ब्लॉग: मतदान का प्रतिशत बढ़ने से मजबूत होगा लोकतंत्र

By पंकज चतुर्वेदी | Published: April 3, 2024 11:26 AM2024-04-03T11:26:05+5:302024-04-03T11:28:34+5:30

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 18 वीं लोकसभा को चुनने का उत्सव शुरू हो चुका है। यह एक चिंता की बात है कि लोकतंत्र का मूल आधार जो ‘लोक’ है, वह लगभग एक तिहाई वोट डालने ही नहीं आता।

Democracy will be strengthened by increasing the percentage of voting | ब्लॉग: मतदान का प्रतिशत बढ़ने से मजबूत होगा लोकतंत्र

फाइल फोटो

Highlightsजान कर अचंभा होगा कि अभी तक 10 बार केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी लेकिन किसी भी बार सत्ताधारी दल को पचास फीसदी वोट नहीं मिले2019 के चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या लगभग 91 करोड़ थीमतदान हुआ 67.40 फीसदी। सबसे बड़े दल भाजपा को इसमें से मिले 37. 7 फीसदी वोट अर्थात कुल पंजीकृत मतदाताओं का महज 30 फीसदी।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 18 वीं लोकसभा को चुनने का उत्सव शुरू हो चुका है। यह एक चिंता की बात है कि लोकतंत्र का मूल आधार जो ‘लोक’ है, वह लगभग एक तिहाई वोट डालने ही नहीं आता। गणित के नजरिये से देखें तो देश की सत्ता संभालने वाला दल कभी भी बहुमत आबादी का प्रतिनिधित्व करता नहीं। जान कर अचंभा होगा कि अभी तक 10 बार केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी लेकिन किसी भी बार सत्ताधारी दल को पचास फीसदी वोट नहीं मिले।

2019 के चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या लगभग 91 करोड़ थी। मतदान हुआ 67.40 फीसदी। सबसे बड़े दल भाजपा को इसमें से मिले 37. 7 फीसदी वोट अर्थात कुल पंजीकृत मतदाताओं का महज 30 फीसदी। यह विचारणीय है कि क्या वोट न डालने वाले 33 फीसदी लोगों की निगाह में चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवार या मौजूदा चुनाव व्यवस्था नाकारा थी या फिर वे मतदान से सरकार चुनने की प्रक्रिया के प्रति उदासीन हैं। जिन परिणामों को राजनीतिक दल जनमत की आवाज कहते रहे हैं, वास्तव में वह बहुसंख्यक मतदाता की गैरभागीदारी का परिणाम होता है।

यदि पिछले आंकड़ों को देखें तो अभी तक छह बार मतदान 60 फीसदी के पार गया है जिसमें बीते दो चुनाव- 2014 में 66.44 और 2019 में 67.40 के अलावा लोकतंत्र की रक्षा के लिए लड़ा गया 1977 का चुनाव है जिसमें 60.49 फीसदी वोट पड़े। फिर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश की एकता-अखंडता पर खतरा दिखा और 64.1 प्रतिशत वोट देने निकले। उसके बाद बोफोर्स का मुद्दा उठा और मतदान प्रतिशत 61.96 हुआ. फिर 1998 में बदलाव के लिए वोट देने वाले 61.97 फीसदी रहे। 16वीं लोकसभा के चुनाव के वक्त भी आम लोग महंगाई, भ्रष्टाचार से हलाकांत थे सो मतदान का प्रतिशत तब तक का सर्वाधिक रहा। 

मूल सवाल यह है कि आखिर इतने सारे लोग वोट क्यों नहीं डालते हैं। सर्वाधिक पढ़ा-लिखा, संपन्न और धनाढ्य, जागरूक और सक्रिय कहा जाने वाला देश की राजधानी का दक्षिणी इलाका हो या सटे हुए गाजियाबाद व गुरुग्राम के बहुमंजिला अपार्टमेंट, सबसे कम मतदान वहीं होता है। यहीं नहीं देश के सर्वाधिक साक्षर राज्य के ‘देश के पहले पूर्ण साक्षर जिले’ एर्नाकुलम में महज 46 फीसदी लोग ही मतदान केंद्र तक आए।

यह विचारणीय है कि पढ़े-लिखे लोगों को राजनीतिक दल और सरकार के अधिक मतदान के अभियान आकर्षित क्यों नहीं कर पाते। ऐसा तो नहीं कि यह वर्ग मानता है कि राजनीतिक दलों के लिए चुनाव महज सत्ता हड़पने का साधन व इसमें जनता साध्य मात्र है। पिछले कुछ दिनों के दौरान बड़े स्तर पर वैचारिक प्रतिबद्धता से परे हुए दल-बदल भी लोगों का मतदान के प्रति मन खट्टा करते हैं।

Web Title: Democracy will be strengthened by increasing the percentage of voting