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सिर्फ बातों और नारों से नहीं बचेगी धरती

By रोहित कौशिक | Updated: April 22, 2025 07:17 IST

यदि ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि इसी तरह जारी रही तो दुनिया को लू, सूखे, बाढ़ व समुद्री तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा. कुपोषण, पेचिश, दिल की बीमारियां एवं श्वसन संबंधी रोगों में इजाफा होगा.

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यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि आज धरती को बचाने के लिए बातें तो बहुत होती हैं लेकिन धरातल पर काम नहीं हो पाता. यही कारण है कि इस धरती और पर्यावरण की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.  दरअसल जब हम प्रकृति का सम्मान नहीं करते हैं तो वह प्रत्यक्ष रूप से तो हमें हानि पहुंचाती ही है, परोक्ष रूप से भी हमारे सामने कई समस्याएं खड़ी करती है.

पिछले दिनों इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया था कि जलवायु परिवर्तन के कारण महिलाओं और लड़कियों के प्रति होने वाली हिंसा में इजाफा हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार गरीब देशों में जलवायु परिवर्तन को रोकने में सरकारें विफल हो रही हैं.

इसके कारण संसाधन बर्बाद हो रहे हैं. इसका असर बढ़ती हुई लैंगिक असमानता के रूप में दिखाई दे रहा है. जलवायु परिवर्तन से जूझ रहे इलाकों में संसाधनों पर काबिज होने के लिए वर्ग संघर्ष जारी है. इसमें जीत पुरुषों की होती है और महिलाएं दोयम दर्जे का जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाती हैं. यदि ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि इसी तरह जारी रही तो दुनिया को लू, सूखे, बाढ़ व समुद्री तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा. कुपोषण, पेचिश, दिल की बीमारियां एवं श्वसन संबंधी रोगों में इजाफा होगा. बाढ़ और मच्छरों के पनपने से हैजा और मलेरिया जैसी बीमारियां बढ़ेंगी.

तटीय इलाकों पर अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा और अनेक पारिस्थितिक तंत्र, जंतु व वनस्पतियां विलुप्त हो जाएंगी. 30 फीसदी एशियाई प्रवाल भित्ति, जो कि समुद्रीय जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, अगले तीस सालों में समाप्त हो जाएंगी.

वातावरण में कार्बनडाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से समुद्र के अम्लीकरण की प्रक्रिया लगातार बढ़ती चली जाएगी जिससे खोल या कवच का निर्माण करने वाले प्रवाल या मूंगा जैसे समुद्री जीवों और इन पर निर्भर रहने वाले अन्य जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

दरअसल उन्नत भौतिक अवसंरचना जलवायु परिवर्तन के विभिन्न खतरों जैसे बाढ़, खराब मौसम, तटीय कटाव आदि से कुछ हद तक रक्षा कर सकती है. ज्यादातर विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन के प्रति सफलता पूर्वक अनुकूलन के लिए आर्थिक एवं प्रौद्योगिकीय स्रोतों का अभाव है. यह स्थिति इन देशों में उस भौतिक अवसंरचना के निर्माण की क्षमता में बाधा प्रतीत होती है जो कि बाढ़, खराब मौसम का सामना करने तथा खेती-बाड़ी की नई तकनीक अपनाने के लिए जरूरी है.

दरअसल हरेक पारिस्थितिक तंत्र के लिए अनुकूलन विशिष्ट होता है. गौरतलब है कि विभिन्न तौर-तरीकों से जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित किया जा सकता है. इन तौर-तरीकों में ऊर्जा प्रयोग की उन्नत क्षमता, वनों के काटने पर नियंत्रण और जीवाश्म ईंधन का कम से कम इस्तेमाल जैसे कारक प्रमुख हैं. अब हमें यह समझना होगा कि धरती को सिर्फ नारे लगाकर नहीं बचाया जा सकता.

टॅग्स :अर्थ (प्रथ्वी)अर्थ डेEnvironment Ministry
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