डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: क्यों गुलाम हो गया था हिंदुस्तान ?

By विजय दर्डा | Published: August 14, 2023 06:28 AM2023-08-14T06:28:03+5:302023-08-14T06:37:21+5:30

जरा सोचिए कि यदि हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा उठ खड़ा होता तो क्या किसी गजनी, किसी तैमूर या किसी नादिर की औकात होती कि वह सोने की चिड़िया को लहूलुहान करके जाता? हजारों-हजार लोगों का कत्लेआम करके जाता? या फिर ईस्ट इंडिया कंपनी हम पर कब्जा कर लेती और हम ब्रिटेन के गुलाम हो जाते?

Dr. Vijay Darda's Blog: Why India became a slave? | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: क्यों गुलाम हो गया था हिंदुस्तान ?

फाइल फोटो

Highlightsहिंदुस्तान के ब्रिटिशकालीन इतिहास पर गौर करें तो हमारी फूट ने ही हमें गुलामी के रास्ते पर धकेलाअंग्रेजों ने देखा सैकड़ों की संख्या में राजा हैं और वे जाति, धर्म और भाषा के आधार पर बंटे हुए हैंराजा आपस में उलझते चले गए और ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे अपनी फौज खड़ी कर ली

पूर्व प्रधानमंत्री और हिंदुस्तान के हरदिल अजीज अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा एक किस्सा सुनाया करते थे। विदेश मंत्री के रूप में जब वे अफगानिस्तान गए तो वहां के विदेश मंत्री से उन्होंने कहा कि वे गजनी देखने जाना चाहते हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि गजनी क्यों जाना? वह तो एक छोटी सी जगह है, कोई टूरिस्ट स्पॉट भी नहीं है। ठीक-ठाक होटल तक नहीं है!

अटलजी ने कोई कारण नहीं बताया लेकिन वे गजनी की उस धरती को देखना चाहते थे जहां के एक लुटेरे मोहम्मद गजनी ने 17 बार हिंदुस्तान पर हमला किया और न जाने कितनी संपत्ति लूट कर गजनी ले गया!

अपनी गजनी यात्रा की कहानी सुनाने के बाद अटलजी बड़ी गंभीर और कड़वी बात कहते थे कि गजनी से लेकर लुटेरे तैमूर लंग, नादिर शाह और उसके बाद के भी लुटेरों का यह देश सामना इसलिए नहीं कर पाया क्योंकि हम बंटे हुए थे। समाज इतना बंटा हुआ था कि युद्ध में लड़ने की जिम्मेदारी केवल क्षत्रियों की थी!

जरा सोचिए कि यदि हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा उठ खड़ा होता तो क्या किसी गजनी, किसी तैमूर या किसी नादिर की औकात होती कि वह सोने की चिड़िया को लहूलुहान करके जाता? हजारों-हजार लोगों का कत्लेआम करके जाता? या फिर ईस्ट इंडिया कंपनी हम पर कब्जा कर लेती और हम ब्रिटेन के गुलाम हो जाते?

अटलजी आज हमारे बीच नहीं हैं। 15 अगस्त को आजादी दिवस के ठीक अगले दिन यानी 16 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि है। आज जब मैं यूक्रेन को देखता हूं तो अटलजी की याद आती है। रूस की तुलना में यूक्रेन अत्यंत छोटा सा देश है। उसके संसाधन रूस जैसे अपार नहीं हैं।

सैद्धांतिक रूप से युद्ध लड़ने की उसकी क्षमता रूस की तुलना में कुछ भी नहीं है लेकिन उस देश ने दिखा दिया है कि एकजुटता क्या होती है। घर संभालने वाली महिलाओं ने भी हथियार उठा लिए हैं। वियतनाम के युद्ध के बारे में तो आप जानते ही होंगे। उस छोटे से देश ने अपनी एकजुटता की वजह से महाबली अमेरिका को भी घुटने टेकने पर मजबूर किया। अमेरिका को जंग छोड़ कर भागना पड़ा।

हम हिंदुस्तान के ब्रिटिशकालीन इतिहास पर गौर करें तो एक बात स्पष्ट है कि हमारे बीच की फूट ने ही हमें गुलामी के रास्ते पर धकेला। ईस्ट इंडिया कंपनी कोई हथियार लेकर हिंदुस्तान नहीं आई थी। संभव है कि उनका लक्ष्य हिंदुस्तान को गुलाम बनाना रहा हो लेकिन उसका शुरुआती कदम तो व्यापार ही था!

