ब्लॉग: लोकतंत्र में जनता की भलाई सबसे महत्वपूर्ण

By अश्वनी कुमार | Published: January 12, 2022 12:10 PM2022-01-12T12:10:47+5:302022-01-12T12:14:08+5:30

अकाट्य चिकित्सा साक्ष्य और पिछले अनुभव ने बिना किसी संदेह के इस बात को साबित किया है कि चुनावी प्रक्रियाएं जिनमें भारी भीड़ की भागीदारी होती है और रैलियों में लाखों लोगों का करीबी शारीरिक संपर्क होता है, कोविड सुपर स्प्रेडर्स हैं. 

democracy public welfare covid 19 election | ब्लॉग: लोकतंत्र में जनता की भलाई सबसे महत्वपूर्ण

ब्लॉग: लोकतंत्र में जनता की भलाई सबसे महत्वपूर्ण

Highlightsदूसरी लहर के दौरान हुए चुनावों में कोरोना के कारण अनेक लोगों की जान चली गई.रैलियों में लाखों लोगों का करीबी शारीरिक संपर्क होता है, जो कोविड सुपर स्प्रेडर्स हैं.राजनीतिक नैतिकता की मांग है कि हम अनुभव से सीखें और गलत विकल्पों को त्याग दें.

सामाजिक व्यवस्था में लोकतांत्रिक व्यवस्था की नैतिक श्रेष्ठता आम जनता की भलाई के प्रति सत्ता की जवाबदेही में निहित है. साथ ही लोकतांत्रिक वैधता चुनावी प्रक्रिया पर निर्भर मानी जाती है जो लोगों को अपनी इच्छानुसार चुनाव की सुविधा प्रदान करती है. एक जीवंत लोकतंत्र की ये मूलभूत शर्तें महामारी के समय में कसौटी पर हैं.

अकाट्य चिकित्सा साक्ष्य और पिछले अनुभव ने बिना किसी संदेह के इस बात को साबित किया है कि चुनावी प्रक्रियाएं जिनमें भारी भीड़ की भागीदारी होती है और रैलियों में लाखों लोगों का करीबी शारीरिक संपर्क होता है, कोविड सुपर स्प्रेडर्स हैं.

दूसरी लहर के दौरान हालिया चुनावों के भयावह परिणाम हमारे सामने हैं, जिसमें कोरोना के कारण अनेक लोगों की जान चली गई. वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि वायरस की संक्रमित करने की क्षमता पूरी तरह से वायरस या उसकी प्रचंडता पर निर्भर नहीं है, बल्कि ‘वायरस और मानव समाज के बीच कैसे संपर्क होता है, इस पर भी निर्भर करती है. 

अनुभवजन्य अध्ययनों ने पुष्टि की है कि 8 प्रतिशत संक्रमित लोग कोविड के 60 से 80 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार हैं. आने वाले 4 से 8 हफ्तों में अत्यधिक संक्रामक ओमिक्रॉन के चरम पर पहुंचने की आशंका है, जिससे बीमारी का प्रसार तेज होगा. 

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, देश में वर्तमान आरओ वैल्यू 1.22 है, जो कि महामारी के प्रसार की तेजी को दर्शाती है. देश के कई जिलों ने पहले ही 10 प्रतिशत से अधिक पॉजिटिविटी रेट की जानकारी दी है. 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने आगाह किया है कि तीसरी कोरोना लहर में, हमें पिछले पीक की तुलना में 3-4 गुना वृद्धि देखने को मिल सकती है. निकट भविष्य में ये एक भयावह राष्ट्रीय चिकित्सा आपातकाल के स्पष्ट संकेत हैं. 

समयबद्ध चुनावों की आवश्यकता राजनीतिक लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है, जिसका नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन को सुरक्षित करने की उच्च संवैधानिक अनिवार्यता के साथ स्पष्ट रूप से विरोध दिख रहा है. 

