संपादकीय: पानी के संकट को छोड़ प्रधानमंत्री की चिंता 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 8, 2019 07:17 AM2019-04-08T07:17:48+5:302019-04-08T07:17:48+5:30

आंकड़ों के हिसाब से महाराष्ट्र में 202 तहसीलों के करीब 850 गांवों में औसत से भी कम बारिश हुई और पूरे राज्य में सिर्फ  75 प्रतिशत ही बारिश हुई, जिसमें 13 जिलों में 50 फीसदी तक ही हुई.

Editorial: Prime Minister's concern over water crisis | संपादकीय: पानी के संकट को छोड़ प्रधानमंत्री की चिंता 

संपादकीय: पानी के संकट को छोड़ प्रधानमंत्री की चिंता 

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ में जल संकट किसी से छिपा नहीं है. बीते साल कम बरसात से दोनों इलाकों के अलावा पश्चिम महाराष्ट्र और खानदेश में भी पानी की समस्या है. आंकड़ों के हिसाब से महाराष्ट्र में 202 तहसीलों के करीब 850 गांवों में औसत से भी कम बारिश हुई और पूरे राज्य में सिर्फ  75 प्रतिशत ही बारिश हुई, जिसमें 13 जिलों में 50 फीसदी तक ही हुई.

कुछ यही वजह थी कि बीते साल बरसात का मौसम समाप्त होने के कुछ ही दिन बाद राज्य के मंत्रियों को सूखे खेत और कुएं का मुआयना करने गांव-गांव भटकना पड़ा था. इसकी वजह मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस थे, जिन्होंने उन्हें एसी के दफ्तर से बाहर निकलकर सूखे का सव्रेक्षण करने का कड़ा निर्देश दिया था. मगर जब सूखा चरम पर है और चुनाव होने जा रहे हैं, तब जल संकट हाशिए पर है.

हालात तो यह भी हैं कि कई कर्मचारी चुनाव ड्यूटी के नाम पर पानी की समस्या को अनदेखा कर रहे हैं. पक्ष-विपक्ष के नेता चुनाव में पानी के संकट को मुद्दा बनाने के लिए तैयार नहीं हैं. शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नांदेड़ में नेशनल कांफ्रेंस के दो प्रधानमंत्री के शिगूफे की चर्चा की, लेकिन मराठवाड़ा के जल संकट पर कोई बात नहीं की. हालांकि नांदेड़ से लगे मराठवाड़ा और विदर्भ के अनेक भाग भीषण जल संकट की चपेट में हैं. राज्य के अनेक इलाकों में सात दिन से अधिक अंतराल में पानी मिल रहा है.

गांवों में कई किमी दूर जाकर पानी लाना पड़ रहा है. इससेपहले प्रधानमंत्री मोदी ने वर्धा में सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का बीड़ा उठाने की बात कही, मगर वर्तमान जल संकट और उसके तत्काल समाधान पर कोई बात नहीं कही. दरअसल महाराष्ट्र की स्थायी समस्या बन चुका जल संकट राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में समाधान से कोसों दूर है. राज्य की भाजपा-शिवसेना नीत सरकार ने ‘जलयुक्त शिवार’ नामक योजना से हल ढूंढने की कोशिश की, किंतु उसके परिणाम संदेह के दायरे में हैं.

राज्य में सामाजिक वानिकी के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन हरित क्षेत्र में वृद्धि न के बराबर है. फिर भी चुनाव से पानी का मुद्दा गायब है. हालांकि चुनाव में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे सुनने में अच्छे लगते हैं, लेकिन उनसे जमीनी समस्याओं से किनारा नहीं किया जा सकता है. ऐसे में मतदाता की निजी परेशानियां भी मन बदलने में कारगर साबित हो सकती हैं. इस खतरे से राजनीतिक दलों को अनजान नहीं होना चाहिए. समय रहते समस्या का समाधान ढूंढना चाहिए. वर्ना लोगों के पास बटन दबाने का समाधान तो अपने आप में काफी है. 

Web Title: Editorial: Prime Minister's concern over water crisis