डॉक्टर विजय दर्डा का ब्लॉग: आओ, नववर्ष में जी लें, क्यों न कुछ बातें जिंदगी की कर लें!

By विजय दर्डा | Published: January 1, 2024 06:53 AM2024-01-01T06:53:20+5:302024-01-01T07:02:26+5:30

मौका चूंकि नए साल का है तो मैंने सोचा कि क्यों न कुछ बातें जिंदगी की कर लें, जिंदगी जीने की कर लें, वक्त की कर लें।

Dr. Vijay Darda's Blog: Come, let's live in the New Year, why not do some things about life! | डॉक्टर विजय दर्डा का ब्लॉग: आओ, नववर्ष में जी लें, क्यों न कुछ बातें जिंदगी की कर लें!

फाइल फोटो

Highlightsमौका चूंकि नए साल का है तो मैंने सोचा कि क्यों न कुछ बातें जिंदगी की कर लेंवक्त रेत की तरह हाथ से फिसलता जा रहा है तो फिर क्यों न उसी वक्त की बात कर लें।निजी जिंदगी में हम पाने की लालसा में लगातार बहुत कुछ खोते जा रहे हैं!

मैं कशमकश में था कि इस बार अपने कॉलम में पिछले सप्ताह नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन पर लिखूं या निजी जिंदगी पर लिखूं जहां हम पाने की लालसा में लगातार बहुत कुछ खोते जा रहे हैं! जिन्हें हम पाना चाहते वो तो हाथ से फिसलते जा रहे हैं और जो हमारे पास हैं वो पास होकर भी दूर होते जा रहे हैं! मौका चूंकि नए साल का है तो मैंने सोचा कि क्यों न कुछ बातें जिंदगी की कर लें, जिंदगी जीने की कर लें, वक्त की कर लें।

मैं अपने बारे में सोच रहा था, जाहिर सी बात है कि आप सब भी अपने बारे में सोचते ही होंगे। आप में से कोई राजनीति में होगा, कोई सामाजिक जिंदगी में, कोई विज्ञान या कला के क्षेत्र में, कोई शिक्षा क्षेत्र में, कोई उद्योग और व्यवसाय में या फिर किसी और क्षेत्र में होगा, लेकिन एक गंभीर सवाल है, क्या हम या आप अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे पाते हैं?

कुछ लोग ध्यान दे पाते हैं लेकिन हकीकत यही है कि ज्यादातर लोग अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। मैं खुद भी अपने स्वास्थ्य के बारे में सोचता हूं कि मुझे ध्यान देना चाहिए लेकिन वस्तुस्थिति यही है कि ध्यान मैं देता नहीं हूं। बहुत कुछ चाहता हूं लेकिन कर नहीं पाता हूं। मैं चाहता हूं कि रोजमर्रा की जिंदगी में मैं गीत लिखूं, गजलें लिखूं , भाव भी उठते हैं लेकिन लिख नहीं पाता हूं।

मुझे रंगों से बेइंतहा प्यार है और रंगों से खेलना भी खूब जानता हूं, मुझे कूची से मोहब्बत है लेकिन चाह कर भी पेंटिंग नहीं कर पाता हूं! मैं चाहता हूं कि दोस्तों के साथ कुछ हसीन पल बिताऊं लेकिन नहीं बिता पाता हूं!

मुझे लगता है कि मुझे अपने स्वजनों के साथ कुछ न कुछ वक्त गुजारना चाहिए। यदि कभी इकट्ठा हो भी जाते हैं तो मेरा मन उन पर अटका होता है जो वहां नहीं होते हैं। जो पास न हो उसकी चिंता में डूबने की वजह से उनके साथ के आनंद से कुछ न कुछ वंचित रह जाता हूं। अभी मैं अपने काम से विदेश आया था लेकिन मेरा मन भटक रहा था, मैं कहीं और था...! मैं कशमकश में था।

मैं इस उलझी हुई जिंदगी को सुलझाने के बारे में सोच रहा था क्योंकि वक्त हर पल खिसकता जा रहा है। जिस तरह रेत मुट्ठी से फिसल जाती है, उसी तरह वक्त फिसलता चला जाता है तो क्यों न कुछ ऐसा करें कि यह एहसास जगे कि कुछ अपनी चाहत की कर ली है! मैं चाहता हूं, आप भी चाहते होंगे कि मन के हिसाब से जीएं। किसी का बेवजह दबाव न हो, किसी की सलाह का घना साया न हो। इसमें कोई हर्ज भी नहीं है लेकिन मन के हिसाब से जीने का यह मतलब नहीं होना चाहिए कि भीतर से उपजने वाले आलस के साथ जिएं!

