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डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: कैसे रुकेगी अफवाह की अराजक आंधी ?

By विजय दर्डा | Published: April 24, 2023 7:12 AM

फर्जी खबर के माध्यम से सोशल प्लेटफॉर्म पर आराध्या बच्चन की निजता का हनन इस तरह का कोई पहला मामला नहीं है. न जाने कितने लोग इस तरह की हरकतों से हर रोज प्रताड़ित हो रहे हैं. दूसरे की टोपी उछालने में कुछ लोगों को मजा आता है लेकिन वे एक बार भी नहीं सोचते कि दूसरों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है. वास्तव में पूरी दुनिया इसकी चपेट में है. स्थितियां गंभीर होती जा रही हैं.

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झूठ का खौफनाक मंजरअफवाहों का ये समंदरकिसकी बातों पर ऐतबार करूंयहां तो हर ओर है...हवाओं में उड़ता खंजर वंजर!

इस सप्ताह कॉलम लिखने बैठा तो ये कुछ पंक्तियां जेहन में अचानक उभरीं और शोर मचाने लगीं. मैं सोचने लगा कि वो व्यक्ति कितनी घृणित मानसिकता का होगा जिसने अभिषेक और ऐश्वर्या राय बच्चन की बिटिया आराध्या की बेबुनियाद बीमारी और यहां तक कि मौत की फर्जी खबर सोशल मीडिया पर फैला दी! वीडियो डाल दिए और बिना जाने समझे लोगों ने उसे शेयर भी कर दिया? हम तो दुआ देने और दुआ लेने वाली संस्कृति के लोग हैं, हम किसी के लिए मौत की कल्पना भी कैसे कर सकते हैं? लेकिन आज का सच यही है कि सोशल मीडिया पर ऐसे विकृत मानसिकता वाले लोगों की मौजूदगी लगातार बढ़ रही है.

यह पहली घटना नहीं है जो बच्चन परिवार के साथ हुई है. वे तो कोर्ट चले गए लेकिन ऐसे अनगिनत किस्से हैं. सोशल लाइफ में रहने वाले लोगों के खिलाफ ऐसी हरकतें होती रहती हैं. फिल्म गॉसिप क्या है? नेताओं के खिलाफ भी तो यही होता है. दूसरे की टोपी उछालने में मजा आता है. यह एक तरह का रोग है. वे नहीं सोचते कि दूसरों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है. परिवार पर क्या असर होता है.

आराध्या के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐसे सारे वीडियोज गूगल/यू-ट्यूब से हटाने को कहा है और कोई भी ऐसा वीडियो अपलोड करने पर रोक लगा दी है जिससे आराध्या की निजता को क्षति पहुंचती हो. न्यायालय ने आराध्या से संबंधित फर्जी वीडियो अपलोड करने वाले लोगों के बारे में विस्तृत जानकारी भी मांगी है. गूगल/यू-ट्यूब के लिए यह जानकारी जुटाना महज एक बटन दबाने जैसा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि ये जानकारी न्यायालय तक पहुंचेगी और निश्चय ही गुनहगारों को इसकी सजा भी मिलेगी. 

न्यायालय ने यह भी कहा है कि गूगल/यू-ट्यूब की जिम्मेदारी है कि वह ऐसा कोई वीडियो अपलोड ही न होने दे!  सवाल यहीं खड़ा होता है कि ये प्लेटफार्म्स किस तरह के रवैये का प्रदर्शन कर रहे हैं. भारतीय न्यायालयों ने एक बार नहीं कई बार चेतावनी दी, सरकार ने भी नकेल कसने की कोशिश की लेकिन ये सोशल प्लेटफार्म्स लगातार बचने की कोशिश करते रहे हैं. मुझे समझ में नहीं आता कि आखिर ऐसा क्यों है? क्या इनका दबदबा इतना है कि वे अपनी मनमर्जी करते रहें और उन पर कानून की नकेल न कसी जाए?

एक बात ध्यान रखिए कि ये सारे प्लेटफार्म्स मेलजोल के लिए शुरू हुए लेकिन बड़ी चालाकी से इन्हें सोशल मीडिया कहा जाने लगा. मीडिया जैसी कोई बात इनमें है क्या? मीडिया का मतलब होता है खबरों और मुद्दों के विश्लेषण का प्लेटफार्म! अखबार से लेकर टीवी चैनल तक और यहां तक कि वेबसाइट पर भी खबरों को लेकर जांच-पड़ताल और उसकी महत्ता को सुनिश्चित किए जाने का प्रावधान होता है. इन प्लेटफार्म्स पर काम करने वाले पत्रकार यह सुनिश्चित करते हैं कि कुछ गलत न छप जाए लेकिन सोशल साइट्स पर इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है! 

