रहीस सिंह का ब्लॉगः भगवान राम की कीर्ति ही हमें वैश्विक बनाती है 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 7, 2018 02:33 AM2018-11-07T02:33:46+5:302018-11-07T02:33:46+5:30

राम अपनी विविधताओं के साथ प्रथमदृष्टया तो वहां-वहां उपस्थित हैं जहां उनकी कथा यानी रामायण किसी-न-किसी रूप में प्रतिष्ठित है। हालांकि जब किसी काव्य की रचना होती है तो उसकी आत्मा वहीं रहती है लेकिन भौगोलिक-सांस्कृतिक परिवेश उसके आवरण, भाषा और साज-सज्ज को बदल देता है।

diwali: Lord Rama karma's makes us global | रहीस सिंह का ब्लॉगः भगवान राम की कीर्ति ही हमें वैश्विक बनाती है 

रहीस सिंह का ब्लॉगः भगवान राम की कीर्ति ही हमें वैश्विक बनाती है 

रहीस सिंह 

जिसके व्यक्तित्व और कृतित्व ने भारत को प्रकाश की संस्कृति का केंद्र बना दिया वे राम भारतीय जीवंतता और आत्मशक्ति के प्रतिनिधि हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में लिखा है- ‘रामायण सत कोटि अपारा।’ इससे राम और रामायण की स्वीकार्यता के दायरे का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। वास्तव में राम की तरह दुनिया में कोई विजेता ही नहीं हुआ। 

उन्होंने बुराई पर विजय हासिल की, किसी देश की संप्रभुता को छिन्न-भिन्न नहीं किया। उनकी विजय में सत्य से संपन्न सर्वोच्च मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा थी, सर्वश्रेष्ठ आदर्शो  से युक्त नैतिकता थी और मर्यादा की वे रेखाएं थीं जो मनुष्य को ईश्वर की श्रेणी में ला देती हैं। यही कारण है कि मेडागास्कर से ऑस्ट्रेलिया तक देश-द्वीपों पर समग्ररूप में राम की कीर्ति प्रकाशित हो रही है। हालांकि अब तो पाश्चात्य देशों- रूस, जर्मनी, अमेरिका आदि में भी राम की प्रासंगिकता और प्रतिष्ठा बढ़ रही है। तब क्या हम यह कह सकते हैं कि श्रीराम सामरिक व रणनीतिक कुशलता के साथ-साथ सर्वोच्च मूल्यों से युक्त विदेश नीति के प्रणोता एवं स्वामी थे? 

राम अपनी विविधताओं के साथ प्रथमदृष्टया तो वहां-वहां उपस्थित हैं जहां उनकी कथा यानी रामायण किसी-न-किसी रूप में प्रतिष्ठित है। हालांकि जब किसी काव्य की रचना होती है तो उसकी आत्मा वहीं रहती है लेकिन भौगोलिक-सांस्कृतिक परिवेश उसके आवरण, भाषा और साज-सज्ज को बदल देता है। इन्हीं सन्निवेशों के साथ वाल्मीकि की रामायण अपने अलग-अलग रूपों में दुनिया के तमाम देशों में मौजूद है, जैसे-रामकोर (कंबोडिया), मलेराज कथाव (सिंहली), काव्यादर्श (तिब्बती), काकाविन रामायण अथवा रामायण काव्य (इंडोनेशिया), हिकायत सेरीराम (मलेशिया), रामवत्थु (बर्मा), रामकेíत-रिआमकेर (कम्बोडिया), होबुत्सुशू (जापानी), फ्रलक-फ्रलाम-रामजातक (लाओस), रामायण (नेपाल), रामकियेन अथवा रामकीर्ति (थाईलैंड), खोतानी रामायण (तुर्किस्तान), जीवक जातक (मंगोलिया), मसीही रामायण (फारसी) आदि। 

श्रीराम केवल रामायण या उस जैसे महाकाव्य में ही स्वयं को प्रतिबिंबित करते हुए दिखाई नहीं देते बल्कि वे तमाम देशों की लोक-कलाओं, नुक्कड़ नाटकों अथवा रामलीलाओं में या फिर वहां के जनजीवन से जुड़ी परंपराओं, नामों या वंशावलियों में भी प्रतिबिंबित होते हैं। उदाहरण के रूप में मलेशिया में एक बड़े समुदाय के लोग अपने नाम के साथ प्राय: राम, लक्ष्मण और सीता नाम जोड़ते हैं। थाईलैंड में पुराने राजाओं में भरत की तरह ही राम के खड़ाऊ  लेकर राज करने की परंपरा मौजूद थी और थाई राजा स्वयं को रामवंशी मानते हैं। वहां तो ‘अजुजिया’, ‘लवपुरी’ और  ‘जनकपुर’ जैसे नगर भी हैं। हिंदचीन में कुछ शिलालेखों में राम के नाम का वर्णन मिलता है। यहां की परंपरा में मौजूद मान्यताओं के अनुसार यहां के निवासी स्वयं को वानर कुल से उत्पन्न मानते हैं और राम को अपना प्रथम शासक। जावा में राम राष्ट्र में पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित हैं जबकि सुमात्र के जनजीवन में रामायण ठीक उसी प्रकार से अनुप्राणित हो रही है जैसे कि भारतीय जनजीवन में है।

दक्षिण-पूर्व एशिया में काव्यों के साथ-साथ पत्थर की शिलाओं पर भी रामकथा की व्यंजना अपने वैभवशाली रूपों में हुई है। इस दृष्टि से इंडोनेशिया स्थित प्रंबनान की शिला चित्रकारी सबसे ऊपर है जहां संपूर्ण रामकथा का अंकन किया गया है। इसके अतिरिक्त कंबोडिया के अंकोरवाट, अंकोरथम आदि स्थलों पर रामकथा शिलाओं पर उकेरी गई है। अंकोरवाट के शिलाचित्रों का महत्व इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि इसकी प्रस्तुति वाल्मीकि रामायण के अनुरूप हुई है। थाईलैंड भी इस कला से संपन्न है। बैंकॉक के राजभवन परिसर के दक्षिणी किनारे स्थित एक बौद्ध विहार में रामकथा के बहुत से शैलचित्र हैं। इस प्रकार से राम पूर्वी एशिया के साथ मूल्य और संस्कृति का एक ऐसा बॉन्ड निर्मित करते हैं जिसके जरिए भारत कम-से-कम सांस्कृतिक लीडरशिप की हैसियत प्राप्त कर सकता है, वर्तमान में कुछ किए बिना ही। 

हालांकि पिछली कई सदियों का इतिहास जब हमारे सामने आता है तो उसमें धर्म और धर्म के बीच संघर्ष के तत्व दिखायी पड़ते हैं लेकिन श्रीराम ऐसे नायक हैं जिन्होंने संघर्ष के इस तत्व को प्रभाहीन कर दिया। भारत यदि आज सांस्कृतिक संपदा, नैतिकता, आदर्श, मर्यादोचित व्यवहार, संवाद कौशल आदि से संपन्न है, यदि भारतीयों में सौहार्दपूर्ण व्यवहार व आतिथ्य कौशल है, यदि दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत स्वीकार्य है और यदि भारत लुक ईस्ट/एक्ट ईस्ट के जरिए स्थायी मुकाम हासिल कर ले रहा है तो इस सफलता का सबसे अधिक श्रेय श्रीराम और रामायण को जाता है जो वहां की संस्कृति में रच-बसकर भारतीय जीवन आदर्शो को जीवंतता प्रदान कर रहे हैं।

Web Title: diwali: Lord Rama karma's makes us global

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