ब्लॉग: मानसून पर 'आईएमडी' और 'स्काईमेट वेदर' के अलग-अलग सुर, बारिश के मौसम को लेकर रहना होगा सतर्क
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 12, 2023 03:04 PM2023-04-12T15:04:53+5:302023-04-12T15:07:27+5:30
निजी एजेंसी स्काईमेट वेदर ने कहा है कि इस साल मानसून की बारिश सामान्य से कम होने की संभावना है. वहीं, भारत मौसम विज्ञान (आईएमडी) ने मौसम के पूर्वानुमान में इस साल मानसून में सामान्य बारिश होने की बात कही है.
पिछले चार साल से लगातार किसानों का साथ देने के बाद मौसम को लेकर पूर्वानुमान लगाने वाली निजी एजेंसी ‘स्काईमेट वेदर’ का कहना है कि इस साल मानसून की बारिश सामान्य से कम होने की संभावना है. इसके अलावा गर्मी भी इस साल कहर ढा सकती है. हालांकि भारत मौसम विज्ञान (आईएमडी) ने जारी अपने मौसम के पूर्वानुमान में इस साल मानसून में सामान्य बारिश होने की बात कही है.
आईएमडी का कहना है कि मानसून के दूसरे हाफ में अल नीनो का असर दिख सकता है, लेकिन इसके पहले 40 प्रतिशत अल नीनो वर्षों के दौरान सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश हुई है. फिर भी एहतियात बरतना जरूरी है क्योंकि आईएमडी ने भी उत्तर पश्चिम भारत, पश्चिम मध्य और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में दक्षिण पश्चिम मानसून के दौरान सामान्य और सामान्य से कम बारिश होने का पूर्वानुमान जताया है.
अभी कुछ दिन पहले ही बेमौसम बारिश ने किसानों की पकी फसल तबाह की है और अब मौसम विभाग का कहना है कि 12 अप्रैल के बाद पारा 40 डिग्री के स्तर पर जा पहुंचेगा. जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल मनुष्यों के बर्दाश्त करने की सीमा से ज्यादा गर्मी पड़ सकती है और लू के थपेड़ों से भी लोगों की जान जाने की आशंका है.
ट्रिपल-डिप-ला नीना के कारण पिछले चार साल से सामान्य या उससे अधिक बारिश हो रही थी. अब ला नीना खत्म हो गया है और अल नीनो की वापसी हो रही है, जिससे मानसूनी हवाएं कमजोर हो जाती हैं. पिछले चार साल से देश में फसल कमोबेश अच्छी हो रही है और कोरोना संकट के दौर से उबरने में कृषि क्षेत्र की बहुत बड़ी भूमिका रही है. कोरोना के दौरान शहरों से अपनी जड़ों अर्थात गांवों की ओर लौटने वाली श्रमिकों की फौज को इसने सहारा दिया और अच्छी फसल ने उन पर कम-से-कम भुखमरी की नौबत तो नहीं आने दी.
अभी भी देश के अनाज गोदाम भरे हुए हैं और रखरखाव के अभाव के कारण अतिरिक्त अनाज के सड़ने तक की नौबत आ रही है. लेकिन अब उसे सहेज कर रखना होगा क्योंकि बारिश का कुल औसत भले ही सामान्य रहे लेकिन अगर वह समय पर नहीं आई या एक साथ ज्यादा पानी बरस गया तो फसल बर्बाद हो सकती है.
हमारे पुरखे अपनी पारखी नजरों से मौसम की चाल को पहले से भांप लेते थे और उसके अनुसार अनाज संजो कर रखते थे. सूखा पड़ने की आशंका हो तो मोटे अनाज की बुआई करते थे जिसे पानी की अत्यल्प जरूरत होती है और ज्यादा बारिश होने का अनुमान हो तो गेहूं-धान जैसी ज्यादा पानी की जरूरत वाली फसलें बोते थे.
अब उनकी पारखी नजर का स्थान मौसम विभाग ने ले लिया है. लेकिन स्काईमेट वेदर और आईएमडी के अलग-अलग पूर्वानुमानों के कारण सतर्क रहने की जरूरत है. पानी की किल्लत वैसे तो हर साल गर्मियों में होती है लेकिन इस साल गर्मी ज्यादा पड़ने से पानी की जरूरत भी ज्यादा पड़ेगी. इसलिए उपलब्ध पानी की अभी से किफायतशारी करनी होगी ताकि ग्रीष्म के चरम पर पानी के लिए हाहाकार मचने की नौबत न आए.