कोविड के साथ लड़ाई में बचाव के उपायों से ही बचेगी जान, गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग
By गिरीश्वर मिश्र | Published: April 7, 2021 02:47 PM2021-04-07T14:47:48+5:302021-04-07T14:48:55+5:30
लोगों को मास्क और सामाजिक दूरी के मानक का पालन अनिवार्य रूप से जिस तरह करना चाहिए था उसमें कोताही होने लगी.
लोक स्वास्थ्य के लिए शताब्दी की महाचुनौती के रूप में कोविड-19 अब एक साल पुराना हो चुका है. इस दौरान इस विषाणु ने कई-कई रूप धारण किए और इसके लक्षण भी इस कदर बदलते रहे कि उससे बचने की सारी कोशिशें नाकाफी रहीं.
पिछले कुछ महीनों में ऐसा लगने लगा था कि धीरे-धीरे इसकी गति मंद पड़ रही थी. लोगों को ऐसा लगा कि इसकी गति नियंत्रित हो रही है और मन ही मन ऐसा सोचने लगे कि संभवत: इससे निजात पाने का क्षण भी आने ही वाला है. पर मार्च के महीने में जिस तरह पलटवार करते हुए कोविड के संक्रमण का पुन: प्रसार और विस्तार जिस तीव्र वेग से हुआ है वह अब लोगों में भय का वातावरण पैदा कर रहा है.
इस बार इसकी गति पहले से तीव्र और रोग की तीक्ष्णता अप्रत्याशित रूप से खतरनाक स्तर तक पहुंच रही है. इसके जैविक कारण क्या हैं यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है परंतु सामाजिक जीवन में कोविड के लिए बनी मानक आचरण संहिता का पालन करने में ढील साफ तौर पर दिखने लगी थी. शायद थकान और जिंदगी के सामान्य क्रियाकलापों पर लगे विभिन्न दीर्घकालिक प्रतिबंधों से उपजी ऊब के कारण लोगों ने उस जोखिम को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था जो उपस्थित था. प्रतीक्षा की परीक्षा होने लगी.
लोगों को मास्क और सामाजिक दूरी के मानक का पालन अनिवार्य रूप से जिस तरह करना चाहिए था उसमें कोताही होने लगी. जरूरी अनुशासन का पालन नहीं हो रहा था और लोग खुद-ब-खुद ढील लेने लगे थे. बाजारों में भीड़ जुटने लगी थी और सरकारी दफ्तर भी पुराने ढर्रे पर चलने को तत्पर हो रहे थे. कोविड पर काबू पाने के लिए शुरू की गई खास स्वास्थ्य सुविधाएं भी सरकारें समेटने लगी थीं. बड़े बच्चों के स्कूल-कॉलेज भी खुलने लगे थे. इन सब जगहों पर बिना मास्क और बिना दूरी बनाए आना-जाना शुरू हो गया था.
लोगों के प्रतिरक्षा तंत्न (इम्यून सिस्टम) की निजी क्षमता होती है जिसकी बदौलत बाहरी तत्वों से मुकाबला करने में शरीर अलग स्तर पर काम करता है. घर में बंद रहने, शारीरिक व्यायाम न करने, संतुलित और पौष्टिक आहार न लेने से प्रतिरक्षा तंत्न कमजोर पड़ने लगता है. ऐसे में विषाणु का असर होना सरल हो जाता है. आज हम एक विचित्न स्थिति का सामना कर रहे हैं. 2020 में मार्च-अप्रैल के समय कोरोना की तीव्रता इस साल की तुलना में कम थी पर लोगों में तब भय ज्यादा था. सन् 2021 के मार्च-अप्रैल में तीव्रता अधिक होने पर भी भय कम दिख रहा है.
आज स्थिति यह हो रही है कि दिल्ली, नागपुर और बनारस जैसे शहरों में गैर सरकारी और सरकारी हर अस्पताल के बेड पूरी तरह से मरीजों से भरे पड़े हैं. वेंटीलेटर और आईसीयू के बेड कम पड़ने से अस्पताल की व्यवस्था चरमरा रही है. करोना के प्रकोप के तीव्र वेग से बढ़ने के पीछे मुख्य कारण लोगों द्वारा यह मान बैठना था कि कोरोना जा रहा है. इस विश्वास के साथ इस जानकारी से कि उसका टीका भी आ रहा है, लोगों में विषाणु को कम तरजीह देने की प्रवृत्ति पनपने लगी. लोग उपेक्षा करने लगे और मानक कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने में ढील लेने लगे.
मास्क लगाने और सामाजिक दूरी बनाए रखने से लोग चूकते गए. घर से बाहर निकल कर बाजार और धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रकार के सार्वजनिक आयोजनों में लोग अनियंत्रित तरीके से भाग लेने लगे थे. ट्रेन के भीतर और स्टेशनों पर खूब भीड़ होने लगी. इस स्थिति में कोविड -19 के संक्रमण की संभावना बढ़ने लगी. कोविड के कई स्ट्रेन आ गए हैं जो रोग में उछाल ला रहे हैं. गफलत में बढ़े अति आत्मविश्वास का परिणाम है संक्रमण में बेतहाशा वृद्धि.
आज के बिगड़ते हालात में अपनी इच्छाओं और कामनाओं पर लगाम लगाने की जरूरत है. जान है तो जहान है. जीवन की रक्षा अधिक जरूरी है क्योंकि जीवन रहेगा तो ही इच्छाओं का कोई अर्थ होगा. व्यवहार के धरातल पर हमें स्वेच्छा से परिवर्तन लाना पड़ेगा. सामाजिक परिसरों में आवाजाही को नियंत्रित और स्वच्छ रखना प्राथमिकता होनी चाहिए. पृथकवास , हाथ धोना और मास्क का अनिवार्य उपयोग आज की सबसे बड़ी जरूरत है जिसे नजरअंदाज करना बहुत नुकसानदेह होगा. बचाव के हर उपाय अपनाने के लिए मुहिम तेज करनी होगी.