डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: एपीओपी : एक पोर्टल पर उपलब्ध हों सभी उत्पाद

By डॉ एसएस मंठा | Published: August 29, 2020 06:05 PM2020-08-29T18:05:58+5:302020-08-29T18:07:29+5:30

अगर प्रत्येक किसान अपनी आधार पहचान और भौगोलिक स्थिति के रूप में पोस्टल कोड के साथ अपनी कृषि भूमि का क्षेत्रफल, फसल उत्पादन और खपत के अनुमान को किसी एक पोर्टल पर दर्ज कर सके तो इसकी मार्केटिंग की एक बड़ी संभावना को साकार किया जा सकता है.

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डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: एपीओपी : एक पोर्टल पर उपलब्ध हों सभी उत्पाद

अरस्तू ने एक बार कहा था, ‘संपूर्ण अपने भागों के योग से अधिक है.’ मैं सोच रहा था कि क्या ‘वन नेशन: वन मार्केट’ बनाने के बजाय, क्या हमें कोविड-19 के बाद ‘ऑल प्रोड्यूसर्स ऑन वन पोर्टल (एपीओपी)’ अर्थात एक पोर्टल पर सभी उत्पादकों को नहीं लाना चाहिए?

इस कोविड ने बाजारों को बहुत उथल-पुथल और अनिश्चितता में धकेल दिया है जो जोखिमों से लड़ रहे हैं. बाजार अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं. यदि हम दूसरी छमाही में उछाल देखना चाहते हैं, तो न केवल बाजार, बल्कि उनकी आपूर्ति शृंखलाओं के लिए भी नवीन रणनीतियों की आवश्यकता है. जैसा कि हम लॉकडाउन को धीमी गति से हटते हुए देखते हैं और जल्द ही सामान्य स्थिति में लौटने की उम्मीद करते हैं, धीमे विकास के साथ दिवालिया होने और दीर्घकालिक बेरोजगारी का जोखिम बहुत अधिक होगा.

अनिश्चितता से बचने का सबसे अच्छा तरीका भविष्यवाणी करना है! एक अंधी गली में खो जाने का एहसास होने के बजाय भविष्यवाणी करना एक रास्ता है.अर्थव्यवस्था किसी भी कमी को पूरा करने के लिए उपयोग किए जाने वाले आयात के साथ घरेलू उत्पादों पर आधारित होती है.

उत्पादन या उपभोग, दोनों में से कौन अर्थव्यवस्था को संचालित करता है? कोई ऐसी चीज कैसे खरीद सकता है जो बिलकुल भी उत्पादित न हो? समस्या यह है कि जब तक कुछ पैदा नहीं होता है, तब तक अर्थव्यवस्था में उत्तेजना नहीं हो सकती है. हालांकि, खपत अर्थव्यवस्था की सच्चा चालक है. गोदामों और जहाजों को भरा रखने भर से किसी का हित नहीं होता है. पिछले साल, हमने 275 मिलियन टन खाद्यान्न या वैश्विक उत्पादन का 25% उत्पादन किया और दुनिया का 27% उपभोग किया.

मांग और उपभोग मूल्य निर्धारित करते हैं, इसके विपरीत किसान आलू, प्याज या सब्जियां उगाते हुए असहाय हो जाता है. बंपर उत्पादन होने पर मूल्य इतना गिर जाता है कि पर्याप्त समर्थन मूल्य के अभाव में वे अपनी उपज को सड़कों पर डम्प करने के लिए मजबूर हो जाते हैैं और सरकार मूकदर्शक बनी देखती रहती है.

भारत में आलू, प्याज या सब्जी की खेती ज्यादातर ताजा बाजार के लिए होती है. अगर उन्हें जल्दी नहीं बेचा गया तो वे सड़ जाते हैं. आलू के उत्पादन के लिए रोज छह घंटे सूरज की रोशनी की जरूरत होती है और देश के अधिकांश स्थानों में 300 दिनों तक यह उपलब्ध होती है. प्याज की पैदावार आमतौर पर किसी भी मिट्टी में हो जाती है. लेकिन इन दोनों को पैदावार के बाद प्रक्रिया के बाजार की जरूरत होती है. एपीओपी को उन्हें कैनिंग, फ्रीजिंग, निर्जलीकरण और अचार जैसे प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करने के लिए प्रौद्योगिकी समर्थन प्रदान करना चाहिए और रोपण के लिए बीज उपलब्ध कराना चाहिए.

हकीकत यह है कि खपत के आंकड़े और यहां तक कि आयात के आंकड़े भी उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन प्रमुख फसलों के अलावा अन्य फसलों के उत्पादन का कोई अनुमान नहीं लग पाता. इसे हासिल करने का तरीका आधार में है. यह अकेले उत्पादन और मूल्य निर्धारण की भविष्यवाणी कर सकता है.

अगर प्रत्येक किसान अपनी आधार पहचान और भौगोलिक स्थिति के रूप में पोस्टल कोड के साथ अपनी कृषि भूमि का क्षेत्रफल, फसल उत्पादन और खपत के अनुमान को किसी एक पोर्टल पर दर्ज कर सके तो इसकी मार्केटिंग की एक बड़ी संभावना को साकार किया जा सकता है. इससे एक सक्रिय और मजबूत आपूर्ति शृृंखला भी बनाई जा सकेगी. निरक्षर लोगों के लिए पटवारी या राजस्व अधिकारी इस काम में सहायता कर सकता है. सरकार फिर इस तरह के डाटा के साथ अपनी भंडारण सुविधाओं को बढ़ा सकती है और बाजारों के साथ साझा कर सकती है, जिससे खरीदारों को सीधे डाटा का उपयोग करके खेतों तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.

अगर कृषि को लाभदायक बनाना है, तो बाजार की साझेदारी बहुत जरूरी है. एपीओपी में उत्पादकों को व्यापारियों से पोर्टल पर उपज की मांग और कृषि उपज के उपलब्ध स्टॉक को देखने की व्यवस्था होनी चाहिए. यह भी पता चलना चाहिए कि उत्पाद की गुणवत्ता क्या है और वह कितने समय से स्टोर में है. इससे संभावित खरीदार सामने आते हैं. व्यापारी उत्पादकों के उपलब्ध स्टॉक देख सकेंगे और विभिन्न कृषि उत्पादों की विशिष्ट किस्मों के लिए अपनी मांग को आगे बढ़ा सकेंगे.

इस व्यवस्था का एकमात्र उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसानों का बिचौलियों के द्वारा शोषण न हो. एपीएमसी एक्ट (कृषि उपज विपणन समिति) का उद्देश्य बहुत नेक है. लेकिन क्या इससे किसान को फायदा हुआ है? इसलिए एपीओपी व्यवस्था लाए जाने पर विचार किया जाना चाहिए.

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