प्रदूषण का कहरः कौन व्यक्ति दिल्ली-NCR में जमीन या फ्लैट खरीदकर अपनी उम्र कम करना चाहेगा?

By सुशांत झा | Published: November 3, 2019 04:15 PM2019-11-03T16:15:15+5:302019-11-03T16:15:15+5:30

दिल्ली के लोगों को प्रदूषण का स्वाद मिला है-तो कुछ न कुछ उपाय हो ही जाएगा, यहां प्रभु वर्ग भी रहता है. देश के अन्य हिस्सों को ये नसीब नहीं है. सोनभद्र-सिंगरौली में प्रदूषण से बहुत बीमारियां होती हैं-लेकिन कभी वह ट्विटर पर ट्रेंड नहीं करता.

Delhi NCR air pollution: farmers are not responsible, government should take action against air pollution | प्रदूषण का कहरः कौन व्यक्ति दिल्ली-NCR में जमीन या फ्लैट खरीदकर अपनी उम्र कम करना चाहेगा?

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Highlightsपंजाब के मुख्यमंत्री ने ठीक कहा है कि पंजाब अपने हिस्से की पराली का जिम्मा उठाने को तैयार है लेकिन केंद्र और दिल्ली सरकार को भी प्रदूषण पर कदम उठाना चाहिए. खेती में मशीनों के बढ़ते उपयोग से तो ये होना ही था और इसके लिए किसान को जिम्मेवार ठहराना ठीक नहीं.

पंजाब के मुख्यमंत्री ने ठीक कहा है कि पंजाब अपने हिस्से की पराली का जिम्मा उठाने को तैयार है लेकिन केंद्र और दिल्ली सरकार को भी प्रदूषण पर कदम उठाना चाहिए. खेती में मशीनों के बढ़ते उपयोग से तो ये होना ही था और इसके लिए किसान को जिम्मेवार ठहराना ठीक नहीं. अमरिंदर सिंह ने कहा कि किसानों को प्रति क्विंटल कुछ रकम मिले ताकि वे पराली के समुचित निष्पादन का इंतज़ाम कर सके. लेकिन समस्या सिर्फ पंजाब हरियाणा तक नहीं है. पराली तो पाकिस्तान तक में जल रहा है और कल को बिहार-बंगाल में भी जलेगा जैसा विकास का पैटर्न है. 

हमारे यहां(बिहार में) पराली के निचले हिस्से को मैथिली में ‘नाड़’ बोलते हैं और धान के डंठल वाले हिस्से को ‘पुआर’(पुआल). यानी दोनों को संयुक्त रूप से मिला दिया जाए पराली कहा जा सकता है. किसान धान को जड़ से काटता है और नाड़ व पुआर का उपयोग चारे, कच्चे मकानों के छप्पड़ों और जलावन के रूप में होता है. लेकिन वहां भी चारे के रूप में गेंहू के भूसे का उपयोग होने लगा है और छप्पड़ व जलावन की ज़रूरत है नहीं. मकान पक्के बनते जा रहे हैं और हर घर में गैस सिलिंडर पहुंच गया है. ऐसे में कल को वहां के किसान भी वहीं करेंगे जो आज पंजाब-हरियाणा के किसान कर रहे हैं. 

दिल्ली के लोगों को प्रदूषण का स्वाद मिला है-तो कुछ न कुछ उपाय हो ही जाएगा, यहां प्रभु वर्ग भी रहता है. देश के अन्य हिस्सों को ये नसीब नहीं है. सोनभद्र-सिंगरौली में प्रदूषण से बहुत बीमारियां होती हैं-लेकिन कभी वह ट्विटर पर ट्रेंड नहीं करता.

एक कारण केंद्रीकृत विकास भी है. दो-ढाई करोड़ लोग जब सौ किलोमीटर के दायरे में रहेंगे तो यहीं हाल होगा. बापू जब विकेंद्रित विकास की बात कर रहे थे तो बहुतों को सिर्फ चरखा समझ आया था. उनके नज़दीकी चेले भी ये बात नहीं समझ पा रहे थे. आज दिल्ली के इस हाल का एक कारण उसके पहले से भी प्रदूषित होना है. पराली ने बुखार को एक डिग्री बढ़ा दिया है और जो बुरे तरीके से महसूस होने लगा है. ये मशीन केंद्रित विकास की सीमाएं भी हैं जो सीधे पर्यावरण पर प्रहार करती है. हमें एक संतुलन चाहिए, नहीं तो सारा विकास धरा का धरा रह जाएगा.

दूसरी बात सरकारों को चाहिए कि पराली का ठोस इंतज़ाम करें. जाहिर है, गांव वाले किसान अब प्रदूषण फैलाने में शहरी बाबुओं से होड़ ले रहे हैं. सारा प्रदूषण गाजियाबाद-फरीदाबाद ही क्यों फैलाए! 

मूल बात यह है कि न तो आप फैक्ट्री बंद कर सकते हैं न पराली जलाना. लेकिन फैक्ट्रियों को प्रदूषण फैलाने के नियम कानूनों का पालन तो सख्ती से करवाना ही होगा. नदियों के प्रदूषण पर ध्यान देना होगा और तालाबों के गायब होने से रोकना होगा. सारी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं. 

किसी से सुना कि सरकार शायद इजरायल से मशीन मंगा रही है जिस में पराली को काटने का सहज, सस्ता और टिकाऊ तरीका है. पता नहीं वो कैसा है लेकिन जब तक हम पराली का कोई समाधान नहीं ढ़ूंढ लेते, शहरी प्रदूषण, नदियों में जाने वाले शहरी व फैक्ट्रियों के अपशिष्ट के निपटारे के भ्रष्टाचार को नहीं काबू करते, सारी बहस बेमानी है.

लेकिन इस बीच शायद दिल्ली की प्रॉपर्टी का रेट कुछ कम हो जाए! पॉलिटिकल लाइजनिंग को छोड़ दिया जाए तो इन हालात में दिल्ली-एनसीआर में कौन निवेश करना चाहेगा? और कौन संतुलित व्यक्ति यहां जमीन या फ्लैट खरीदकर अपनी उम्र कम करना चाहेगा? 

Web Title: Delhi NCR air pollution: farmers are not responsible, government should take action against air pollution

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