संकट काल के लिए एक क्रांतिकारी कदम की जरूरत, आलोक मेहता का ब्लॉग

By आलोक मेहता | Published: June 8, 2021 03:25 PM2021-06-08T15:25:27+5:302021-06-08T15:27:03+5:30

कोरोना काल में सहायता के लिए राजनीतिक दलों और उनके युवा संगठनों ने कुछ काम भी किया, लेकिन दावे बड़े-बड़े किए. फिर भी लाखों सामान्य गरीब लोगों और दूरदराज इलाकों में लोगों को बहुत कठिनाइयां होती रही हैं.

covid coronavirus pm narendra modi revolutionary step needed in times crisis Alok Mehta's blog | संकट काल के लिए एक क्रांतिकारी कदम की जरूरत, आलोक मेहता का ब्लॉग

सरकार ने शिक्षा नीति पहले ही घोषित कर दी है और उसे लागू किए जाने की तैयारियां केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा की जा रही हैं. (file photo)

Highlightsनई पीढ़ी को समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों के लिए कोई एक दिशा स्पष्ट नहीं है. आजादी के पहले, विश्व युद्ध के समय यूनिवर्सिटी कोर की तरह स्थापित हुआ.करीब 17 हजार स्कूल-कॉलेज के करीब तेरह लाख युवा (छात्न-छात्नाएं) इससे जुड़े हैं.

कोरोना महामारी का संकट हो या उग्र हिंसा प्रभावित क्षेत्नों का संकट, किसी थोपे गए युद्ध का संकट अथवा कुंभ जैसे करोड़ों लोगों की सुरक्षा का प्रबंध- क्या केवल सरकार पर निर्भर रहना पर्याप्त है?

शायद नहीं. तभी सामाजिक, स्वयंसेवी, धार्मिक संगठन और कई निजी संस्थान के लोग यथासंभव सहयोग करते हैं. लेकिन हर संकट के लिए भारतीय समाज को तैयार रखने के लिए स्थायी व्यवस्था पर भी विचार होना चाहिए. संकट के इस दौर में अपने स्कूल-कॉलेज के दिनों के अनुभव याद करते हुए एक क्रांतिकारी निर्णय से आने वाले वर्षों में संपूर्ण समाज को एक हद तक राहत देने का रास्ता बन सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यदि रातोंरात नोटबंदी या जम्मू-कश्मीर के लिए पुराने अनुच्छेद 370 को एक झटके में समाप्त करने का फैसला कर सकते हैं तो सामाजिक, शैक्षणिक क्रांति के लिए एक निर्णय करके संसद से भी स्वीकृति क्यों नहीं ले सकते हैं? सरकार ने शिक्षा नीति पहले ही घोषित कर दी है और उसे लागू किए जाने की तैयारियां केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा की जा रही हैं.

लेकिन शैक्षणिक व्यवस्था में संघीय संवैधानिक व्यवस्था के बावजूद एक निर्णय सबके लिए अनिवार्यता से लागू करने की जरूरत है. यह है- देश के हर सरकारी या निजी क्षेत्न के स्कूल-कॉलेजों में हर छात्न के लिए एनसीसी (नेशनल कैडेट कोर) का कम से कम एक वर्ष का प्रशिक्षण और उसमें उत्तीर्ण होने की अनिवार्यता.

वैसे जो छात्न इच्छुक हों, वे दो-तीन वर्ष का प्रशिक्षण भी ले सकते हैं. नौकरियों में इसे अन्य डिग्री के साथ अतिरिक्त योग्यता माना जा सकता है. इस कदम के लिए कोई नया ढांचा भी नहीं तैयार करना होगा. इसमें कोई राजनीतिक विवाद भी खड़ा नहीं हो सकता है. कोई धर्म, जाति, क्षेत्न का मुद्दा नहीं हो सकता है. लड़का-लड़की का भेदभाव भी नहीं है.

देश में स्कूल से ही सद्भाव, अनुशासन, सेवा,  प्रारंभिक अर्धसैन्य प्रशिक्षण दिए जाने पर किस परिवार को आपत्ति हो सकती है? एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि विश्व के कई देशों में 18 से 21 वर्ष तक की आयु और शैक्षणिक डिग्री के लिए एक वर्ष के सैन्य प्रशिक्षण की अनिवार्यता है. यह मुद्दा इस समय उठाने का एक कारण और भी है.

