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Coronavirus: लॉकडाउन खुलने के पूर्व हमारी चिंताएं क्या होना चाहिए?

By राजेश मूणत | Updated: May 9, 2020 23:58 IST

हम और हमारा देश संकट में है, कोरोना के बाद भीषण मंदी आनेवाली है, इसलिए मितव्ययी कैसे हों, जरूरी संसाधनों की कैसे बचत करें इस का कोई विचार नहीं। अब शराब का मुद्दा महत्वपूर्ण बन रहा है। दारू के लिए लग रही लाइनों को सभी समाचार माध्यमों में पर्याप्त स्थान मिल रहा है। दारू खरीदने वालों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर सवाल सामने आ रहे है। उंगली पर पहचान की स्याही लगाने से लेकर शराब की दुकानों को खोलने या न खोलने पर नुक्ताचीनी समाचारों के केंद्रीय विषय में शामिल हो गए हैं। जबकि विश्व के अन्य तमाम राष्ट्र लॉकडाउन समाप्ति के बाद के बदलावों पर चर्चाएं कर रहे हैं।

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अमेरिका, ब्रिटेन, रूस जर्मनी सहित विश्व की सभी बड़ी महाशक्तियां हमारी तरह ही कोरोना से जूझ रही है लेकिन आर्थिक रूप से सम्पन्न इन ताकतों और हम लोगो की सोच में बड़ा अंतर है। यह अंतर ही चिंता का बड़ा विषय है।  

अमेरिका की बात करें तो अधिसंख्य अमेरिकन नागरिकों को तो लॉकडाउन ही मान्य नहीं है। उसका पालन न करने पर होने वाले खतरे से भी वे पूरी तरह वाकिफ हैं। लेकिन व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आंच लाए बगैर कोरोना पर नियंत्रण होना चाहिए। वहां सरकार से यह मांग की जा रही है।

नागरिक आंदोलन और टेलीविजन कार्यक्रमों की बहस में प्रमुख विषय भी एकदम उलट है। इसी तरह अन्य पश्चिमी देशों में भी जल्द से जल्द लॉकडाउन खत्म कर फिर से नियमित रूप से नौकरी एवं व्यवसाय शुरू किए जाने की मांग जोर पकड़ रही है। उनका नज़रिया स्पष्ट है। कोरोना संक्रमण को अर्थव्यवस्था नष्ट करने के लिए किया गया विषाणू अटैक माना जा रहा है, इसे एक विदेशी आक्रमण या युद्ध की तरह लिया जा रहा है। 

अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को हर तरह से बचाना इन देशों की प्राथमिकता बन गया है। युद्ध की तरह जनहानि को अटल सत्य मानकर अभी तक के नुकसान से उबरकर ये देश अब आगे के कदमों की तैयारी में लग गए हैं। इन देशों में बहस का विषय हमारे से एकदम उलट है।   

अर्थव्यवस्था को फिर से किक स्टार्ट कैसे करें, लोगों तक स्टिम्युलस कैसे पहुंचे, भविष्य में भी यदि ऐसे ही वायरस अटैक हो, तो उससे निपटने के लिए किस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवातंत्र बनाया जाए, उत्पादन को कैसे निरंतर चालू रखें, इस तरह की बातों पर उनके विचार रहते हैं।

कई कंपनियों ने अब तक अपना ऑफिस स्ट्रक्चर बदल दिया है। बड़ी कम्पनियां अपने जरूरी एम्प्लॉई को आफिस बुलाएंगी। 

ऐसे में उनके बैठने के लिए प्लेक्सिग्लास लगाकर प्राइवेट केबिन तैयार किए जा रहे है। बाकी कर्मचारियों से घर बैठे काम लेने के लिए व्यवस्थागत बदलाव किए जा रहे हैं।  

हर जगह आवश्यक सामाजिक दूरी कैसे बनाई रखी जा सकें, इस पर आम लोगों से चर्चा की जा रही है।

