डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: कोविड के बाद फिर खड़ी हो सकती है अर्थव्यवस्था

By डॉ एसएस मंठा | Published: October 6, 2020 03:07 PM2020-10-06T15:07:08+5:302020-10-06T15:07:08+5:30

नौकरियां जाने से लोगों को सिर्फ वित्तीय दिक्कतें ही नहीं झेलनी पड़तीं बल्कि इससे लोगों के समग्र मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी भारी असर पड़ता है.

Dr. S.S. Mantha's blog: economy can stand again after covid-19 | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: कोविड के बाद फिर खड़ी हो सकती है अर्थव्यवस्था

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

कुछ समुदायों को छोड़कर जो स्वाभाविक रूप से उद्यमी और जोखिम लेने वाले हैं, देश में बहुत से लोग ऐसे हैं जो जोखिम लेने से बचते हैं और नियमित रोजगार चाहते हैं. केवल पर्याप्त रोजगार उत्पन्न करने वाली व्यवस्था ही रोजगार चाहने वालों के दबाव को झेल सकती है. रोजगार पहले भी पर्याप्त संख्या में सृजित नहीं हो रहे थे और हर साल बमुश्किल नौकरी चाहने वालों में 30 प्रतिशत को ही रोजगार के अवसर मिल पा रहे थे. उस पर महामारी के कारण करोड़ों लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है.

ये नौकरियां कहां थीं? वे प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक और चतुर्थक क्षेत्रों में थीं. प्राथमिक रोजगार क्षेत्र में प्राकृतिक वातावरण जैसे खनन, खेती और मछली पालन से प्राप्त होने वाली नौकरियां शामिल हैं. माध्यमिक क्षेत्र की नौकरियों में विनिर्माण शामिल है जैसे स्टील और कार का उत्पादन. तृतीयक नौकरियों में सेवाएं प्रदान करना शामिल है जैसे शिक्षण, नर्सिग और खुदरा बाजार. चतुर्थक क्षेत्र की नौकरियों में अनुसंधान और विकास शामिल है.

इनमें से अधिकांश क्षेत्र केवल 10 प्रतिशत नियमित नौकरियों का ही सृजन करते हैं. शेष 90 प्रतिशत रोजगार अनियमित क्षेत्र प्रदान करता है जिनमें घरेलू कर्मचारी, फुटपाथ विक्रेता, अपशिष्ट बीनने वाले, खेत श्रमिक आदि शामिल होते हैं.

नौकरियां जाने से लोगों को सिर्फ वित्तीय दिक्कतें ही नहीं झेलनी पड़तीं बल्कि इससे लोगों के समग्र मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी भारी असर पड़ता है. हमारी नौकरियां सिर्फ हमारे जीवन यापन का साधन भर नहीं होती हैं बल्कि वे इस पर भी असर डालती हैं कि हम अपने आप को कैसे देखते हैं और साथ ही दूसरे हमें कैसे देखते हैं. मनोचिकित्सक और लेखक मॉर्गन स्कॉट पेक की पुस्तक ‘द रोड लेस ट्रैवेल्ड’ 1978 में प्रकाशित हुई थी.

उसमें वे लिखते हैं, ‘‘सच्चाई यह है कि हमारे सबसे अच्छे क्षण तब होते हैं जब हम गहराई से असहज, दु:खी या अधूरापन महसूस कर रहे होते हैं. क्योंकि केवल उन्हीं क्षणों में ही, जब हम परेशानी में होते हैं, हमारे अपने दायरे से बाहर निकलने और उन अलग-अलग रास्तों की खोज करने की संभावना होती है, जिनसे हमें वास्तविक हल मिल सकता है.’’

निश्चित रूप से महामारी के इन दिनों में जीवन कठिन रहा है. हम जहां भी हैं या रह रहे हैं, हमारा जीवन बाधित हुआ है. शायद अपने जीवन में पहली बार हम किसी भी प्रकार से अवलंबित हो गए हैं. हमने अपने छोटे व्यवसायों को अस्थायी रूप से या शायद स्थायी रूप से भी बंद कर दिया है. लेकिन हमें नई संभावनाओं की तलाश करनी चाहिए और बदलावों को आत्मसात करके आगे बढ़ने का लचीलापन अपने भीतर रखना चाहिए. महामारी हमेशा नहीं रहेगी और इसके खत्म होते ही अवसरों में वृद्धि होगी.

Web Title: Dr. S.S. Mantha's blog: economy can stand again after covid-19

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