शिवसेना की किस्मत किस तरह से बदली, हरीश गुप्ता का ब्लॉग
By हरीश गुप्ता | Published: June 24, 2021 03:16 PM2021-06-24T15:16:39+5:302021-06-24T15:18:12+5:30
31 मार्च 2018 को साल खत्म होने तक शिवसेना को उसके खाते में महज 1.67 करोड़ रुपए चंदे के रूप में मिले. मुंबई के कॉर्पोरेट घरानों ने महज 5.95 लाख रुपए का योगदान देकर शिवसेना को बड़ा झटका दिया.
शिवसेना का समय इतना अच्छा कभी नहीं रहा. उद्धव ठाकरे के पार्टी प्रमुख के रूप में पदभार संभालने के बाद से ही पार्टी की किस्मत बदलने लगी थी.
हालांकि उद्धव के सामने अपनी सत्ता को पुनस्र्थापित करने और अपने दिवंगत पिता बाल ठाकरे की छाया से बाहर आने की एक बड़ी चुनौती थी, जिनकी 2012 में मृत्यु हो गई थी. लेकिन उनका विनम्र स्वभाव उनकी ताकत बन गया. उनके नजदीकी लोगों का कहना है कि शिवसेना को 2014 में महाराष्ट्र में भाजपा की प्रधानता माननी पड़ी और वे कभी भी इसको स्वीकार नहीं कर सके.
लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं था और शिवसेना को भाजपा से दोयम दर्जा स्वीकार करना पड़ा. 2017-18 के दौरान शिवसेना ने सबसे खराब स्थिति देखी, जब दिल्ली और महाराष्ट्र में सत्ता में होने के बावजूद, पार्टी की हालत खराब हो गई. उसे अपने सांसदों से पार्टी को चलाने के लिए चंदा मांगने के लिए कहना पड़ा.
31 मार्च 2018 को साल खत्म होने तक शिवसेना को उसके खाते में महज 1.67 करोड़ रुपए चंदे के रूप में मिले. मुंबई के कॉर्पोरेट घरानों ने महज 5.95 लाख रुपए का योगदान देकर शिवसेना को बड़ा झटका दिया. बाकी पैसा सांसदों, ट्रेड यूनियनों और अन्य कार्यकर्ताओं व समर्थकों से आया. सूत्रों का कहना है कि यह उद्धव के जीवन का टर्निग प्वाइंट था.
हालांकि शिवसेना को 2015-16 में एक ही औद्योगिक घराने से 85 करोड़ रुपए मिले थे. अगर वह सिंगल डोज बूस्टर नहीं आया होता, तो शिवसेना के खजाने में वर्ष 2015-16 में मात्र 1.62 करोड़ रुपए आए होते. इसलिए शिवसेना ने मार्च 2018 के बाद ही स्पष्ट संकेत देना शुरू कर दिया था कि वह मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार हो सकती है.
भाजपा के साथ संबंध बने रहे लेकिन शिवसेना के राजनीतिक रुख में इस बदलाव ने उसकी किस्मत को बड़े पैमाने पर बदल दिया. शिवसेना ने एक तरह का इतिहास रचा जब उसने 2018-19 के दौरान एक ही वर्ष में 130.63 करोड़ रुपए जुटाए. यह एक तरह से चौंकाने वाला था कि 2017-18 में सिर्फ 1.67 करोड़ रुपए हासिल करने वाली पार्टी ने अगले साल 78 गुना राशि एकत्र की.
शिवसेना ने शीर्ष कॉर्पोरेट्स और देश की वाणिज्यिक राजधानी में सभी महत्वपूर्ण लोगों के बीच यह प्रचार करके भारी चंदा जुटाया कि वह दिन दूर नहीं जब वे फिर से राज्य पर शासन करेंगे. पैसा उन बिल्डरों और व्यापारिक घरानों से भी आया, जिन्होंने इतने सालों में शिवसेना की तरफ देखा तक नहीं था.
यह प्रवाह 2019-20 के दौरान भी बड़े पैमाने पर जारी रहा और यहां तक कि भाजपा के करीबी कुछ बिल्डरों ने भी शिवसेना को काफी पैसा दिया, जिन्होंने अतीत में इसे छोड़ दिया था. उद्धव ठाकरे ने अंतत: सफलता हासिल करते हुए 31 मार्च, 2020 तक 62.85 करोड़ रुपए जुटा लिए. लोगों में यह जानने की उत्कंठा है कि पार्टी ने 31 मार्च, 2021 तक कितना पैसा इकट्ठा किया क्योंकि शिवसेना के हाथों में बागडोर वापस आ गई है. वे दिन गए जब नारायण राणो जैसे लोगों को बाल ठाकरे मुख्यमंत्री बनाया करते थे.
एमपी हाउस में नहीं जा रहे सिंधिया
लगभग एक साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हुए और राज्यसभा के लिए चुने गए. वे भाजपा में राजपरिवार की श्रृंखला में छठे हैं जो सांसद हैं. मणिपुर के नाममात्र के राजा लीशेम्बा सनाजाओबा (2020) और डूंगरपुर के भूतपूर्व शाही परिवार के हर्षवर्धन सिंह (2016) को भाजपा ने आमंत्रित करके राज्यसभा का सदस्य बनाया.
दोनों ने इसके लिए खुद नहीं कहा था. लेकिन ग्वालियर के रॉयल के साथ मामला इतना आसान नहीं है. वे सरकार द्वारा सांसद के रूप में आवंटित लोधी एस्टेट हाउस में नहीं जा रहे हैं और लुटियंस जोन के बाहर आनंद लोक में अपने किराए के आवास में रह रहे हैं. उनके समर्थकों का कहना है कि सिंधिया भाजपा के अगले कदम का धैर्यपूर्वक इंतजार कर रहे हैं जब मंत्रिमंडल का विस्तार और फेरबदल किया जाएगा. जाहिर है, सिंधिया 2018 में पार्टी की हार के बाद मध्य प्रदेश को भाजपा को उपहार में देने के बदले मंत्रलय में कैबिनेट पद की उम्मीद कर रहे हैं.
राज्यों का बंटवारा फिर विचाराधीन
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही राज्य को फिलहाल तीन हिस्सों में बांटने के कदम को रोकने में कामयाब हो गए हों लेकिन पश्चिम बंगाल का विभाजन फिर से विचाराधीन है क्योंकि नए आइकन सौमित्र खान सहित भाजपा सांसद पश्चिम बंगाल से उत्तर बंगाल को अलग करके राज्य या केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं.
इस कदम का उद्देश्य भाजपा की अपमानजनक हार का बदला लेना और ममता बनर्जी को वश में करना है. फेरबदल में नए राज्य मंत्री के तौर पर खान का नाम चर्चा में है. इसी तरह, महाराष्ट्र में मराठवाड़ा को अलग राज्य बनाने से संबंधित एक पुरानी फाइल की धूल झाड़ी जा रही है. किसी के पास इसका कोई सुराग नहीं है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है.