विमानन कम्पनियां सुरक्षित दूरी बनाए रखने के उद्देश्य से बैठक व्यवस्था में आवश्यक बदलाव कर रही हैं।

सुपर स्टोर्स ग्राहकों की सुरक्षा की दृष्टि से हांथों पर सैनिटाइजर का स्प्रे, बिलिंग काउंटर पर आयसोलेशन, व्यवस्थित क्यू के लिए रेलिंग जैसी व्यवस्थाएं पूर्ण कर चुके हैं। बहस का बड़ा विषय देश और देश की अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने पर केंद्रित है। 

इसके विपरीत भारत में क्या हो रहा है?

मर्दों के कपड़े धोने और बर्तन मांजने,  मर्दों के खाना पकाने, सड़कों पर लॉकडाउन तोड़ने पर पुलिस द्वारा पार्श्वभाग पर किया हुआ लाठीप्रहार, हिंदू मुस्लिम, मोदीजी, राहुलजी सहित छोटे बड़े नेताओं पर व्यंग। किसी दुःखद घटना पर क्षुद्र राजनीति।

एक राष्ट्र, एक समाज की स्वस्थ मानसिकता लेकर, एक होकर इस विपत्ति से कैसे लड़ें, इस पर कोई पोस्ट या मैसेज नहीं। कोरोना जाने के बाद फिर से कैसे उठ खड़े होना है, इस पर पोस्ट नहीं। देश, समाज और व्यक्तिगत नुकसान से कैसे उबरें, इस पर पोस्ट नहीं।

इसके साथ-साथ घर में बैठकर लॉकडाउन के समय में कौन कौन से मसालेदार व्यंजन बनाएं, इस पर ढेर सारी पोस्ट।

हम और हमारा देश संकट में है, कोरोना के बाद भीषण मंदी आनेवाली है, इसलिए मितव्ययी कैसे हों, जरूरी संसाधनों की कैसे बचत करें इस का कोई विचार नहीं। 

अब शराब का मुद्दा महत्वपूर्ण बन रहा है। दारू के लिए लग रही लाइनों को सभी समाचार माध्यमों में पर्याप्त स्थान मिल रहा है। दारू खरीदने वालों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर सवाल सामने आ रहे है। उंगली पर पहचान की स्याही लगाने से लेकर शराब की दुकानों को खोलने या न खोलने पर नुक्ताचीनी समाचारों के केंद्रीय विषय में शामिल हो गए हैं। जबकि विश्व के अन्य तमाम राष्ट्र लॉकडाउन समाप्ति के बाद के बदलावों पर चर्चाएं कर रहे हैं। छोटे और मध्यम वर्ग के व्यवसायियों को कोन से नए प्रयास करना होंगे ?

शैक्षणिक व्यवस्था,  चिकित्सा व्यवस्था, यात्री परिवहन के लिए रेल और सड़क यातायात खुलेगा तब इनमें डिस्टेंस मेंटेन के लिए क्या बदलाव करना होंगे? इस पर कोई चर्चा नहीं।  देश के मझले और छोटे शहरों के बाज़ारों में पार्किंग की स्थायी समस्या है। इस समस्या के साथ सोश्यल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे करना, क्या इन विषयों पर समाज में चिंतन नहीं करना चाहिए। सरकार के भरोसे कौन सी व्यवस्थाऐं छोड़ना और हमारी जिम्मेदारियां क्या होना चाहिए? 

उम्मीद की जाना चाहिए की कोरोना को आर्थिक विश्वयुद्ध मानकर हम आगे के लिए क्या जरूरी चिंताए हैं, इस पर ध्यान देना प्रारम्भ कर लेंगे। सनद रहे, राष्ट्र को सिर्फ और सिर्फ हमारी एकजुटता और अनुशासन से ही सुरक्षित रखा जा सकता है।

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