डॉ. प्रणव पण्ड्या का ब्लॉग: भारतीय संस्कृति में यज्ञ को दिया गया है अपूर्व महत्व

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: December 2, 2023 11:58 AM2023-12-02T11:58:36+5:302023-12-02T12:01:53+5:30

पहले बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी यज्ञ के रहस्य को भली प्रकार समझते थे ओर बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन किया करते थे। महाराजा रघु ने दिग्विजय के उपरांत विश्वजित नामक यज्ञ में समस्त खजाना खाली कर दिया था। उनके पास धातु का एक पात्र तक नहीं बचा था।

Dr. Pranav Pandya's blog Yagya has been given unprecedented importance in Indian culture | डॉ. प्रणव पण्ड्या का ब्लॉग: भारतीय संस्कृति में यज्ञ को दिया गया है अपूर्व महत्व

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsकहा गया है कि, स्वास्थ्य सुख संपत्ति दाता, दुःखहारी यज्ञ हैभूलोक से ले सूर्य तक, शुभ परम पावन यज्ञ हैपापियों की शुद्धि यज्ञादि से हो जाती है

नई दिल्ली: यज्ञ भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। हिंदू धर्म में जितना महत्व यज्ञ को दिया गया है, उतना और किसी को नहीं दिया गया। हमारा कोई भी धर्म कार्य इसके बिना पूरा नहीं होता। जन्म से मृत्यु तक सभी संस्कारों में यज्ञ आवश्यक है। हमारे धर्म में वेदों का जो महत्व है, वही महत्व यज्ञों को भी प्राप्त है क्योंकि वेदों का प्रधान विषय ही यज्ञ है। वेदों में यज्ञ के वर्णन पर जितने मंत्र हैं, उतने अन्य किसी विषय पर नहीं। यदि यह कहा जाए कि यज्ञ वैदिक धर्म का प्राण है, तो इसमें भी अत्युक्ति नहीं. वैदिक धर्म यज्ञ प्रधान धर्म है। यज्ञ को निकाल दें तो वैदिक धर्म निष्प्राण हो जाएगा. यज्ञ से ही समस्त सृष्टि उत्पन्न हुई।

भगवान स्वयं यज्ञ रूप हैं और तदुत्पन्न संपूर्ण सृष्टि भी यज्ञ रूप है, तो यज्ञ के अतिरिक्त संसार में कुछ है ही नहीं। चारों वेद भी इस यज्ञ रूप भगवान से उत्पन्न हुए हैं, अतः यह भी यज्ञ रूप है और उनमें जो कुछ भी है, वह भी यज्ञ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद में प्रश्न पूछा है कि मैं तुमसे पूछता हूं कि संपूर्ण जगत को बांधने वाली वस्तु कौन है? इसका उत्तर दिया है कि यज्ञ ही इस विश्व ब्रह्मांड को बांधने वाला है।

कहा गया है कि, स्वास्थ्य सुख संपत्ति दाता, दुःखहारी यज्ञ है। भूलोक से ले सूर्य तक, शुभ परम पावन यज्ञ है। इसलिए प्राचीन काल में घर-घर में यज्ञ होते थे, इस पुण्यभूमि में इतने यज्ञ होते रहे कि हमारा देश ही यज्ञीय देश कहलाया। पहले बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी यज्ञ के रहस्य को भली प्रकार समझते थे ओर बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन किया करते थे। महाराजा रघु ने दिग्विजय के उपरांत विश्वजित नामक यज्ञ में समस्त खजाना खाली कर दिया था। उनके पास धातु का एक पात्र तक नहीं बचा था। पांडवों ने भगवान कृष्ण की अनुमति से महाभारत के बाद राजसूय यज्ञ कराया था। भगवान राम ने अश्वमेधादि बहुत बड़े-बड़े यज्ञ कराए थे। दैत्यराज बलि ने इतना बड़ा यज्ञ कराया था कि यज्ञ की शक्ति से सम्पन्न होकर उसने इंद्र को स्वर्गलोक से निकाल दिया था। यज्ञ ही विष्णु है, यज्ञ ही प्रजापति है, यज्ञ ही सूर्य है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है- मैं ही यज्ञ हूं। उन्होंने अनेक स्थलों पर उपदेश देते हुए बताया-यज्ञ न करने वाले को यह लोक और परलोक कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

यज्ञ के निमित्त किए गए कर्मों के सिवाय दूसरे कर्मों के करने से यह मनुष्य कर्म बंधन में बंधता है। तीर्थों की स्थापना का आधार यज्ञ ही थे. जहां प्रचुर मात्रा में बड़े-बड़े यज्ञ होते थे, उसी स्थान को तीर्थ माना जाता था। प्रयाग, काशी, रामेश्वरम्, कुरुक्षेत्र, नैमिषारण्य आदि सभी क्षेत्रों में तीर्थों का उद्भव यज्ञों से ही हुआ है। यज्ञों से ही बहुत से सत्पुरुष देवता बने हैं। पापियों की शुद्धि यज्ञादि से हो जाती है।

Web Title: Dr. Pranav Pandya's blog Yagya has been given unprecedented importance in Indian culture

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