डॉ. नितिन देशपांडे का ब्लॉग: सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ाएं मानवता का हाथ

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 1, 2019 08:40 AM2019-05-01T08:40:08+5:302019-05-01T08:40:08+5:30

वर्ष 2018 से तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. पराग संचेती ने एक मई को स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में लोकोपयोगी उपक्रमों का आयोजन शुरू किया. इसी क्रम में इस वर्ष 27 अप्रैल से चार मई तक राज्य भर में इस तरह के उपक्रम सभी जिला शाखा व सभी सदस्यों की मदद से चलाए जा रहे हैं.

Dr Nitin Deshpande's Blog: Humanity's in Road Accidents | डॉ. नितिन देशपांडे का ब्लॉग: सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ाएं मानवता का हाथ

डॉ. नितिन देशपांडे का ब्लॉग: सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ाएं मानवता का हाथ

महाराष्ट्र ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन की स्थापना एक मई 1983 को हुई थी. शुरुआती दौर में इस संगठन ने आमतौर पर नई जानकारियों और नए तकनीकी ज्ञान के प्रसार के लिए काम किया. जरूरत पड़ने पर आपदा के समय में उसने जनोपयोगी कार्य भी किए, जैसे लातूर में भूकंप, गुजरात में भूकंप, नेपाल में भूकंप, सुनामी आदि के दौरान.

वर्ष 2018 से तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. पराग संचेती ने एक मई को स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में लोकोपयोगी उपक्रमों का आयोजन शुरू किया. इसी क्रम में इस वर्ष 27 अप्रैल से चार मई तक राज्य भर में इस तरह के उपक्रम सभी जिला शाखा व सभी सदस्यों की मदद से चलाए जा रहे हैं. यह उपक्रम सामाजिक संस्थाओं, स्कूल-कॉलेजों व अन्य संस्थाओं में आयोजित किए जा रहे हैं.

इसके अंतर्गत दो प्रमुख बातों का समावेश है. पहला तो यह कि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद के बारे में जानकारी लोगों को दी जा रही है, और इस विषय में व्याप्त डर तथा नकारात्मक वातावरण को बदलने का प्रयास किया जा रहा है. आमतौर पर देखने में आता है कि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को समय पर मदद नहीं मिलने से उसकी मृत्यु हो जाती है या वह विकलांग हो जाता है. 

राहगीरों द्वारा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद नहीं करने के पीछे प्रमुख कारण लोगों में व्याप्त यह भय दिखाई देता है कि इससे वे कोर्ट-कचहरी और पुलिस के चक्कर में पड़ जाएंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मार्गदर्शक तत्वों के अनुसार, दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद के लिए आगे आने वाले व्यक्ति को ‘गुड समरिटान’ (नेक आदमी) की संज्ञा दी गई है. ऐसे व्यक्ति के लिए अपना नाम और पता पुलिस को बताने की बाध्यता नहीं है. पुलिस ऐसे ‘नेक आदमी’ को दुर्घटना का गवाह बनाने के लिए भी सख्ती नहीं कर सकती. साथ ही उसे पूछताछ के लिए थाने में भी नहीं बुला सकती. इसलिए सबसे जरूरी है रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद के लिए रुकना और इसके बाद आपातकालीन नंबर पर संपर्क करके दुर्घटना स्थल, दुर्घटना के प्रकार और दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के बारे में जानकारी देना.  

दूसरी प्रमुख बात पुलिस, न्याय संस्था और डॉक्टरों के बीच संबंधों के सुधार के बारे में है. कई बार ऐसा देखने में आता है कि उपचार के दौरान कोई अनहोनी होने पर, डॉक्टरों की कोई गलती नहीं होने पर भी उन पर हमले होते हैं और ऐसे समय में पुलिस तथा न्याय व्यवस्था भी डॉक्टरों के खिलाफ भूमिका अख्तियार कर लेते हैं. इस बारे में पुलिस व न्याय व्यवस्था के संबंधित अधिकारियों से मिलकर, उनसे चर्चा करके अधिकारियों को समझाने तथा नियमानुसार कार्यवाही करने व डॉक्टरों को संरक्षण देने के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सभी को प्रयत्न करना चाहिए.

Web Title: Dr Nitin Deshpande's Blog: Humanity's in Road Accidents

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