कलराज मिश्र का ब्लॉग: संस्कृत के जरिये जीवंत हो देश की संस्कृति

By कलराज मिश्र | Published: August 12, 2022 09:42 AM2022-08-12T09:42:00+5:302022-08-12T10:02:13+5:30

व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनि और पतंजलि, औषधि के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोलशास्त्र और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और भास्कर, दर्शन के क्षेत्र में गौतम, आदि शंकराचार्य आदि के साथ ही कलाओं के आदि ग्रंथ संस्कृत में ही रचे गए हैं।

Culture of the country should be alive through Sanskrit | कलराज मिश्र का ब्लॉग: संस्कृत के जरिये जीवंत हो देश की संस्कृति

फोटो सोर्स: Wikipedia CC

Highlightsविश्वभर के ज्ञान-विज्ञान और दर्शन का महत्वपूर्ण और सूक्ष्म अध्ययन कहीं उपलब्ध है तो वह संस्कृत में ही है। संस्कृत विद्वानों को चाहिए कि वह इस भाषा में उपलब्ध गूढ़ ज्ञान को अनुवाद के जरिये हमारी नई पीढ़ी तक पहुंचाने का महती कार्य करें। अभी भी बहुत से हमारे संस्कृत ग्रंथ ऐसे हैं जिनमें निहित ज्ञान की व्यावहारिक व्याख्या अन्य भाषाओं में नहीं हो पायी है।

संस्कृत भाषा मात्र ही नहीं है बल्कि हमारे देश की गौरवमयी संस्कृति है। यह हमारी आत्मा, हमारी अस्मिता और भारतीयता के मूल से जुड़ी भाषा है। भारत बोध कराने वाले हमारे तमाम जो प्राचीन गौरव ग्रंथ लिखे गए, वह संस्कृत में ही लिखे गए इसलिए संस्कृत को हमारे देश की प्राण भाषा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमारे यहां व्याकरण को तीसरा वेदांग कहा गया है। 

वेद मंत्रों को उनके मूल रूप में सुरक्षित रखने और उनके दुरूह और गंभीर ज्ञान को प्रकाशित करने के उद्देश्य से देश में पृथक व्याकरण शास्त्र की जब आवश्यकता हुई तो पुरातन ऋषि वंशों द्वारा वेदों की विभिन्न शाखाओं को लक्ष्य करके व्याकरण ग्रंथ लिखे गए। व्याकरण शास्त्र का चरम विकास पाणिनि की ‘अष्टाध्यायी’ में हुआ। वैदिक और लौकिक संस्कृत साहित्य की भाषाशास्त्रीय एकरूपता एवं व्यवस्था लिए जिन नियमों और उपनियमों को इसमें संकलित किया गया, उसकी तुलना में विश्व की किसी अन्य भाषा का व्याकरण उपलब्ध नहीं है। 

संस्कृत के इसी ‘अष्टाध्यायी’ से हमारे देश की विभिन्न भाषाओं का निरंतर विकास भी हुआ माना जा सकता है। संस्कृत असल में विश्व की सबसे प्राचीनतम लिखित भाषा है। आधुनिक आर्यभाषा परिवार की जो भाषाएं हैं यथा हिंदी, बांग्ला, असमिया, मराठी, सिंधी, पंजाबी, नेपाली आदि मूलतः संस्कृत से ही विकसित हुई हैं। इसके साथ ही तेलुगु, कन्नड़ एवं मलयालम की भी संस्कृत से ही सर्वाधिक निकटता है। 

संस्कृत भाषा ने हिंदी सहित दूसरी बहुत सारी भाषाओं को भी किंचित परिवर्तनों के साथ बहुत सारे शब्द दिए हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि संस्कृत ही वह एकमात्र भाषा है जिसमें शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जाए, वहां अर्थ बदलने की संभावना बहुत कम होती है। इससे अर्थ का अनर्थ नहीं होता। यह इसलिए होता है कि इस भाषा में सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है इसलिए मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि व्याकरण और वर्णमाला की जो वैज्ञानिकता भारत की हमारी इस भाषा में है, वह दूसरी किसी भी भाषा में नहीं है। आधुनिक सूचना और संचार विज्ञान के अंतर्गत इस भाषा को वैज्ञानिकों ने इसी आधार पर सर्वाधिक उपयोगी भी माना है।

