डॉ. आशीष दुबे का ब्लॉग: क्यों न कामगारों को पलायन करने पर मजबूर करने वालों पर केस दर्ज हो?
By डॉ. आशीष दुबे | Published: April 1, 2020 02:35 PM2020-04-01T14:35:48+5:302020-04-01T14:35:48+5:30
ऐसी स्थिति में उन्हें कपड़े, दवा और चिकित्सा सुविधा मुहैया कराना व उन्हें सुरक्षा का आवरण मुहैया कराना बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य होगा। बाहर से आए मजदूरों समेत सभी श्रमिकों के रहने, खानपान, साफ-सफाई, कपड़ों और स्वास्थ सुविधाओं का इंतजाम करे।
लॉकडाउन की अवधि 31 मार्च से 21 दिन और बढ़ने की घोषणा के साथ शुरू हुआ दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से आए मजदूर व कामगारों का पलायन धीरे-धीरे राष्ट्रीय समस्या बन गया। मीडिया से लेकर हर कोई इस पर चिंताएं जताने लगा। केंद्र व राज्य सरकारें उनकी मदद के लिए आगे आई। कई स्वयंसेवी संगठन व आम लोगों ने अपनी सामाजिक दूरियां बनाते हुए अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह किया। मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में इस समस्या को लेकर एक याचिका दायर की गई।
याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि लॉकडाउन की वजह से परेशानियों का सामना कर रहे दूसरे राज्यों से आए श्रमिकों के लिए सभी आवश्यक इंतजाम करें। साथ ही, सेवाभावी संस्थाओं से दानराशि जुटाने की संभावनाओं पर विचार करे। न्यायालय ने आदेश में यह भी कहा कि आमदनी का जरिया बंद हो जाने के कारण यह कामगार बेहद कठिन दौर से गुजर रहे है।
ऐसी स्थिति में उन्हें कपड़े, दवा और चिकित्सा सुविधा मुहैया कराना व उन्हें सुरक्षा का आवरण मुहैया कराना बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य होगा। बाहर से आए मजदूरों समेत सभी श्रमिकों के रहने, खानपान, साफ-सफाई, कपड़ों और स्वास्थ सुविधाओं का इंतजाम करे।
इन सबके बीच एक बड़ा सवाल बना हुआ है। वह यह है कि आखिर यह नौबत आई क्यों? हालांकि, अभी तक इस ओर किसी ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। लेकिन स्थिति की गंभीरता से समीक्षा की जाए तो कारण यह नजर आएगा कि काम बंद होने से मजदूर व कामगारों को घर बैठना पड़ा। लॉकडाउन तक इन मजदूर व गरीब परिवारों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उन लोगों की थी जिनके साथ यह लोग काम करते थे। लेकिन उन्होंने इनकी किसी भी तरह से मदद करना बंद कर दिया। काम नहीं तो वेतन नहीं की तर्ज पर इन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया।
ऐसे में इन मजदूर व कामगारों के शहर छोड़ गांव की ओर लौटने के अलावा दूरा कोई ज्चारा नहीं बचा, जिससे देश भर में मजदूर व कामगारों के पलायन का दौर शुरू हो गया। संकट की घड़ी को देखते हुए यह ठेकेदार, दुकानदार व कारोबारी, छोटे-बड़े उद्योजक व उन लोगों की यह नैतिक जिम्मेदारी थी कि वह उनके यहां काम करने वाले कामगारों व मजदूरों को भरोसा दिलाए कि उन्हें लॉकडाउन से डरने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने ऐसा नहीं करते हुए अपने हाथ खड़े कर लिए। ऐसे में मन में सवाल उठता है कि क्यों न अपने जिम्मेदारी व दायित्वों से हाथ खड़ा करने वाले व मजदूर व कामगारों को पलायन के लिए मजबूर करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए?