सरकारी अस्पतालों में जानलेवा लापरवाही

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 19, 2018 09:07 PM2018-12-19T21:07:54+5:302018-12-19T21:07:54+5:30

अंधेरी के कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) अस्पताल की आग ने अनेक लोगों की जान ले ली है, कई घायल भी हैं. अनेक को बचाया गया है

Deadly negligence in government hospitals | सरकारी अस्पतालों में जानलेवा लापरवाही

सरकारी अस्पतालों में जानलेवा लापरवाही

अंधेरी के कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) अस्पताल  की आग ने अनेक लोगों की जान ले ली है, कई घायल भी हैं. अनेक को बचाया गया है. हैरानी की बात तो यह है कि यह अस्पताल फायर सेफ्टी एनओसी के बिना ही चल रहा था और अब इस भीषण हादसे की जिम्मेदारी लेने को भी कोई तैयार नहीं.

चूंकि अस्पताल केंद्र सरकार के अधीन है, इसलिए स्थानीय प्रशासन केंद्र पर इसका ठीकरा फोड़ना चाहता है. हर एक जान महत्वपूर्ण है, लेकिन सरकार और प्रशासन की नजर में तो इंसानी जिंदगियों की कीमत जैसे कुछ लाख रुपए ही रह गई है. हर हादसे के बाद नुकसान के हिसाब से यह कीमत आंक कर पीड़ितों को मुआवजा दे दिया जाता है. सुरक्षा इंतजाम पुख्ता हों, इसकी चिंता नहीं की जाती. ऐसा होता तो एक के बाद एक हादसे न हुए होते.

इस अग्नि दुर्घटना के बाद भी अब जांच-पड़ताल का दौर शुरू होगा. वैसे, अस्पताल का फायर ऑडिट 15 दिन पहले ही हुआ था, जिसमें वह फेल हो गया था. अस्पताल के स्प्रिंकल्स और आग की सूचना देनेवाले सेंसर ठीक से काम नहीं कर रहे थे. दमकल विभाग ने अस्पताल पर आग से निपटने की समुचित व्यवस्था नहीं रखने का आरोप लगाया है. एक पखवाड़े पहले एक अधिकारी ने अस्पताल का दौरा किया था और वहां आग से निपटने की व्यवस्था सही नहीं पाई थी. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब मुंबई में इतनी भयंकर आग लगी हो.

इस साल 12 से अधिक आग लगने की भयंकर घटनाएं हो चुकी हैं. मुंबई के अलावा कोलकाता मेडिकल कॉलेज, रांची रिम्स अस्पताल और राजस्थान के बूंदी अस्पताल में भी इस साल भीषण अग्नि दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. बावजूद, आग से बचाने वाले सुरक्षा सिस्टम लगाए नहीं जाते हैं. आग के संदर्भ में इमारतों और अस्पतालों को लेकर अलग-अलग कई कानून हैं लेकिन ये लागू नहीं होते देखे जाते, वरना ऐसे हादसों को रोकना काफी हद तक संभव हो पाता.

मुंबई में फिर एक नए हादसे ने साबित कर दिया है कि अस्पतालों में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर लापरवाहियां कम नहीं हो रही हैं. हादसों के बाद आरोप-प्रत्यारोपों का चलन बदस्तूर चल रहा है. यूं भी मुंबई की तंग सड़कों के कारण दमकलकर्मियों को घटनास्थल तक पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. ‘आग क्यों लगी?’ यह तो जांच से मालूम ही हो जाएगा, लेकिन दोबारा ऐसे मानव निर्मित हादसे न हों, क्या इसके लिए विभिन्न स्तरों पर पक्के इंतजाम भी होंगे?

Web Title: Deadly negligence in government hospitals

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