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ब्लॉग: क्या डॉक्टर बिना सफेद कोट के अपना विरोध प्रदर्शित करेंगे?

By सूर्य कांत सिंह | Updated: June 15, 2019 16:52 IST

कोट लाल, हरा या नीला तो हो नहीं सकता क्योंकि अब रंग-रंग की राजनीतिक पहचान है । भगवा पहन लेने पर एक राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में पहचाने जाने का खतरा है जो उनके “पेशे” के लिए खास अच्छा नहीं है ।

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ठळक मुद्देकोलकाता के एक अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के संग मारपीट के बाद डॉक्टर पड़ताल पर हैं।इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों की हड़ताल का समर्थन किया है।

वकीलों के संबंध में यकीन से कहना मुश्किल है कि वे काले कोट क्यों पहनते हैं, लेकिन डॉक्टरों के सफेद कोट पहनने के पीछे कई कारण हैं। पहला तो यह कि सफेद गरिमामय होता है। अन्य रंगों की तुलना में सफेद तटस्थ भी है और इसलिए रोगियों को अधिक भाता है। मरीज अपने डॉक्टरों को लाल या बैंगनी रंग के कोट में कतई नहीं देखना चाहेंगे। 

एक सफेद कोट डॉक्टर और पर्यावरण के बीच एक बाधा के रूप में कार्य करता है और डॉक्टरों को रोगी के शरीर के तरल पदार्थ जैसे रक्त और थूक साथ ही प्रयोगशाला में रसायनों और दवाओं से भी सुरक्षा देता है। रंगीन कोट की तुलना में एक सफेद कोट पर दाग का पता लगाना आसान है । यह महत्वपूर्ण है क्योंकि डॉक्टर जल्द से जल्द एक हानिकारक जोखिम से खुद को दूर करना चाहेंगे।

गंदे “सफेद कोट” वाले डॉक्टरों को उनके सहयोगियों और रोगियों द्वारा आसानी से देखा जा सकता है जिससे उन्हें कोट को बदलने और खुद को साफ करने के लिए आगाह किया जा सकता है। संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए यह महत्वपूर्ण है। सफेद कोट अस्पताल के कर्मचारियों की आसान पहचान में भी मदद करता है साथ हीं कोई भी डॉक्टर अपने साथ अस्पताल की महक को घर नहीं ले जाना चाहता तो उनका कोट यह सुरक्षा भी देता है।

लेकिन दुख की बात है कि सामान्यतः यह कोट अलमारी के किसी कोने में धूल फांक रहा होता है। यहाँ आपसे सहानुभूति चाहूंगा क्योंकि हो सकता है की मेरी याददाश्त कमज़ोर हो। यह भी हो सकता है की मैं ज्यादा पेशेवर डॉक्टर के पास कभी नहीं गया। लेकिन मेरी याद में कभी किसी डॉक्टर ने सफेद कोट में मेरा परीक्षण नहीं किया। तो कल मीडिया में आई कुछ खबरें “देख” अच्छा लगा । लगा कि अब भी “पेशे वर” डॉक्टर बचे हैं हमारे बीच । इन्हें देख कर उन निकृष्ट डॉक्टरों को शर्म आनी चाहिये जो अपना कर्तव्य भूल कर कन्या भ्रूण की हत्या करते हैं, मरीज़ों से बेजा पैसे वसूलते हैं, जांच पर जांच करवाते हैं, अपनी पसंदीदा कंपनी की महंगी दवाइयां लिखते हैं, और कई बार मृत लोगों का इलाज भी कर जाते हैं । थू है उनपर।

सफेद कोट पर शोध

जर्नल द बीएमजे में प्रकाशित एक शोध के अनुसार लंबी बांह के कोट से संक्रमण फैलता है। इसपर भारतीय डॉक्टरों का कहना है कि यह सम्भव है। इसके लिए हर अस्पताल में एक कमेटी होनी चाहिए जो कि डॉक्टरों के पहनावे पर नजर रखे। वैसे उचित तो यही है कि डॉक्टर्स के इस सफेद कोट पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। लेकिन फिर हमारे पेशे वर मित्रों का क्या होगा?

वैसे डॉक्टर के साथ मित्र शब्द का प्रयोग भी नहीं होना चाहिये। मेरे जैसा सामान्य मानवी एक डॉक्टर का मित्र कैसे हो सकता है? चाहे वह पीएचडी धारी हो या एमबीबीएस धारी, डॉक्टरों का एक क्लास  होता है। वो क्लास  जहां आप पहुंचने की उम्मीद नहीं कर सकते। अपनी बुद्धि में चरक और सुश्रुत को समेटे वे प्राणों की रक्षा में तत्पर रहते हैं और यह क्षमता वाकई किसी भी अन्य पेशे से ज़्यादा प्रभुत्व रखती है। डॉक्टर उपाधि ही अपने आप में अनमोल है। मेरे अन्य मित्र जो डॉक्टरों के साथ आंदोलन में शामिल होने की सोच रहे हों उन्हें भी इस बात से आगाह हो जाना चाहिये।

क्या डॉक्टर सफेद कोट के बिना करेंगे विरोध प्रदर्शन?

मुद्दे पर आते हुए सवाल ये कि क्या डॉक्टर बिना सफेद कोट के अपना विरोध प्रदर्शित करेंगे? कोट लाल, हरा या नीला तो हो नहीं सकता क्योंकि अब रंग-रंग की राजनीतिक पहचान है। भगवा पहन लेने पर एक राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में पहचाने जाने का खतरा है जो उनके “पेशे” के लिए खास अच्छा नहीं है। इस बीच विरोध प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरो से कुछ विनम्र प्रार्थनाएं भी हैं। पहले तो ऊपर दी गयी रिपोर्ट का हवाला देते हुए अपील करना चाहूंगा कि हम आपसे सम्बंधित इस गहन विषय पर चिंतन कर रहे हैं, पर तब तक आप अपना दूषित सफेद कोट पहन कर जनता के बीच ना जाएं। इससे संक्रमण का खतरा है।

दूसरी बात यह की हाल ही की कुछ घटनाओं से मैं विचलित हूं। अगर आपके पोस्टर- पॅमप्लेट में जगह बची हो तो उनमें इन घटनाओं का भी उल्लेख करें। आप समाज सेवा के महत्व पूर्ण कार्य में संलग्न हैं तो यह वाजिब है की आप लोगों को समय कम मिलता होगा। ऐसे में हम नागरिकों का कर्तव्य है कि आपका भरपूर सहयोग करते हुए आपका ध्यान महत्वपूर्ण विषयों पर आकृष्ट करें। राज्य में सरकार कोई भी हो और अभियुक्त आपके पेशे से हीं क्यों ना हो, हमें पूरी उम्मीद है कि आप सदैव इंकलाब का परचम बुलंद करेंगे। पर यह गुजारिश भी है कि इस दौरान किसी निरीह के साथ अन्याय ना हो।

वैसे तो हर किसी को अपनी जंग चुनने की आज़ादी है, पर किसी मुख्यमंत्री की मृत्यु के कारणों पर संदेह हो तो पत्र और दो लोगों की पिटाई होने पर देशव्यापी आंदोलन किसी भी संस्थान या समूह की अखंडता पर संदेह खड़ा कर सकता है । ऐसे में यह महत्वपूर्ण है की आप सभी सफेद कोट की गरिमा का खयाल रखते हुए अपने मुद्दे चुनें।

टॅग्स :डॉक्टरों की हड़तालपश्चिम बंगालकोलकाताममता बनर्जी
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