यह विशेष रूप से इसलिए है क्योंकि व्यावहारिक वास्तविकता यह है कि चुनावों के दौरान आवश्यक कोविड प्रोटोकॉल के प्रभावी अमल के माध्यम से वायरस के प्रसार को रोकना लगभग असंभव है. 

कड़े विकल्प कभी आसान नहीं होते लेकिन अक्सर आवश्यक होते हैं. यह तर्क दिया जाता है कि चुनावों को टालने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को झटका लग सकता है, जिससे सत्तारूढ़ सरकारें अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद भी सत्ता का आनंद ले सकती हैं, जो रास्ता अलोकप्रिय सरकारें ‘विशेषाधिकार’ के रूप में अपनाती हैं. लेकिन हम यह भी जानते हैं कि कोविड के कारण जुलाई 2020 तक 31 देशों में विभिन्न स्तरों पर चुनाव अस्थायी रूप से स्थगित कर दिए गए थे. 

भारत के मामले में, यह तर्क दिया जाता है कि चुनावों को स्थगित करना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र से परे है, और ऐसा केवल संवैधानिक संशोधन के माध्यम से किया जा सकता है जिसमें व्यापक राजनीतिक राष्ट्रीय सहमति की आवश्यकता होती है जो मौजूद नहीं है. 

लेकिन अत्यावश्यक राष्ट्रीय मामलों में संवैधानिक संशोधन के प्रावधान का अक्सर उपयोग किया गया है. इसलिए ‘गंभीर राष्ट्रीय चिकित्सा आपातकाल’ के आधार पर राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल के अस्थायी विस्तार के लिए संविधान में संशोधन करना संभव होना चाहिए. 

राजनीतिक नैतिकता की मांग है कि हम अनुभव से सीखें और गलत विकल्पों को त्याग दें. कोविड के चलते कुछ राज्यों में रात और सप्ताहांत के कर्फ्यू सहित अन्य स्थानीय प्रतिबंध मौजूदा स्थिति में विधानसभा चुनावों के आयोजन के साथ स्पष्ट रूप से असंगत हैं. 

एक तरफ लॉकडाउन और दूसरी तरफ चुनावी गतिविधियों की अनुमति की अतार्किकता लोगों की बुद्धिमत्ता का मजाक उड़ाती है और हमारे नेताओं की मंशा पर सवाल उठाती है.

लोगों के स्वास्थ्य और जीवन को खतरे का सामना करते हुए, हम वास्तव में यह नहीं कह सकते हैं कि गंभीर चिकित्सा आपात स्थिति के कारण कुछ हफ्तों या महीनों के लिए चुनाव स्थगित करने का मतलब लोगों की भलाई के लिए एक भारी कीमत चुकाना है या कि यह हमारे लोकतंत्र को गंभीर रूप से खतरे में डाल देगा. 

इसके विपरीत, त्रुटिपूर्ण चुनावी आयोजन एक विश्वसनीय लोकतंत्र के रूप में हमारी साख पर सवाल खड़ा करेगा. मतदाता अपेक्षा रखते हैं और वास्तव में यह उनका अधिकार है कि वे महामारी के भय से मुक्त वातावरण में अपने मताधिकार का प्रयोग करें. 

मौजूदा परिस्थितियों में यह अकल्पनीय है कि सरकार/चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की आवश्यक गारंटी दी जा सकती है. इनमें विचार-विमर्श के पूर्ण और प्रभावी अवसर, भागीदारी की समानता, चुनाव प्रबंधन की गुणवत्ता, प्रतियोगिता की समानता और आवश्यक चिकित्सा प्रोटोकॉल सहित नियमों को लागू करने के लिए एक आवश्यक वातावरण उपलब्ध कराना भी शामिल है. 

हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए चुनौती साधन और साध्य के बीच सही संतुलन तलाशना है. केंद्र सरकार को देश को यह बताना चाहिए कि वह प्रमुख संवैधानिक मूल्य - जीवन के अधिकार पर जोर देने से क्यों हिचकिचाती है.

Web Title: democracy public welfare covid 19 election

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