उन्होंने देखा कि सैकड़ों की संख्या में राजा हैं और वे जाति, धर्म और भाषा के आधार पर बंटे हुए हैं। एक-दूसरे से उनकी नहीं पटती। तब अंग्रेजों को लगा कि वे इस देश पर राज कर सकते हैं। उन्होंने राजाओं के बीच वैमनस्य को बढ़ाया। राजा उलझते चले गए। ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे अपनी फौज खड़ी कर ली। उस दौर के अत्याधुनिक हथियार जुटा लिए और ऐसी हालत में आ गए कि 1757 में प्लासी की लड़ाई में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेना को परास्त कर दिया।

बंगाल पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया। इसके बाद भारत के शेष हिस्से भी गुलाम होते चले गए। केवल गोवा  ब्रिटिश सेना के हाथ नहीं आया क्योंकि वहां पुर्तगाल का शासन था यानी वह भी गुलाम था। पॉन्डिचेरी भी पुर्तगालियों के पास था लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी के सहयोग से था।

जरा सोचिए कि देश भर के विभिन्न क्षेत्रों के राजाओं ने यदि मिलकर युद्ध लड़ा होता तो क्या ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल पर कब्जा कर पाती? उस दौर के बंगाल का मतलब है आज का पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, पूर्वोत्तर और बांग्लादेश का बड़ा हिस्सा! प्लासी की लड़ाई के सौ साल बाद 1857 की क्रांति की असफलता का कारण भी हिंदुस्तान की रियासतों का बंटा होना ही था।

ये रियासतें अंग्रेजों की पिट्‌ठू हो गई थीं। इक्के-दुक्के राजा ही विद्रोह कर पा रहे थे। हिंदुस्तान का इतिहास वीर योद्धाओं की वीरगाथा से भरा पड़ा है लेकिन धोखेबाजों की संख्या भी कम नहीं रही। इतिहास में और पीछे लौटें तो हमारा देश कभी अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार तक फैला हुआ था लेकिन उसका विघटन निश्चय ही हमारी फूट के कारण ही हुआ।

बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी जब दक्षिण अफ्रीका से देश लौटे और आजादी का ख्वाब जागा तो हिंदुस्तानी समाज के विखंडन का करुण दृश्य बड़ी बाधा के रूप में उनके सामने था। समाज न जाने कितने हिस्सों में बंटा हुआ था। एक बड़ा वर्ग ऐसा था जो सामाजिक गुलामी की जंजीरों में कैद करके रखा गया था। उसे अछूत करार दे किया गया था। इस स्थिति से निपटने के लिए गांधी ने सबसे पहला प्रहार जातिवाद पर किया।

उन्होंने कहा कि इंसान तो इंसान है। वह अछूत कैसे हो सकता है? सामाजिक षड्यंत्रों को नेस्तनाबूद करने के लिए उन्होंने खुद का मैला उठाने जैसा क्रांतिकारी कदम उठाया। जाति, धर्म और भाषा  से उठकर जब उन्होंने आह्वान किया तो पूरा देश उनके साथ होता चला गया।

वास्तव में वे पहले राष्ट्र नायक थे जिन्होंने सामाजिक एकता में छिपी ताकत को आम आदमी के दिल में उतार दिया। उन्हें पता था कि हथियारों के बल पर ब्रिटिश हुकूमत से नहीं लड़ा जा सकता। इसलिए उन्होंने सदियों से मानसिक गुलामी में जकड़े हिंदुस्तान को जगाने का काम शुरू किया।

गांधीजी के विचारों की व्यापकता देखिए कि जिंदगी भर उन्होंने ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाया और रामराज की कल्पना की लेकिन हर धर्म के प्रति सम्मान रखा। उन्होंने सबसे प्यार किया, भले ही वो किसी भी धर्म को मानने वाला क्यों न हो। इसीलिए वे बैरिस्टर से महात्मा बन गए। पूज्य बापू बन गए! पूरी दुनिया में सत्य, अहिंसा और शांति के दूत बन गए।

इतनी सारी बातों की चर्चा मैंने यहां इसलिए की है ताकि हमें हर पल यह याद रहे कि समाज के भीतर जब किसी भी कारण से अलगाव शुरू होता है तो पूरा देश इससे प्रभावित होता है। दुर्भाग्य से जाति और धर्म की राजनीति आज भी हमारे यहां चल रही है। आज भी ध्रुवीकरण का खौफनाक षड्यंत्र रचा जा रहा है।

न केवल हमारी सरकार बल्कि समाज के हर एक व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना होगा कि समाज में आशंका नाम की कोई चीज न रहे। चाहे मणिपुर का मामला हो या फिर हरियाणा का, ऐसी घटनाएं चिंता पैदा करती हैं। इस मिट्टी का बच्चा-बच्चा हिंदुस्तानी है तो फिर यह हिंसा क्यों, ये वैमनस्य क्यों?

ये देश राम-रहीम की संस्कृति का देश है। धर्म के नाम पर मत कीजिए बंटवारा, ये बड़ा घृणित और महंगा खेल है। आज की जरूरत है कि सारे विष और वैमनस्य की भावना को ताक पर रख दीजिए और आजादी के जश्न में एकजुटता के साथ शामिल होकर कहिए... हिंदुस्तान जिंदाबाद!

Web Title: Dr. Vijay Darda's Blog: Why India became a slave?

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