गूगल हो, यू-ट्यूब हो, ट्विटर, इंस्टाग्राम या फिर फेसबुक हो, आप कुछ भी लिख सकते हैं, कुछ भी अपलोड कर सकते हैं. इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि आप क्या अपलोड कर रहे हैं. आप फेसबुक देख रहे हैं और अचानक कोई ऐसी रील आपके सामने आ जाएगी जो आपको शर्मिंदा कर देगी. गाली-गलौज की बात तो छोड़िए, यौनाचार से जुड़े शब्द भी हवा में गूंजने लगते हैं. आखिर कहीं न कहीं इसे लेकर रोक-टोक तो होनी ही चाहिए. जब सरकार नकेल कसने की सोचती है तो लोग हल्ला मचाने लगते हैं. लेकिन खुद के विवेक का इस्तेमाल नहीं करते हैं. आखिर सरकार तो आपकी ही है और लोकतंत्र में सरकार भी आप ही हैं! फिर कौन निकालेगा निदान?

मैं आईटी की संसदीय कमेटी का सदस्य रहा हूं. मैंने करीब से सारी चीजों को जाना और समझा है.  मानता हूं कि इंटरनेट जानकारियों का खजाना है और इसने दुनिया की तस्वीर बदली है लेकिन हमें इस बात पर भी तो गौर करना होगा कि लोगों के सामने परोसा क्या जा रहा है और लोग देख क्या रहे हैं? हर चीज का अच्छा और बुरा पक्ष होता है. हमें बैलेंस बनाने की जरूरत होती है. कुछ लोगों की गलतियों का खामियाजा सोशल प्लेटफॉर्म पर मौजूद अच्छे लोगों को भी भुगतना पड़ रहा है.

अभी हाल ही में सोशल मीडिया पर अचानक ऐसे वीडियो वायरल होने लगे कि तमिलनाडु में बिहार के मजदूरों को मारपीट कर भगाया जा रहा है. बिहार में लोग आगबबूला हो गए तो तमिलनाडु में सरकार भी हैरत में पड़ गई कि ऐसी किसी घटना की जानकारी सरकारी मशीनरी को क्यों नहीं लगी? ताबड़तोड़ जांच-पड़ताल हुई तो पता चला कि बिहार के एक यू-ट्यूबर मनीष कश्यप ने यह फितूर रचा था. तमिलनाडु में ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं थी. 

कई वीडियो तो तमिलनाडु से बाहर के और बहुत पुराने थे. एक वीडियो तो होली में घर जा रहे मजदूरों का था जिसे मनीष ने पलायन के रूप में दिखाया. स्वाभाविक है कि लोगों ने उस पर पहली नजर में विश्वास कर लिया. मुझे वसीम बरेलवी का एक शेर याद आ रहा है...

वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके सेमैं ऐतबार न करता तो और क्या करता?

मनीष इस समय कानूनी  शिकंजे में है लेकिन सवाल फिर वही है कि यू-ट्यूब ने बिना जांचे-परखे इस तरह के वीडियो अपलोड ही क्यों होने दिए? दरअसल ऐसे किसी अंकुश का कोई प्रावधान है ही नहीं!  आपको जानकर हैरानी होगी कि ट्विटर ने तो अपनी ट्रस्ट एंड सेफ्टी काउंसिल को ही भंग कर दिया. उसके बाद क्या व्यवस्था की, इसकी आज तक कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है. 

संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने तो यहां तक कहा है कि  सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से ऐसा माहौल बनाया जाता है, जो नफरत को फैलाता है. कम से कम भारत में तो हम यह देख ही रहे हैं और उसका खामियाजा भी भुगत रहे हैं. हमारे सामाजिक ताने-बाने पर इसका असर हो रहा है. शारिक कैफी का एक शेर है...

झूठ पर उसके भरोसा कर लियाधूप इतनी थी कि साया कर लिया.

...तो ये सतर्क रहने का समय है. इतनी सारी चीजें, इतनी तेजी से आपके सामने परोसी जा रही हैं कि भ्रम की स्थिति पैदा होना स्वाभाविक है. अपने दिमाग से काम लीजिए. ...वर्ना अफवाह की ये आंधी आपको बेजार भी कर सकती है...!

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