डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉग: कोरोना वायरस के डर से नमस्ते को अपनाने की ओर बढ़ती दुनिया
By डॉ शिवाकान्त बाजपेयी | Published: March 22, 2020 09:52 AM2020-03-22T09:52:09+5:302020-03-22T09:52:09+5:30
‘नमस्ते’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत से हुई है जिसका अर्थ है आपको नमन अर्थात् नम्रता के साथ अभिवादन करना. यदि इस शब्द की प्राचीनता और प्रचलन के संदर्भ में विचार करें तो इसका प्रयोग वैदिक काल से ही दिखाई देता है और रामायण, महाभारत एवं पुराणों में तो इस शब्द का प्रचुरता से प्रयोग किया गया है. इस प्रकार हमारा नमस्ते दुनिया के सर्वाधिक प्राचीनतम अभिवादनों में गिना जा सकता है.
पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सम्मान में अहमदाबाद में नमस्ते ट्रम्प नामक भव्य कार्यक्र म की पूरी दुनिया में व्यापक चर्चा हुई थी. हालांकि यह चर्चा एक लाख से अधिक लोगों की उपस्थिति के कारण अधिक थी किंतु उस पूरे कार्यक्रम में आकर्षण का केंद्रबिंदु एक ही शब्द था नमस्ते. जी हां, आज नमस्ते की पूरे विश्व में चर्चा है और उसे अपनाने के लिए सभी लालायित हैं. इस भारतीय संबोधन को प्रयोग में लाने की अपील अमेरिका, इजराइल, फ्रांस सहित दुनिया के अनेक राष्ट्राध्यक्षों द्वारा की जा रही है. किंतु ये अपील यूं ही नहीं है.
जैसा कि हम सभी जानते हैं, इस समय भारत समेत दुनिया के अधिकतर देश कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहे हैं. यह बीमारी लोगों में एक दूसरे के संपर्क में आने, हाथ मिलाने से, (जो कि वैश्विक स्तर पर अभिवादन करने का सर्वाधिक प्रचलित तरीका है) होती है. कोरोना के खौफ के चलते ही सही, आज नमस्ते दुनिया के अभिवादन करने के विभिन्न तरीकों में सर्वाधिक आसान और लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है जिसमें किसी को स्पर्श करने की जरूरत नहीं होती.
‘नमस्ते’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत से हुई है जिसका अर्थ है आपको नमन अर्थात् नम्रता के साथ अभिवादन करना. यदि इस शब्द की प्राचीनता और प्रचलन के संदर्भ में विचार करें तो इसका प्रयोग वैदिक काल से ही दिखाई देता है और रामायण, महाभारत एवं पुराणों में तो इस शब्द का प्रचुरता से प्रयोग किया गया है. इस प्रकार हमारा नमस्ते दुनिया के सर्वाधिक प्राचीनतम अभिवादनों में गिना जा सकता है. प्राय: देवी-देवताओं के आह्वान के संदर्भ में इसका बहुधा नाम लिया जाता है यथा सूर्याय नम:, चंद्राय नम: आदि और ओम नम: शिवाय तो इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है.
जैसे ही हम नमस्कार के लिए करबद्ध होते हैं उस स्थिति में हाथ हमारे वक्षस्थल(छाती) पर होते हैं और सिर को भी झुकाना होता है और इस प्रकार की स्थिति में शरीर में स्थित अनाहत चक्र, आज्ञा चक्र आदि भी सक्रिय हो जाते हैं. वैसे भी नमस्ते एक प्रकार की योग मुद्रा भी है जिसके प्रयोग से भिन्न प्रकार के लाभ भी होते हैं.
भाषा शास्त्नीय अध्ययन के आधार पर यहां यह भी उल्लेखनीय है कि संस्कृत की इसी नम धातु से नमस भी बना है और यह अपनी यात्ना करते हुए प्राचीन पारसी ग्रंथ जेंद अवेस्ता में निमह, और पहलवी में नमास हो गया जो बाद में फारसी में नमाज के रूप में शामिल हो गया. रोचक यह है कि अरबी में भी यह शब्द फारसी से आया है तथा अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी में इससे बने अनेक शब्द मिलते हैं जैसे नमाजी, निमाज, नमाजगुजार आदि.