संसद से सड़क तक टकराव?, कांग्रेस में दो सत्ता केंद्रों की चर्चा के निहितार्थ

By राजकुमार सिंह | Updated: December 22, 2025 05:57 IST2025-12-22T05:57:56+5:302025-12-22T05:57:56+5:30

सत्तापक्ष और अध्यक्ष ओम बिड़ला की ओर से ज्यादा रोक-टोक भी नहीं हुई. राहुल गांधी भी बोले, मगर चुनाव सुधार पर चर्चा में.

delhi bjp congress Parliament streets conflict Implications discussion 2 power centers in Congress blog raj kumar singh | संसद से सड़क तक टकराव?, कांग्रेस में दो सत्ता केंद्रों की चर्चा के निहितार्थ

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Highlightsवोट चोरी के आरोप दोहराए, जो वह प्रेस कान्फ्रेंस में लगाते रहे हैं.कांग्रेस हरियाणा, महाराष्ट्र और बिहार में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाई.‘इंडिया’ गठबंधन में सहयोगी दलों के साथ भी कांग्रेस के रिश्ते सहज नहीं.

संसद से सड़क तक सत्तापक्ष और विपक्ष में टकराव तो साफ दिख रहा है, पर कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में भी सब कुछ सामान्य नहीं है. ‘वंदे मातरम्’ पर संसद में चर्चा के बाद राजनीतिक गलियारों में राहुल-प्रियंका की चर्चाएं चल पड़ी हैं.  सदन के नेता के नाते प्रधानमंत्री ने ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा की शुरुआत की. अपेक्षा थी कि नेता प्रतिपक्ष के नाते राहुल गांधी बोलेंगे, पर कांग्रेस की ओर से मोर्चा संभाला प्रियंका ने. इसका कारण तो कांग्रेस ही जानती होगी, पर मोदी की भाषण कला की प्रशंसा करते हुए भी प्रियंका हास-परिहास के बीच ही तर्कों और तथ्यों के साथ सत्तापक्ष पर कटाक्षों से सदन को प्रभावित करने में सफल दिखीं. सत्तापक्ष और अध्यक्ष ओम बिड़ला की ओर से ज्यादा रोक-टोक भी नहीं हुई. राहुल गांधी भी बोले, मगर चुनाव सुधार पर चर्चा में.

उन्होंने मुख्यत: वोट चोरी के आरोप दोहराए, जो वह प्रेस कान्फ्रेंस में लगाते रहे हैं. राहुल के भाषण में न तो नए तथ्य-तर्क दिखे और न ही प्रियंका की तरह आक्रामक हुए बिना सत्ता पक्ष को कठघरे में खड़ा करने की कला. लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद कांग्रेस हरियाणा, महाराष्ट्र और बिहार में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाई.

‘इंडिया’ गठबंधन में सहयोगी दलों के साथ भी कांग्रेस के रिश्ते सहज नहीं. तीन लोकसभा और अनेक विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद संगठन प्राथमिकताओं में नहीं दिखता. संसद से सड़क तक राहुल की छवि सीधे मोदी पर तल्ख हमले करते हुए टकराव की राजनीति करनेवाले नेता की बन गई है. उनकी राजनीति और मुद्दों में निरंतरता का अभाव भी है.

लोकसभा चुनाव तक ईवीएम पर निशाना साधते हुए संविधान और आरक्षण को खतरा मुद्दा था तो अब वोट चोरी का नारा बुलंद किया जा रहा है. बीच-बीच में राहुल के विदेश चले जाने से भाजपा को उनकी अगंभीर राजनेता की छवि बनाने का मौका भी मिल रहा है. वरिष्ठ नेताओं के लिए भी राहुल से मुलाकात आसान नहीं है.

इसका असर कांग्रेसियों में पार्टी और अपने भविष्य की चिंता के रूप में सामने आ रहा है. प्रियंका में उन्हें बेहतर संभावनाएं दिखती हैं. इंदिरा गांधी की झलक के अलावा राजनीतिक समझ, संवाद और प्रभावी भाषण शैली में प्रियंका बेहतर मानी जाती हैं. संसद के अंदर और बाहर तमाम मुद्दों पर सरकार को घेरनेवाली प्रियंका के सत्र की समाप्ति पर स्पीकर की चाय पार्टी में शामिल होने और प्रधानमंत्री समेत सभी से हास-परिहास के साथ चर्चा को भी छवि निर्माण की कवायद माना जा रहा है.

प्रियंका का एक ही नकारात्मक पहलू है- पति रॉबर्ट वाड्रा के विरुद्ध दर्ज मुकदमे. उसके चलते वह सरकार के विरोध में कितनी दूर तक जा पाएंगी- यह सवाल कांग्रेस में भी पूछा जा रहा है. बेशक प्रियंका की भूमिका का फैसला सोनिया ही करेंगी.  वह कब और क्या होगी- यह देखना दिलचस्प होगा.

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