रहीस सिंह का ब्लॉग: खाड़ी में युद्धोनमाद का बढ़ना खतरनाक

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 24, 2019 06:59 AM2019-09-24T06:59:59+5:302019-09-24T06:59:59+5:30

ध्यान रहे कि मार्च 2015 में सऊदी अरब के नेतृत्व में एक सैन्य गठबंधन बना जिसने अल-हूती के खिलाफ ‘ऑपरेशन डेसीसिव स्टॉर्म’ नाम का सैन्य अभियान शुरू किया. इस गठबंधन में आठ देश शामिल थे और अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्रांस खुफिया ट्रेनिंग, हथियार आपूर्ति और तकनीक मुहैया करा रहे थे. लेकिन फिर भी यह असफल रहा.

Dangerous escalation of war in the Gulf | रहीस सिंह का ब्लॉग: खाड़ी में युद्धोनमाद का बढ़ना खतरनाक

प्रतीकात्मक फोटो

पिछले कुछ दिनों का घटनाक्रम दर्शाता है कि बॉब अल-मंडेब की खाड़ी बेहद अशांत है. यह अशांति वैश्विक राजनीति में कोई निर्णायक भूमिका निभाएगी या नहीं, अभी कहना मुश्किल है, लेकिन संकेत अच्छे नहीं हैं. कारण यह कि विगत 14 सितंबर को यमन के शिया विद्रोही ग्रुप हूती ने ड्रोन और मिसाइलों के जरिये जिस तरीके से सऊ दी अरब के अबकैक प्लांट और खुरैस ऑयल फील्ड्स को निशाना बनाया, उस पर कुछ सवालिया निशान तो हैं ही, उसमें किसी ग्लोबल गेम की गंध भी आती महसूस हो रही है. हालांकि इस हमले की जिम्मेदारी स्वयं हूती विद्रोहियों ने ली है, लेकिन अमेरिका हूती की बजाय ईरान को दोषी मान रहा है क्योंकि न केवल वह बल्कि उसके सहयोगी हूतियों को ईरान की सरोगेट संतान मान रहे हैं. कहीं यह अमेरिका-ईरान युद्घ के पटकथा लेखन की शुरुआत तो नहीं?

दरअसल हूती विद्रोहियों द्वारा किए गए हमलों के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने ट्विटर पर लिखा कि ऐसे कोई सबूत नहीं हैं कि ड्रोन यमन से आए थे. इस पर ईरानी विदेश मंत्रलय ने प्रतिक्रिया में पोंपियो के आरोप से इंकार के साथ ही यह भी कहा कि इन आरोपों के जरिए ईरान के खिलाफ भविष्य में कदम उठाने के लिए जमीन तैयार की जा रही है. शायद यह सच भी है क्योंकि पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र के इंवेस्टिगेटर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हूतियों के पास फील्डेड ड्रोन हैं जिनकी रेंज 1500 किमी के आसपास है. यह रेंज तो अबकैक तथा खुरैस तक पहुंचने के लिए पर्याप्त है. इसका तात्पर्य यह हुआ कि हूती दोनों अरब संयंत्रों पर हमला करने में सक्षम थे. फिर भी उंगली ईरान की तरफ है, जिसके खिलाफ अमेरिका के पास कोई सबूत नहीं है, आखिर क्यों?

ध्यान रहे कि मार्च 2015 में सऊदी अरब के नेतृत्व में एक सैन्य गठबंधन बना जिसने अल-हूती के खिलाफ ‘ऑपरेशन डेसीसिव स्टॉर्म’ नाम का सैन्य अभियान शुरू किया. इस गठबंधन में आठ देश शामिल थे और अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्रांस खुफिया ट्रेनिंग, हथियार आपूर्ति और तकनीक मुहैया करा रहे थे. लेकिन फिर भी यह असफल रहा. आज की स्थिति यह है कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) इस गठबंधन से हटना चाहता है. वह मध्य-2017 से दक्षिण यमन में ‘सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल’ को सहयोग दे रहा था. सवाल उठता है कि क्यों सऊ दी अरब सफल नहीं हो पाया? इसलिए कि ईरान हूतियों के साथ खड़ा है? या फिर इसलिए कि सऊदी अरब अपनी साम्राज्यवादी इच्छा को त्याग नहीं पा रहा है और वह यमन पर अपना आधिपत्य चाहता है? या फिर इसलिए कि अमेरिका सोमालिया में सैन्य अड्डा न बना पाने के बाद अब यमन पर निगाह गड़ाए बैठा है? उत्तर इन्हीं में से किसी एक प्रश्न में है. 

Web Title: Dangerous escalation of war in the Gulf

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