आलोक मेहता का ब्लॉगः जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र के उजाले का पर्व
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 26, 2019 10:04 IST2019-10-26T10:04:00+5:302019-10-26T10:04:00+5:30
इसमें कोई शक नहीं कि कश्मीर घाटी के कुछ इलाकों में पंच और सरपंचों को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में मतदान केंद्रों तक लाया गया. इसे सुखद संयोग ही कहा जाएगा कि लगभग एक वर्ष पहले इसी अक्तूबर महीने में जम्मू-कश्मीर में पंचायत के चुनाव भी शांतिपूर्वक संपन्न हुए थे. जम्मू-कश्मीर में लगभग 4,483 पंचायतें हैं और 3420 काम कर रही हैं.

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आलोक मेहता
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के तूफान और सीमा पर बम धमाकों की आवाज में लोगों का ध्यान कश्मीर में लोकतंत्न के उजाले के पर्व की ओर नहीं गया. जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद कुछ इलाकों में शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर देश-विदेश तक आवाजें उठती रहीं, जबकि सबसे सुखद तथ्य था कि आतंकवादियों के सारे प्रयास नाकाम होते रहे और सामान्य लोगों की जान सुरक्षित रही. लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण घटना 24 अक्तूबर को प्रदेश में ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव में 85 से 99 प्रतिशत मतदान होने की है.
लगभग 280 विकास खंडों में शांतिपूर्ण मतदान होना लोकतंत्न का सबसे बड़ा पर्व माना जाना चाहिए. यों प्रदेश में 316 विकासखंड हैं लेकिन 27 स्थानों पर निर्विरोध प्रतिनिधि चुन लिए गए. इस चुनाव में प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्नों के करीब 26000 पंचों और सरपंचों ने हिस्सा लिया. उन्होंने यह भी प्रमाणित किया कि दशकों से प्रदेश में दादागीरी करते रहे नेताओं की उन्हें परवाह नहीं है.
कांग्रेस पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने इन चुनावों के बहिष्कार का ऐलान कर रखा था लेकिन भारत के संविधान में आस्था रखने वाले ईश्वर स्वरूप पंचों ने अपनी जनता के हितों और क्षेत्न के विकास के लिए ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के गठन में हिस्सेदारी की. ऐसा भी नहीं है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने इसका बड़ा लाभ उठा लिया हो. 280 विकास खंडों में से केवल 81 में उसके उम्मीदवारों को विजय मिली, पैंथर्स पार्टी को 148 स्थानों पर सफलता मिली. वहीं 88 निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए.
इसमें कोई शक नहीं कि कश्मीर घाटी के कुछ इलाकों में पंच और सरपंचों को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में मतदान केंद्रों तक लाया गया. इसे सुखद संयोग ही कहा जाएगा कि लगभग एक वर्ष पहले इसी अक्तूबर महीने में जम्मू-कश्मीर में पंचायत के चुनाव भी शांतिपूर्वक संपन्न हुए थे. जम्मू-कश्मीर में लगभग 4,483 पंचायतें हैं और 3420 काम कर रही हैं.
पंचायत चुनाव के बाद जिला स्तर पर पंचों के सामान्य कामकाज के लिए 4 दिन के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी हुए. इन पंचायतों को अधिकार एवं समुचित सुविधाएं जुटाए जाने से पिछले महीनों के दौरान ग्रामीण क्षेत्नों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार कार्यक्रम के तहत मजदूरी, स्कूलों में मध्याह्न् भोजन उपलब्ध कराने के कार्यक्र म सही ढंग से लागू हुए. पंचायतों को अधिकार मिलने से जम्मू-कश्मीर की पंचायतों के लिए 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार 366 करोड़ रु. का बजट भी उपलब्ध हुआ.
इस वर्ष जुलाई में संपादकों के एक समूह के साथ श्रीनगर में लगभग 50 सरपंचों से बातचीत करने का अवसर भी मुङो मिला था और उनकी भावनाओं और अपेक्षाओं की जानकारी से सच में प्रसन्नता हुई थी. तब यह कल्पना नहीं थी कि जम्मू कश्मीर में एक बड़ी राजनीतिक क्रांति होने वाली है और 70 वर्ष पुराना सपना साकार होगा. अगस्त में सरकार और संसद ने एक ही झटके में जम्मू-कश्मीर का स्वरूप बदलकर इसे पूरी तरह भारतीय संविधान व्यवस्था के तहत विकास के मार्ग पर आगे बढ़ा दिया.
मुङो यह भी याद है कि तीन दशक पहले लगातार चुनावों में धांधली होती रही और इसी का नतीजा था कि भ्रष्ट व्यवस्था ने केंद्र सरकार से दी जाने वाली अरबों रुपए की धनराशि जनता तक नहीं पहुंचाई. दूसरी तरफ जनता की नाराजगी का लाभ उठाकर पाकिस्तान समर्थित अलगाववादी संगठनों और आतंकवादी गुटों ने जम्मू-कश्मीर को आतंक की आग में झुलसा दिया.
कांग्रेस, पीडीपी और भाजपा ने कुछ वर्षों के दौरान सत्ता में भागीदारी करते हुए कुछ इलाकों में अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास किया लेकिन आतंकवादी घटनाओं में 50000 से अधिक लोग मारे गए. इस दृष्टि से राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए नई पहल हुई. राज्यपाल सत्यपाल मलिक और उनके सलाहकारों ने एक अभिनव कार्यक्र म शुरू किया जिसके तहत महात्मा गांधी के आदर्शो के अनुरूप ‘चलो गांव की ओर’ (बैक टू विलेज) का निर्देश देकर प्रदेश के अधिकारियों को 20 से 27 जून 2019 के बीच गांव- गांव जाकर लोगों की समस्याओं को सुनने और उनके समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाने के प्रयास हुए.
शायद इसी का परिणाम है कि ग्रामीण क्षेत्नों में प्रशासनिक व्यवस्था पर विश्वास कायम हुआ. पंचायतों और ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल को अधिकाधिक अधिकार एवं बजट मिलने पर निश्चित रूप से जम्मू-कश्मीर में शांति और सद्भावना के साथ विकास की एक नई धारा शुरू हो रही है.
सत्ता का विकेंद्रीकरण ही भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था को रोकने का सही रास्ता हो सकता है. राजनीतिक पूर्वाग्रहों से हटकर जम्मू कश्मीर को आतंकवाद से उबारने और सही अर्थो में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ वर्षो तक लगातार प्रयास करने होंगे. आतंकवादी हमलों से बचाने के लिए भारतीय सेना लगातार प्रयास करती रही है.
जम्मू-कश्मीर में स्विट्जरलैंड और अन्य यूरोपीय देशों की तरह विकास की अपार संभावनाएं हैं. हिमालय की सुंदर पर्वत श्रृंखला के अलावा सैकड़ों झीलें भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकती हैं. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की भोली-भाली जनता आर्थिक विकास चाहती है, उसे राजनीति से कोई मतलब नहीं. इसलिए दिवाली के पावन पर्व पर सम्पूर्ण भारत में खुशी के दीप जलाने के साथ जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्न के महान पर्व पर भी शुभकामनाएं दी जानी चाहिए.