कोरोना काल में सहायता के लिए राजनीतिक दलों और उनके युवा संगठनों ने कुछ काम भी किया, लेकिन दावे बड़े-बड़े किए. फिर भी लाखों सामान्य गरीब लोगों और दूरदराज इलाकों में लोगों को बहुत कठिनाइयां होती रही हैं. इससे भी बड़ी समस्या गली-मोहल्लों में बच्चों-युवाओं के जमावड़ों, उनकी बेचैनी, सामान्य दिनों में भी युवाओं के असंतोष और उग्रता, भटकाव, अपराधियों अथवा अतिवादियों द्वारा उन्हें फंसाने की स्थितियां देखने को मिलती रही हैं. जहां तक राजनीतिक दलों की बात है, उनके अपने पूर्वाग्रह अथवा कमजोरियां हैं.

नई पीढ़ी को समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों के लिए कोई एक दिशा स्पष्ट नहीं है. अब बात एनसीसी की. यह आजादी के पहले, विश्व युद्ध के समय यूनिवर्सिटी कोर की तरह स्थापित हुआ. लेकिन स्वतंत्नता के बाद 1950 से स्कूलों और कॉलेजों में सक्रिय सरकारी प्रशिक्षण व्यवस्था है. इस समय करीब 17 हजार स्कूल-कॉलेज के करीब तेरह लाख युवा (छात्न-छात्नाएं) इससे जुड़े हैं.

हाल ही में रक्षा मंत्नी राजनाथ सिंह ने बताया है कि 2023 तक सीमावर्ती क्षेत्नों की शिक्षा संस्थाओं में विस्तार करने से करीब पंद्रह लाख युवा इससे जुड़ जाएंगे. जरा ध्यान दीजिए, हमारे देश की आबादी का लगभग 50 प्रतिशत यानी 60 करोड़ युवा हों, वहां सिर्फ 15 लाख के लिए देश की प्रारंभिक अर्धसैन्य प्रशिक्षण व्यवस्था है.

इस संगठन में थल, वायु और नौसेना के लिए उपयोगी प्रशिक्षण की सुविधा छात्न की रुचि के अनुसार मिल सकती है. कुछ वर्ष पहले संसद में सरकार के एक वरिष्ठ मंत्नी ने यह उत्तर दिया था कि एनसीसी संगठन द्वारा चार करोड़ युवाओं के लिए साधन सुविधा उपलब्ध नहीं कराए जा सकते हैं.

सबसे दिलचस्प बात यह है कि केंद्र में यह रक्षा मंत्नालय के अधीन है और उससे ही बजट का प्रावधान होता है, क्योंकि कैडेट्स को प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी पूर्व सैनिक या सेनाधिकारी को दी जाती है. फिर राज्य सरकारों के शिक्षा विभाग अपने स्कूल-कॉलेज की व्यवस्था, खर्च की जिम्मेदारी संभालते हैं. एक और दिलचस्प तथ्य- एनसीसी से ही मिलता-जुलता एक सरकारी संगठन है-एनएसएस (राष्ट्रीय सेवा योजना). यह भी देश के कई कॉलेजों में समाज सेवा के प्रशिक्षण का काम करता है. यह केंद्र के युवा और खेल मंत्नालय के अधीन है.

योजनाएं और उद्देश्य बहुत अच्छे हैं. लेकिन वर्षों का अनुभव इस बात का प्रमाण है कि एनसीसी या एनएसएस सरकारी स्कूलों और कॉलजों में अधिक सक्रि य हैं. निजी यानी पब्लिक स्कूल-कॉलेजों में अनुशासन, सेवा और जरूरत पड़ने पर सुरक्षा व्यवस्था में अन्य करोड़ों युवाओं को तैयार करने की क्या कोई आवश्यकता नहीं है? दिशाहीनता से मुक्ति पाकर नई पीढ़ी के लिए सेवा अनुशासन की शिक्षा-दीक्षा की समान व्यवस्था की अनिवार्यता को केवल एक क्रांतिकारी निर्णय से क्यों नहीं लागू किया जा सकता है?

Web Title: covid coronavirus pm narendra modi revolutionary step needed in times crisis Alok Mehta's blog

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