प्रौद्योगिकी में संस्कृत सर्वाधिक उपयुक्त भाषाओं में से एक मानी गई है। वर्ष 1985 में नासा के अनुसंधानकर्ता रिक ब्रिग्स ने विज्ञान पत्रिका में लिखे एक शोध पत्र ‘नॉलेज रिप्रेजेंटेशन इन संस्कृत एंड आर्टिफिशियल लैंग्वेज’ शीर्षक के साथ कई महत्वपूर्ण तथ्यों का अन्वेषण किया था। इसमें कम्प्यूटर से बात करने के लिए प्राकृतिक भाषाओं के उपयोग से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें समाहित की गई थीं। इसमें सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक होने और लिपि के तौर पर काफी समृद्ध होने के कारण संस्कृत भाषा का विशेष रूप से जिक्र किया गया था। 

संस्कृत भाषा के जिक्र की मूल वजह यह थी कि इसका व्याकरण ध्वनि पर आधारित है और इसमें शब्द की आकृति से ज्यादा ध्वनि को अधिक वैज्ञानिक और आसान मानते हुए इसके जरिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी में इसके उपयोग की सुगमता पर विचार किया गया था। संस्कृत के इसी महत्व को देखते हुए विश्वभर के देशों में इस समय ऐसे अनेक विश्वविद्यालय खुल गए हैं जो पूरी तरह से संस्कृत भाषा और उसके ज्ञान को समर्पित हैं। यही संस्कृत की वह शक्ति है जिसने विश्वभर को अपनी ओर आकृष्ट किया है। 

‘संस्कृत’ शब्द का अर्थ ही है, संस्कार। भले मूल रूप में नहीं परंतु शब्दों की अधिसंख्य देन के कारण संस्कृत आज भी प्रासंगिक है। बहुतेरी बार संस्कृत को देव भाषा कहे जाने पर प्रश्न उठाए जाते हैं पर संस्कृत को देव भाषा कहे जाने के मूल कारणों पर जाएंगे तो लगेगा, इस भाषा के साथ यह विशेषण यूं ही नहीं है। असल में संस्कृत में ही ज्ञान के विशिष्ट ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनसे निरंतर हम आज भी लाभान्वित हो रहे हैं। मतलब यह आलोक प्रदान करने वाली भाषा है।

देवता का अर्थ क्या है? देवता वह जो हमें ज्ञान का आलोक देते हैं देवता वह जिससे किसी शक्ति को प्राप्त करने की प्रार्थना या स्तुति की जाए और वह जी खोलकर देना आरंभ करे। संस्कृत भाषा देवों के इसी स्वरूप को बताने वाली है। इसने हमें ज्ञान के महान शास्त्र और वैदिक ग्रंथों का आलोक दिया है, इसलिए यह देव भाषा है। विश्वभर के ज्ञान-विज्ञान और दर्शन का महत्वपूर्ण और सूक्ष्म अध्ययन कहीं उपलब्ध है तो वह संस्कृत में ही है। 

व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनि और पतंजलि, औषधि के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोलशास्त्र और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और भास्कर, दर्शन के क्षेत्र में गौतम, आदि शंकराचार्य आदि के साथ ही कलाओं के आदि ग्रंथ संस्कृत में ही रचे गए हैं। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र जिसकी अभिनव गुप्त ने व्याख्या की है-सभी कलाओं का एक तरह से सार है। संस्कृत अपने आप में एक पूर्ण भाषा है। 

इसी रूप में इसके आधुनिक विकास के लिए हम सबको मिलकर कार्य करने की जरूरत है। आइए हम भारतीय संस्कृति के आलोक से जुड़ी इस भाषा से जन-जन को प्रकाशित करने का प्रयास करें। संस्कृत विद्वानों को चाहिए कि वह इस भाषा में उपलब्ध गूढ़ ज्ञान को अनुवाद के जरिये हमारी नई पीढ़ी तक पहुंचाने का महती कार्य करें। 

अभी भी बहुत से हमारे संस्कृत ग्रंथ ऐसे हैं जिनमें निहित ज्ञान की व्यावहारिक व्याख्या अन्य भाषाओं में नहीं हो पायी है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भरत मुनि का नाट्यशास्त्र, अष्टाध्यायी आदि को आधुनिक संदर्भों में, भारतीय भाषाओं और सहज संस्कृत में यदि व्याख्यायित कर सुगम रूप में पहुंचाने के अधिकाधिक प्रयास होते हैं तभी हम संस्कृत के जरिये हमारी संस्कृति को अधिकाधिक रूप में जीवंत कर पाएंगे।

Web Title: Culture of the country should be alive through Sanskrit

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