में हुई थी जिसमें सदस्य के रूप में प्रकाशक, विज्ञापनदाता, विज्ञापन एजेंसियां शामिल हैं. यह उन पब्लिकेशन के सकरुलेशन के आंकड़ों को प्रमाणित करने के लिए ऑडिट प्रक्रियाओं में प्रमुख भूमिका निभाता है जो एबीसी के सदस्य हैं.

इस प्रयोजन के लिए यह हर 6 महीने में आंकड़े प्रसारित करता है और चार्टर्ड अकाउंटेंट के पैनल द्वारा आंकड़ों का ऑडिट किया जाता है. यह संगठन प्रिंट मीडिया के सकरुलेशन आंकड़ों पर एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है और ये आंकड़े विज्ञापनदाताओं को विभिन्न मीडिया हाउसों के सकरुलेशन का पता लगाने में मदद करते हैं.

प्रशासनिक और वाणिज्यिक गतिविधियों में सरकार की भागीदारी में वृद्धि के साथ, इसके द्वारा जारी विज्ञापन की मात्र भी बढ़ने के कारण निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया की जरूरत बढ़ गई है क्योंकि सरकारी खजाने से बड़ी राशि खर्च की जा रही है. लेकिन, यदि कम सकरुलेशन वाले अखबारों द्वारा विज्ञापन हथिया लिए जाते हैं तो इसके प्रकाशन का पूरा उद्देश्य ही व्यर्थ हो जाता है और यह सरकार के अलावा आम आदमी के साथ भी धोखाधड़ी है.

अक्सर ऐसी अफवाहें फैला करती हैं कि ज्यादा सकरुलेशन दिखा कर अखबारों ने व्हाइट मनी में प्रिंटिंग पेपर हासिल कर लिया और फिर उसे ब्लैक मार्केट में बेच दिया गया. यदि यह सच है तो यह जीएसटी सहित विभिन्न करों की चोरी भी है. अखबारी कागज का आयात करना पड़ता है इसलिए यह फेमा का भी उल्लंघन है. इन आपराधिक गतिविधियों में सहायता करने वाले लेखा परीक्षक भी समान रूप से जिम्मेदार हैं.

इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट मीडिया के खिलाफ पुलिस या ईडी द्वारा दर्ज किए गए मामलों से अब हम एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गए हैं जहां विज्ञापन प्राप्त करने के लिए विभिन्न समाचार पत्रों द्वारा आरएनआई और अन्य सरकारी एजेंसियों को प्रस्तुत किए गए सकरुलेशन के आंकड़ों की जांच करना आवश्यक हो गया है. सरकार के विज्ञापनों पर खर्च होने वाला पैसा करदाताओं का है और इसलिए यह मनी लॉन्ड्रिंग, भारतीय दंड संहिता और सतर्कता आयोग, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो और राज्य पुलिस के कानूनों के अंतर्गत जांच के क्षेत्रधिकार में आता है.

मुद्दा सिर्फ यह नहीं है कि भारतीय मीडिया तेजी से अपनी स्वच्छ छवि खो रहा है, बल्कि भारत भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अपनी रेटिंग में तेजी से फिसल रहा है. इन परिस्थितियों में समाचार पत्रों को अपनी स्वयं की छवि को बचाने के लिए स्वेच्छा से उपरोक्त प्रस्तावित जांच के लिए प्रस्तुत करना चाहिए. वास्तव में इस तरह की जांच प्रिंट मीडिया उद्योग के हित में होगी क्योंकि यह उस पर जनता के विश्वास को बड़े पैमाने पर पुनप्र्रतिष्ठित करेगी.

Web Title: Firdaus Mirza blog: fourth pillar of democracy demands audit time

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