नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉगः ज्ञान की रोशनी का दीपपर्व
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 6, 2018 12:56 PM2018-11-06T12:56:57+5:302018-11-06T12:56:57+5:30
दीपक के लगातार जगने के लिए उसमें निरंतर घी या तेल का होना जरूरी है। उसी प्रकार मनुष्यात्मा की आत्मिक ज्योति जगते रहने के लिए भी उसमें ईश्वरीय ज्ञान का निरंतर बने रहना जरूरी है।
-नरेंद्र कौर छाबड़ा
हमारे देश के सभी त्यौहारों को मनाने के पीछे बहुत अलौकिक और आध्यात्मिक रहस्य छिपे हैं परंतु मनुष्य उनके अलौकिक अर्थ को न समझ, लौकिक रीति से ही इन्हें मनाते हैं इसलिए उन्हें अलौकिक सुख की अनुभूति नहीं होती। दीपावली का त्यौहार भी ऐसा ही त्यौहार है। यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। इस पर्व पर लक्ष्मी के आह्वान के लिए दीप जलाकर खूब रोशनी की जाती है।
दीपक के लगातार जगने के लिए उसमें निरंतर घी या तेल का होना जरूरी है। उसी प्रकार मनुष्यात्मा की आत्मिक ज्योति जगते रहने के लिए भी उसमें ईश्वरीय ज्ञान का निरंतर बने रहना जरूरी है। जब बुझा हुआ दीपक किसी जगे हुए दीपक के संपर्क में आता है, वह भी जग उठता है। इसी तरह आत्मा भी सदा जागती जोत परमात्मा के संपर्क में आने से जग जाती है।
दीपावली के साथ अनेक किंवदंतियां तथा ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। समय के साथ-साथ इन घटनाओं का महत्व बढ़ता गया और दीपावली का वास्तविक महत्व लोप होता गया। इसी कारण अज्ञान का अंधकार बढ़ने लगा। अज्ञान के अंधकार में डूबा मनुष्य बाहरी अंधकार को मिटाने का प्रयत्न करने में लगा है।
अनगिनत रंग-बिरंगी मोमबत्तियों, बल्बों से सारा देश जगमगा उठता है। मकान, आंगन, गलियों की सफाई करके उन्हें सुंदर वस्तुओं से सजाया जाता है, परंतु अपने आत्मारूपी घर से विकार रूपी कचरे को फेंककर दिव्य गुणों रूपी सुंदरता से सजाने के प्रति वह उदासीन है। वर्ष भर के व्यापार का लेखा-जोखा समाप्त कर नया हिसाब-किताब आरंभ करता है परंतु अपने अब तक के कर्मों के हिसाब-किताब की ओर से वह अनजान बना हुआ है। यही कारण है कि असंख्य दीप जलाने पर भी मानव के अंदर का अंधकार दूर नहीं हुआ।
यदि मनुष्य अपने जीवन में सत्संग, शुद्ध अन्न, शुद्ध विचार, श्रेष्ठ कर्म जैसे गुणों को अपनाकर परमात्मा से बुद्धियोग लगा ले तो उसकी दिव्य ज्योति से अज्ञान के अंधकार को मिटाया जा सकता है। तथा अपने जीवन को दिव्य गुणों से सजाया जा सकता है। यही सच्ची दीपावली है।
(नरेंद्र कौर छाबड़ा साहित्कार है। वह कई पत्र-पत्रिकाओं में लेख व साहित्ययिक पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं।)