विनीत नारायण का ब्लॉग: जल संकट के लिए सब जिम्मेदार
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 11, 2020 06:10 AM2020-02-11T06:10:34+5:302020-02-11T06:10:34+5:30
सरकार की नीयत साफ नहीं होती और लोग समस्या का कारण बनते हैं, समाधान नहीं. हम विषम चक्र में फंस चुके हैं. पर्यावरण बचाने के लिए एक देशव्यापी क्रांति की आवश्यकता है. वर्ना आत्मघाती सुरंग में हम फिसलते जा रहे हैं. जागेंगे तो देर हो चुकी होगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के पेयजल संकट की गंभीरता को समझा और इसीलिए पिछले वर्ष जलशक्ति अभियान प्रारंभ किया. इसके लिए काफी मोटी रकम आवंटित की और अपने अतिविश्वासपात्र अधिकारियों को इस मुहिम पर तैनात किया है. पर सोचने वाली बात ये है कि जलसंकट जैसी गंभीर समस्या को दूर करने के लिए हम स्वयं कितने तत्पर हैं?
दरअसल पर्यावरण के विनाश का सबसे ज्यादा असर जल की आपूर्ति पर पड़ता है, जिसके कारण ही पेयजल का संकट गहराता जा रहा है. पिछले दो दशकों में भारत सरकार ने तीन बार यह लक्ष्य निर्धारित किया था कि हर घर को पेयजल मिलेगा. तीनों बार यह लक्ष्य पूरा न हो सका. इतना ही नहीं, जिन गांवों को पहले पेयजल की आपूर्ति के मामले में आत्मनिर्भर माना गया था, उनमें से भी काफी बड़ी तादाद में गांव फिसलकर ‘पेयजल संकट’ वाली श्रेणी में आ गए.
पर्वतों पर खनन, वृक्षों की भारी संख्या में कटाई, औद्योगिक प्रतिष्ठानों से होने वाला जहरीला उत्सर्जन और अविवेकपूर्ण तरीके से जल के प्रयोग की हमारी आदत ने हमारे सामने पेयजल यानी ‘जीवनदायिनी शक्ति’ की उपलब्धता का संकट खड़ा कर दिया है. आजादी के बाद से आज तक हम पेयजल और सैनिटेशन के मद पर सवा लाख करोड़ रुपया खर्च कर चुके हैं. बावजूद इसके हम पेयजल की आपूर्ति नहीं कर पा रहे.
खेतों में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग भूजल में फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्र खतरनाक स्तर तक बढ़ा चुका है, जिसका मानवीय स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है. यह सबको मालूम है पर कोई कुछ ठोस नहीं करता. जिस देश में नदियों, पर्वतों, वृक्षों, पशु-पक्षियों, पृथ्वी, वायु, जल, आकाश,
सूर्य व चंद्रमा की हजारों साल से पूजा होती आई हो, वहां पर्यावरण का इतना विनाश समझ में न आने वाली बात है. सरकार और लोग, दोनों बराबर जिम्मेदार हैं. सरकार की नीयत साफ नहीं होती और लोग समस्या का कारण बनते हैं, समाधान नहीं. हम विषम चक्र में फंस चुके हैं. पर्यावरण बचाने के लिए एक देशव्यापी क्रांति की आवश्यकता है. वर्ना आत्मघाती सुरंग में हम फिसलते जा रहे हैं. जागेंगे तो देर हो चुकी होगी.