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शरद जोशी का कॉलमः  निर्माण कार्य और कर के बीच संबंध

By शरद जोशी | Updated: July 13, 2019 06:24 IST

‘निर्माण’ शब्द लिखने-सुनने में बड़ा प्यारा लगता है. यह शब्द विशेष समय, घड़ी की ध्वनि देता है. इस शब्द में एक विशेष दृश्य, एक विशेष शक्ति और एक विशेष चमक है.

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‘निर्माण’ शब्द लिखने-सुनने में बड़ा प्यारा लगता है. यह शब्द विशेष समय, घड़ी की ध्वनि देता है. इस शब्द में एक विशेष दृश्य, एक विशेष शक्ति और एक विशेष चमक है. इसके पीछे छुपा दृश्य बांध का, ईंट का, चूने का और सीमेंट का है. इसमें दबी शक्ति मेहनत की है. और इसमें चमक चांदी की है. चांदी के प्रवेश के लिए सरकार कागज के दरवाजे बनाती है. कागज, यानी टैक्सों के नियम, कर..कर..अवश्य कर! .न कर तो बैठ घर.

निर्माण शब्द का अधिक प्रचार होता है. जुबान पर, अखबार पर यही शब्द आता है. पर अधिक निर्माण के लिए अधिक चांदी की आवश्यकता होती है, यह ध्यान में नहीं रहता. आजादी के पूर्व ‘क्रान्ति’ भी ऐसा ही मोहक शब्द था. अब उसका उपयोग कम हो गया. होता है तो अन्य अर्थो में. 

क्रान्ति के पीछे भी पिस्तौल, बम, डायनामाइट जैसे शब्द दबे रहते थे. उसकी चमक अंधेरे में हलकी किरण की तरह थी. उसकी चमक-ध्वनियां धड़ाकों की ध्वनियां हैं. तो वह शब्द भी बड़ा प्यारा था. अब निर्माण शब्द प्यारा लगता है. कहते हैं कि हमें तो पता नहीं लगता मगर इन्सान को हर कदम पर एक टैक्स देना पड़ता है. आपने पान खाया और मानिए कि अन्य रूप से एक टैक्स चुका दिया. यदि आप पान, सिगरेट के मामले में संयम रखते हैं तो मानो आप टैक्स से बचनेवाले नागरिक हैं.    यानी कहे का अर्थ यह हुआ कि सरकार की नजर में इन्सान कुछ नहीं, केवल कर चुकानेवाला जीव है. तो कर लेना और निर्माण करना वह एक ही हरकत की दो तरफें हैं. एक ही कागज के दो पेज हैं. सिर्फ फर्क तरीकों का है.

महानता तब होती है जब निर्माण करने की घोषणा करते हैं तो कर को ठोकर मारकर. यह महानता देशमुखजी नहीं रखते. रखें भी कैसे? घर से लगाने को उनके पास क्या होगा? वह तो साफ जनता से कहते हैं- सौदा नगद है, इस हाथ दे, उस हाथ ले. 

वे निर्माण की बात करते हैं, यानी ज्यादा कर की सोच लेते हैं. निर्माण से जनता को फायदा! फायदे से कर! कर से निर्माण- वगैरह-वगैरह! वे जब नगर निर्माण की डोरियां अपने हाथ में लेंगे तो कर लगाने वाली डोरी को मजबूत नहीं करेंगे.

(रचनाकाल - 1950 का दशक)

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