किसान आंदोलनः केंद्र सरकार नज़रअंदाज़ करने की कोशिश नहीं करे!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 17, 2020 09:27 PM2020-12-17T21:27:05+5:302020-12-17T21:28:28+5:30
कोर्ट का कहना था कि- हम अभी कृषि कानूनों की वैधता पर निर्णय नहीं करेंगे. हम किसानों के प्रदर्शन और नागरिकों के अधिकारों से जुड़े मुद्दे पर ही निर्णय देंगे.
केन्द्र की सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी सरकार ने कई ऐसे निर्णय लिए, जो जनता को रास नहीं आए हैं, लेकिन जनता के धैर्य को अपनी सफलता समझना, मोदी सरकार की बहुत बड़ी राजनीतिक गलती साबित हो सकती है. किसान तो दिल्ली में प्रदर्शन करना चाहते थे, परन्तु उन्हें सीमा पर रोका गया और वहीं प्रदर्शन करने पर मजबूर किया गया है.
अब शायद केन्द्र सरकार यह सोच कर समय गुजार रही है कि किसान आंदोलन लंबा चला तो अपने-आप बिखर जाएगा, परन्तु यह सियासी सोच भी भारी पड़ सकती है. यदि किसान आंदोलन बहुत लंबा चला तो दिल्ली सीमा पर ही नया पंजाब बस जाएगा. खबरें हैं कि आंदोलनरत किसानों को हटाने के निवेदन पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच में गुरुवार को दोबारा सुनवाई की गई और केन्द्र सरकार एवं किसान, दोनों को सलाह दी गई कि सरकार कृषि कानूनों को होल्ड करने की संभावना तलाशे, तो किसान विरोध का तरीका बदलें.
खबरों पर भरोसा करें तो कोर्ट का कहना था कि- हम अभी कृषि कानूनों की वैधता पर निर्णय नहीं करेंगे. हम किसानों के प्रदर्शन और नागरिकों के अधिकारों से जुड़े मुद्दे पर ही निर्णय देंगे. हम कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने के नागरिक अधिकार को मानते हैं, लिहाजा इसे छीनने का कोई सवाल ही नहीं है. बस, इससे किसी नागरिक की जान को खतरा नहीं होना चाहिए.
कोर्ट का कहना था कि- प्रदर्शन करना तब तक संवैधानिक है, जब तक कि उससे किसी की जान को खतरा नहीं हो और किसी तरह की संपत्ति का नुकसान नहीं हो. कोर्ट का यह भी मानना था कि केंद्र सरकार और किसानों को बातचीत करनी चाहिए. हम इस पर विचार कर रहे हैं कि इसके लिए एक निष्पक्ष स्वतंत्र कमेटी बनाई जाए, जिससे दोनों पक्ष उसमें अपनी बात रख सकें.
यह कमेटी जिस नतीजे पर पहुंचेगी, उसे माना जाना चाहिए, हालांकि तब तक प्रदर्शन जारी रखा जा सकता है. किसान आंदोलन को लेकर प्रमुख किसान नेता राकेश टिकैत का न्यूज चैनल से कहना था कि किसानों का आंदोलन आज तक कभी उग्र नहीं हुआ है और ना ही कभी होगा, लेकिन पुलिस हमसे छेड़छाड़ कर रही है और हमारे नेताओं को रोक रही है.
कानून-व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी तो पुलिस की ही है. कोरोना महामारी के बीच किसान आंदोलन को लेकर उनका यह भी कहना था कि जब बिहार चुनाव चल रहा था, तब कोरोना कहां चला गया था, इस बीमारी का बहाना सिर्फ किसानों को डराने और उन्हें वापस भेजने के लिए किया जा रहा है.
टिकैत ने यह भी साफ तौर पर कहा कि वह तो वोट क्लब जाना चाहते हैं जहां सबके जाने की आजादी है, तो किसानों को रोका क्यों जा रहा है? जाहिर है, कोर्ट ने किसानों के प्रदर्शन के अधिकार को सही माना है. अब तो मोदी सरकार को तय करना है कि वह यह प्रदर्शन समाप्त करने के लिए, यह आंदोलन खत्म करने के लिए क्या कदम उठाती है!