संपादकीय: जिंदगी में एक्सिडेंटल तो बहुत कुछ होता ही है..! 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 30, 2018 05:25 AM2018-12-30T05:25:11+5:302018-12-30T05:25:11+5:30

जो भी हो, इस फिल्म ने नए विवाद को तो जन्म दे ही दिया है. लेकिन यह विवाद एक्सिडेंटल नहीं है. ऐसा लग रहा है कि जानबूझकर विवाद पैदा किया गया है ताकि कांग्रेस के प्रति मतदाताओं को भ्रमित किया जा सके.

Editorial: the accidental prime minister lot of extraordinary in life | संपादकीय: जिंदगी में एक्सिडेंटल तो बहुत कुछ होता ही है..! 

संपादकीय: जिंदगी में एक्सिडेंटल तो बहुत कुछ होता ही है..! 

इन दिनों ‘एक्सिडेंटल’ शब्द बड़ी चर्चा में है और एक बड़ा महत्वपूर्ण सवाल इससे पैदा होता है कि जिंदगी में क्या सबकुछ नियोजित तरीके से होता है या फिर सबकुछ एक्सिडेंटल ही होता है. जवाब तलाशना जरा मुश्किल है इसलिए यह मान लेते हैं कि जिंदगी में कुछ नियोजित भी होता है और कुछ एक्सिडेंटल भी! अब सवाल यह पैदा होता है कि संजय बारू ने 2014 में चुनाव से ठीक पहले जब मनमोहन सिंह पर केंद्रित पुस्तक ‘एक्सिडेंटल प्राइममिनिस्टर’ लिखी तो क्या वह एक्सिडेंटल लेखन था?

क्या चुनाव से ठीक पहले पुस्तक प्रकाशित कराने के पीछे कोई मंशा नहीं थी? और अब जब 2019 में फिर चुनाव होने हैं तो उसी किताब पर फिल्म बनना क्या महज संयोग है या एक्सिडेंटल टाइमिंग है? एक पत्रकार के सामने जो कुछ आता है, उसका विश्लेषण करना और अपनी समझ को घटना के संदर्भ में अभिव्यक्त करना उसका अधिकार है. उसका दायित्व भी है लेकिन जब उसकी अभिव्यक्ति राजनीति से जुड़ने लगे तो स्वाभाविक रूप से सवाल तो उठेंगे! जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने फिल्म ‘एक्सिडेंटल प्राइममिनिस्टर’ का ट्रेलर सोशल मीडिया पर डाला उससे यह शंका तो पैदा हो ही गई है कि इस फिल्म के पीछे राजनीतिक मंशा हो सकती है.

जो भी हो, इस फिल्म ने नए विवाद को तो जन्म दे ही दिया है. लेकिन यह विवाद एक्सिडेंटल नहीं है. ऐसा लग रहा है कि जानबूझकर विवाद पैदा किया गया है ताकि कांग्रेस के प्रति मतदाताओं को भ्रमित किया जा सके. दरअसल हमारी पूरी राजनीति ही आरोप-प्रत्यारोप में उलझी पड़ी है. देश के समक्ष जो समस्याएं बिखरी पड़ी हैं उनके निदान पर जो ऊर्जा खर्च की जानी चाहिए वह फिजूल जा रही है. कोई इस बात पर चर्चा नहीं कर रहा है कि देश के किसानों के दर्द का दीर्घकालीन उपचार कैसे हो. युवाओं के लिए रोजगार के अवसर कैसे पैदा किए जाएं.

धार्मिक उन्माद हमारे समाज को खंडित कर रहा है, उस पर कैसे काबू पाया जाए, इसकी किसी को चिंता ही नहीं है. राजनीतिक दलों की सारी लड़ाई सत्ता के लिए है. देश गौण हो गया है. 

Web Title: Editorial: the accidental prime minister lot of extraordinary in life

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