‘टीका रंगभेद’ खत्म होने पर ही कोरोना से मुक्त होगी दुनिया, शोभना जैन का ब्लॉग

By शोभना जैन | Published: June 4, 2021 02:24 PM2021-06-04T14:24:41+5:302021-06-04T14:26:38+5:30

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक  डॉ. टेड्रोस अधनोम ने ‘टीका रंगभेद’ बताया है. निश्चित तौर पर यह टीका रंगभेद खत्म होना दुनिया के लिए बेहद जरूरी है.

covid 'vaccine apartheid' Many developing and poor countries including India free corona Shobhana Jain's blog | ‘टीका रंगभेद’ खत्म होने पर ही कोरोना से मुक्त होगी दुनिया, शोभना जैन का ब्लॉग

वैश्विक सहयोग से अमीर-गरीब के फासले से हट कर कोरोना के टीके दुनिया भर में लगाए जाएं.

Highlightsवैश्विक सहयोग से ही पूरी दुनिया इस महामारी को खत्म कर सकती है. अफ्रीका में केवल 2.1 प्रतिशत लोगों को ही कोविड की सिंगल डोज लग पाई थी.भारत की बात करें तो अब तक 14.42 प्रतिशत आबादी को कोविड टीके लग चुके हैं.

भारत सहित अनेक विकासशील और गरीब देशों में एक तरफ जहां कोविड से निपटने के लिए टीकों की किल्लत को लेकर हाहाकार मचा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ अमीर देशों के पास प्रचुर मात्ना में कोविड टीके उपलब्ध हैं.

इस स्थिति को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक  डॉ. टेड्रोस अधनोम ने ‘टीका रंगभेद’ बताया है. निश्चित तौर पर यह टीका रंगभेद खत्म होना दुनिया के लिए बेहद जरूरी है. वैश्विक सहयोग से ही पूरी दुनिया इस महामारी को खत्म कर सकती है. अगर इस फासले को आंकड़ों में देखें तो कोविड महामारी को एक वर्ष से ज्यादा बीत जाने के बाद भी, पिछले माह तक अफ्रीका में केवल 2.1 प्रतिशत लोगों को ही कोविड की सिंगल डोज लग पाई थी.

भारत की बात करें तो अब तक 14.42 प्रतिशत आबादी को कोविड टीके लग चुके हैं, जबकि इजराइल, बहरीन, अमेरिका, इंग्लैंड जैसे देशों में यह संख्या ज्यादा है. वैश्वीकरण के दौर में दुनिया के किसी भी कोने में, भले ही वह अमीर देश हो या गरीब देश, अगर वहां कोई इंसान कोरोना से पीड़ित है तो वहां से अन्यत्न कोरोना फैलने का खतरा मंडराता रहेगा.

ऐसे में जरूरी है कि कोरोना के बचाव के लिए वैश्विक सहयोग से अमीर-गरीब के फासले से हट कर कोरोना के टीके दुनिया भर में लगाए जाएं. इसी टीका रंगभेद से निराश दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने विश्व स्वास्थ्य सभा में दो दिन पूर्व कहा कि यह केवल नैतिक रूप से ही आवश्यक नहीं है बल्किवैश्विक महामारी के खात्मे के लिए प्रभावी और समावेशी वैश्विक टीकाकरण बहुत जरूरी है.

उन्होंने कहा कि संपन्न देशों में करोड़ों लोगों का टीकाकरण हो चुका है जबकि गरीब देशों में अरबों लोग टीके का इंतजार कर रहे हैं और उनके संक्रमित होने तथा उनकी जान जाने का खतरा बना हुआ है.
अमेरिका ने भारत के साथ इस वैश्विक महामारी का एक साथ मिल कर खात्मा करने पर बल देते हुए सहयोग जारी रखने की बात कही है.

लेकिन इसके साथ ही अहम सवाल यह भी है कि कोरोना टीकों को बनाने और हासिल करने या यूं कहें कि बढ़ते ‘टीका राष्ट्रवाद’ से इस वैश्विक आपदा से निपटने के लिए क्या पूरी तरह से वैश्विक सहयोग संभव हो पाएगा. यूरोपीय यूनियन के वरिष्ठ प्रतिनिधि जोसेफ बोरेल  का भी कहना है कि दुनिया भर में सभी को टीका लगाने के लक्ष्य को पूरा करने के साथ समन्वित ढंग से सभी को मिल कर कदम उठाने होंगे.

इसके साथ ही वे किसी राजनीतिक ध्येय तथा ‘टीका राष्ट्रवाद’ के लिए टीके उपलब्ध कराए जाने को जोड़ने के खतरे से सावधान होने और उसे खारिज  करने के प्रति भी सतर्क रहने का आह्वान करते हैं.
वैसे इस संबंध में अगर भारत द्वारा वसुधैव कुटुंबकम की भावना से  मदद किए जाने के बाद अगर दूसरी लहर में मिल रहे सहयोग की बात करें तो अमेरिका अब तक भारत को कोविड-19 संकट से निपटने के लिए 50 करोड़ डॉलर से अधिक की मदद दे चुका है. यूरोपीय यूनियन के जोसेफ बोरेल के अनुसार मौजूदा रफ्तार से दुनिया भर में 2023 तक ही सभी को टीके लग पाएंगे.

जबकि कोविड महामारी दुनिया भर में जान-माल की भारी तबाही मचाने वाली बीमारी बन चुकी है. अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, चीन जैसे देशों द्वारा टीके बना लेने और अन्य अमीर देशों द्वारा भी उन्हें भारी भरकम रकम दे खरीद लिए जाने से वहां की आबादी धीरे-धीरे इस बीमारी के दुष्प्रभावों से उबरने लगी है  लेकिन विकाशशील और गरीब देशों को टीके नहीं मिल पाने से वे इस दुष्चक्र  में अभी तक  फंसे हैं.

वजहें भले ही आर्थिक संसाधनों की किल्लत हो या सरकारों की गलत प्राथमिकताएं, लेकिन इतना तय है कि अमीर, गरीब का भेद भूल कर अब  सभी को  मिलकर इस चुनौती से समूहिक रूप से जूझना होगा, तभी पूरी दुनिया कोरोना मुक्त हो सकेगी.   चुनौती जल्द से जल्द अनिवार्य रूप से वैश्विक सहयोग करने की है.

भारत ने भयावह दूसरी लहर से पहले वसुधैव कुटुंबकम की भावना से  अनेक देशों को कोविड के इलाज के लिए दवाएं और उपकरण दिए हैं. लेकिन अब हमारे देश में खुद ही टीकों की किल्लत चल रही है, इसलिए दूसरे देशों की मदद करना फिलहाल संभव नहीं है. विश्व के विकसित देशों को वैश्विक आपदा में  सभी को सहयोग देने की भावना रखनी चाहिए, तभी कोरोना से मुक्ति संभव होगी.

Web Title: covid 'vaccine apartheid' Many developing and poor countries including India free corona Shobhana Jain's blog

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