शरद जोशी की रचना: विवाह और विधि-विधान

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 5, 2019 08:26 PM2019-01-05T20:26:02+5:302019-01-05T20:26:02+5:30

प्रेम की आंखें चूंकि कमजोर होती हैं, इस कारण बदशक्ल मेकअप की हुई अभिनेत्री सुंदर लगती है और लड़कियों के लिए गधे भी सिकंदर हो जाते हैं.

Composition of Sharad Joshi: Marriage and Legislation | शरद जोशी की रचना: विवाह और विधि-विधान

सांकेतिक तस्वीर

आजकल विधानसभा में थोड़े-थोड़े समय में लोगों के चेहरे की रंगत बदलती है. कभी कोई सड़ी शक्ल बनाकर बैठ जाता है, कभी कोई क्रोध में कुछ कर गुजरने की सोचता है, कोई मन-मन में बड़ा प्रसन्न होता है, किसी के दांत हल्के-हल्के पीले होने के बावजूद बाहर रहते हैं, किसी की आंखों में गहरी जिज्ञासा और किसी की आंखों में नई उमंगें उछलने लगती हैं.

क्योंकि विषय विवाह का है. किसी को अपनी पत्नी का भय है तो वे तलाक पर बिगड़ खड़े होते हैं. किसी को अपनी कुंवारी बेटी का खयाल आता है और वह विवाह की उम्र पर उसके अनुसार अपनी राय जाहिर करता है. किसी को अपने विधुर जीवन की पीड़ा का खयाल आता है, और वह वृद्ध विवाह का विरोध नहीं करता.
विवाह एक ऐसा रोमांस है जिसमें हीरो की मौत तो पहले पृष्ठ पर हो जाती है. बेकन का शायद अपने अनुभव पर ही यह कहना होगा कि विवाह के दूसरे दिन ही दूल्हे को लगता है कि वह सात साल वृद्ध हो गया है. विवाह एक ऐसा अजीब चक्कर है कि जो इसमें फंस गए, वे तो बाहर आना चाहते हैं और वे जो बाहर हैं, वे जाकर फंसना चाहते हैं.

प्रेम की आंखें चूंकि कमजोर होती हैं, इस कारण बदशक्ल मेकअप की हुई अभिनेत्री सुंदर लगती है और लड़कियों के लिए गधे भी सिकंदर हो जाते हैं. इस कारण विवाह के कभी विधान नहीं बन सकते. हर स्त्री और हर पुरुष अपना अलग विधान तैयार करता है. क्योंकि विवाह एक ऐसा बिंदु क्षेत्र है जहां पर प्रेम, उम्मीद, गलतियां, नापसंदी, द्वेष, अक्लमंदी, मां-बाप, जाति, मूर्खता, उम्र, अनुभव, शक्ल, सनक, जन्मपत्री और बटुवा आदि की समस्या आकर मिल जाती है. इसी कारण प्राय: दूल्हे से घोड़ा सुंदर लगता है और दुल्हन से साड़ी अच्छी होती है. कहते हैं, फ्रांस में प्रेम सुखांत होता, इंग्लैंड में दुखांत, अमेरिका में कीचड़ और भारत में प्रेम एक अप्रदर्शित डिब्बे में बंद, सेंसर द्वारा अस्वीकृत फिल्म होती है. मां-बाप को हमेशा योग्य वर और वधू खोजने की सनक रहती है, जबकि बाप कभी योग्य वर नहीं रहे और मां कभी योग्य वधू नहीं रही.

मूल गलती यह है कि विधानसभा उसे सामजिक नजर से देखती है जबकि वह शारीरिक मामला है. लड़का-लड़की एक-दूसरे को सामाजिक नजर से नहीं देखते हैं.  कानून बनने पर विवाह नहीं होता. विवाह होने पर तो कानून बेमतलब है. शरीर अगर कानून मानते तो न मरीज बढ़ते, न बच्चे! तो विधानसभा साल भर अधिवेशन करके देख ले. असंतुष्टों की संख्या उतनी ही होगी जितनी संतुष्टों की. और संतोष नहीं तो कैसा प्रजातंत्र! ल्लल्ल

(रचनाकाल - 1950 का दशक)

Web Title: Composition of Sharad Joshi: Marriage and Legislation

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