जिंदगी जीने का सही मतलब है मकसद के साथ जीना। नई सोच के साथ जीना। हर रोज सोचना कि क्या हमारे भीतर नवसृजन हो रहा है? हम जो कर रहे हैं, उसका प्रतिफल क्या है? जो लोग वाकई ऐसा सोचते हैं वे भीड़ से अलग नजर आते हैं। ऐसे लोग समय के साथ बेहतर और योग्य व्यवहार करना जानते हैं। वे वक्त की कीमत को जानते हैं, वे संयमित होते हैं, वे अनुशासन से बंधे होते हैं।

यदि महात्मा गांधी ने एक सामान्य मनुष्य की तरह ऐशो-आराम की जिंदगी जीने के बारे में सोचा होता तो क्या हम आज आजाद होते। वे तो उस जमाने में बैरिस्टर थे! चाहते तो शानदार जिंदगी जीते! लेकिन उनके भीतर से आवाज आई...गुलामी की जंजीर को तोड़ना है। उन्होंने कितने सारे विषयों को छुआ! यदि रवींद्रनाथ टैगोर के अंतर्मन में नई कोंपलें नहीं फूटी होतीं तो क्या वे वह रवींद्रनाथ टैगोर बन पाते जो हमारे हृदय में बसते हैं! आप खिलाड़ियों को ही देखिए न! वे कितना अनुशासित जीवन जीते हैं! खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से संतुलित और स्वस्थ रखने के लिए कितनी मशक्कत करते हैं।

बात केवल खेल की नहीं है, हर क्षेत्र में जो लोग भी ऊंचाई पर जाते हैं, उनके पास केवल सोच, लक्ष्य, एकाग्रता या कौशल की धरोहर ही नहीं होती है, बल्कि उनके पास वह अनुशासन होता है जो इन सारी चीजों को फलदायी बनाता है।

सामान्य तौर पर आम लोगों की समस्या यही है कि वे व्यस्त कम और अस्त-व्यस्त ज्यादा हैं। इसका बड़ा कारण मुझे तो यही लगता है कि वक्त का वे सदुपयोग नहीं कर पाते हैं। जब तक आप वक्त का सम्मान करना नहीं सीखेंगे तब तक इस तरह की अस्त-व्यस्तता बनी रहेगी। जब आप समय के बीच पिसते रहेंगे तो नई सोच को अंकुरित होने का मौका कैसे मिलेगा? नई सोच तो तभी अंकुरित होगी न जब आप भागदौड़ के बीच भी दिमाग को शांत रखेंगे। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि अपनी दिनचर्या के बीच मन को शांत रखा जाए और हम क्या बेहतर कर सकते हैं, क्या नया रच सकते हैं, इस पर ध्यान केंद्रित करें।

सुबह उठना, काम पर जाने की जद्दोजहद, दिन भर काम में जुटे रहना और शाम ढले घर लौटकर सो जाना ही जिंदगी नहीं है। यदि हम अपने क्रियाकलापों को वक्त के हिसाब से करें, समय का पूरी तरह पालन करें तो आप देखेंगे कि पहले की तुलना में आप ज्यादा काम भी कर पा रहे हैं और निजी शौक के लिए आपके पास समय भी बच रहा है।

बहुत जरूरी है कि थोड़ा वक्त अपने लिए निकालिए। घूमिए, योग कीजिए, कसरत कीजिए! जब आप स्वस्थ रहेंगे तभी उम्मीदों का नवरंग रच पाएंगे। अपनी उम्मीदें पूरी कर पाएंगे। एक बात और कहना चाहूंगा कि निजी जिंदगी की खुशियों को पर तभी लगेंगे जब आपके आसपास भी खुशियां फैलेंगी। तो इस साल यह संकल्प लीजिए कि खुद के लिए तो खुशियों का सृजन करेंगे ही, आसपास को भी खुशियों से सराबोर करेंगे। नए साल के लिए कुछ भाव मेरे भीतर उपज रहे हैं...

आओ नववर्ष में जी लें...!
प्यार का प्याला पी लें
जो मेरे हैं, जो तेरे हैं
उनके साथ जिंदगी जी लें...!

Web Title: Dr. Vijay Darda's Blog: Come, let's live in the New Year, why not do some things about life!

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