वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: युद्ध के बजाय संवाद हमेशा होता है बेहतर

By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 27, 2021 02:25 PM2021-12-27T14:25:08+5:302021-12-27T14:25:08+5:30

दोनों तरफ के सीमांतों पर दोनों देशों के फौजी अड़े हुए हैं लेकिन दोनों देशों के फौजी दर्जनभर से ज्यादा बार आपसी संवाद कर चुके हैं। इस परिदृश्य में आश्चर्यचकित कर देनेवाली खबर यह है कि दोनों राष्ट्रों के आपसी व्यापार में अपूर्व वृद्धि हुई है।

Dialogue is better than war says Ved Pratap vaidik in his blog over Indo China Face Off | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: युद्ध के बजाय संवाद हमेशा होता है बेहतर

भारत और चीन के बीच पहले फौजी मुठभेड़ हुई और फिर सीमा पर इतना तनाव हो गया, जितना 1962 के युद्ध के बाद कभी नहीं हुआ। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

भारत और चीन के बीच पहले फौजी मुठभेड़ हुई और फिर सीमा पर इतना तनाव हो गया, जितना 1962 के युद्ध के बाद कभी नहीं हुआ। दोनों तरफ के सीमांतों पर दोनों देशों के फौजी अड़े हुए हैं लेकिन दोनों देशों के फौजी दर्जनभर से ज्यादा बार आपसी संवाद कर चुके हैं। इस परिदृश्य में आश्चर्यचकित कर देनेवाली खबर यह है कि दोनों राष्ट्रों के आपसी व्यापार में अपूर्व वृद्धि हुई है।

यह वृद्धि तब भी हुई है, जबकि भारत के कई संगठनों ने जनता से अपील की थी कि वह चीनी माल का बहिष्कार करे। सरकार ने कई चीनी व्यापारिक और तकनीकी संगठनों पर प्रतिबंध भी लगा दिया था लेकिन हुआ क्या? प्रतिबंध और बहिष्कार अपनी-अपनी जगह पड़े रहे और भारत-चीन व्यापार ने पिछले साल भर में इतनी ऊंची छलांग मार दी कि उसने रिकॉर्ड कायम कर दिया। 

सिर्फ 11 माह में दोनों देशों के बीच 8.57 लाख करोड़ रु. का व्यापार हुआ। यह पिछले साल के मुकाबले 46.4 प्रतिशत ज्यादा था यानी तनाव के बावजूद आपसी व्यापार लगभग डेढ़ गुना बढ़ गया। इस व्यापार में गौर करने लायक बात यह है कि भारत ने चीन को जितना माल बेचा, उससे तीन गुने से भी ज्यादा खरीदा।

भारत ने 6.59 लाख करोड़ का माल खरीदा और चीन ने सिर्फ 1.98 लाख करोड़ रु. का। इसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह नहीं कि भारत की जनता ने सरकार और संगठनों की अपीलों को एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया? इसका कारण शायद यही है कि लोगों को यही समझ में नहीं आया कि भारत-चीन सीमांत पर मुठभेड़ क्यों हुई और उसमें गलती किसकी थी? 

प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कह दिया था कि चीन ने भारत की एक इंच भी जमीन पर कब्जा नहीं किया है तो लोग सोचने लगे कि फिर झगड़ा किस बात का है? यदि भारत की जनता को लगता कि चीन का ही पूरा दोष है तो वह अपने आप चीनी चीजों का बहिष्कार कर देती, जैसा कि उसने 1962 में किया था।

लेकिन दोनों देशों की सरकारें चाहे एक-दूसरे पर आक्रमण का आरोप लगाती रहीं लेकिन दोनों को ही अपना व्यापार बढ़ाने में कोई झिझक नहीं रही। यह भी अच्छा है कि दोनों तरफ के फौजी लगातार बात जारी रखे हुए हैं। 

यही प्रक्रिया भारत और पाकिस्तान के बीच भी क्यों नहीं चल सकती? पाकिस्तान के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों से जब भी मेरी भेंट हुई है, मैं उन्हें 1962 के बाद चले भारत-चीन संवाद का उदाहरण देता रहा हूं। मतभेद अपनी जगह रहें लेकिन संवाद बंद क्यों हो? अब किसी भी समस्या का समाधान संवाद से ही निकल सकता है।

Web Title: Dialogue is better than war says Ved Pratap vaidik in his blog over Indo China Face Off

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