ब्लॉग: राहुल गांधी और कांग्रेस की बड़ी गलती! सरकार को बैकफुट पर लाने का मौका गंवा दिया
By अनिल जैन | Published: June 24, 2022 01:17 PM2022-06-24T13:17:16+5:302022-06-24T13:17:16+5:30
नेशनल हेराल्ड मामले में बेहतर यही होता कि पूरी पार्टी को झोंकने के बजाय केवल राहुल गांधी ही स्टैंड लेते और ईडी के दफ्तर जाकर बैठ जाते और जांच अधिकारियों के सवालों का सामना करते।
इन दिनों अपने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के सामने पेशी के खिलाफ पूरी कांग्रेस आंदोलित है. गौरतलब है कि राहुल गांधीकांग्रेस और पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्वाधीनता संग्राम के दौरान शुरू किए गए अखबार ‘नेशनल हेराल्ड’ से जुड़े कथित मामले में पिछले सोमवार को ईडी के सामने पेश हुए. इस पेशी के खिलाफ तीन दिनों तक पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं और कार्यकर्ताओं ने दिल्ली सहित देश के प्रमुख शहरों की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्ड से जुड़े मामले को लेकर सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से ईडी, आयकर आदि केंद्रीय एजेंसियों को लगा रखा है. फिर भी यह कोई आम जनता से जुड़ा मुद्दा नहीं है.
इसलिए बेहतर तो यही होता कि इस मामले में पूरी पार्टी को झोंकने के बजाय सिर्फ राहुल गांधी ही स्टैंड लेते और ईडी के दफ्तर जाकर बैठ जाते और जांच अधिकारी से कहते कि मैं यहां बैठा हूं, करिए जांच और जो कुछ पूछना हो मुझसे पूछिए...दो घंटे, दो दिन या दो हफ्ते, जितना चाहोगे मैं यहां बैठा रहूंगा और यहां से तभी जाऊंगा जब या तो मुझ पर आरोप तय करके मामला कोर्ट में पेश करोगे या अगर जांच में कुछ नहीं मिलता है तो मुझे लिख कर दोगे कि जांच में कुछ नहीं मिला, जांच खत्म हुई.
दूसरे विपक्षी नेताओं ने भी केंद्रीय एजेंसियों से निपटने के लिए इसी तरह के फार्मूले अपनाए हैं. जैसे पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मंत्रियों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया तो वे कोलकाता में सीबीआई के दफ्तर पहुंच गई थीं और छह घंटे तक वहीं बैठी रहीं. इस दौरान राज्य की पुलिस उनके साथ मौजूद रही और पार्टी कार्यकर्ता सीबीआई के खिलाफ नारेबाजी करते रहे.
ममता के इस रवैये से सीबीआई की मुहिम की हवा निकल गई. इसी से मिलता-जुलता फार्मूला राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार ने अपनाया. महाराष्ट्र में ईडी ने 25 हजार करोड़ रुपए के एक कथित बैंक घोटाले में शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार सहित कई लोगों पर मुकदमे दर्ज किए. इस मुकदमे की सूचना मिलते ही शरद पवार ने ऐलान किया कि वे मुंबई स्थित ईडी दफ्तर जाएंगे और अपना पक्ष रखेंगे.
हालांकि ईडी ने पवार को नोटिस जारी नहीं किया था, लेकिन पवार ने बलार्ड एस्टेट स्थित ईडी के कार्यालय जाने का फैसला किया. यह मामला सितंबर 2019 का है. इसके थोड़े दिन बाद ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले थे, जिसकी वजह से माहौल में सियासी हलचल थी. ईडी कार्यालय जाने की पवार की घोषणा के बाद हजारों की संख्या में एनसीपी कार्यकर्ता ईडी कार्यालय के सामने जमा होने की तैयारी करने लगे.
माहौल ऐसा बन गया कि ईडी को ईमेल भेज कर पवार से कहना पड़ा कि उन्हें कार्यालय आने की जरूरत नहीं है. कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक रखने के लिए मुंबई पुलिस कमिश्नर ने खुद पवार के घर जाकर उन्हें मनाया कि ईडी कार्यालय न जाएं.
सोचने वाली बात है कि 25 हजार करोड़ रु. के कथित घोटाले में एफआईआर में नाम होने के बावजूद पवार को पेश नहीं होना पड़ा लेकिन एक ऐसे कथित घोटाले में, जिसमें कोई पैसा इनवॉल्व नहीं है, उसमें सोनिया गांधी को अपनी बीमारी के चलते ईडी के समक्ष पेश होने के लिए कुछ दिन की मोहलत मांगनी पड़ी और राहुल गांधी ईडी के सामने पेश हुए.
ईडी ने राहुल गांधी को दो जून को पेश होने के लिए नोटिस जारी किया था लेकिन तब वे विदेश में थे. इसी आधार पर उनकी ओर से ईडी से दूसरा समय मांगा गया तो ईडी ने 13 जून को पेश होने के लिए कहा और वे लगातार तीन दिन तक पेश हुए. सवाल है कि राहुल ने क्यों नहीं नोटिस मिलते ही खुद पहल की और पवार की तरह तत्काल ईडी कार्यालय पहुंचने का ऐलान किया?
यह ठीक है कि सोनिया गांधी बीमार हैं, लेकिन राहुल के लिए विदेश से लौट आना कोई मुश्किल काम नहीं था. वे लौटते और दो जून को ही अपने सारे दस्तावेजों के साथ ईडी के कार्यालय पहुंचने का ऐलान करते. अगर कांग्रेस ने भी शरद पवार या ममता बनर्जी के फॉर्मूले को अपनाया होता तो मामला सटीक तरीके से राजनीतिक रूप लेता और सरकार को पसीना आ जाता.