जलवायु परिवर्तन के आपातकाल का अहसास कराती आपदाएं, बादल फटने, बाढ़, भूस्खलन, जलभराव, सड़कों के धंसने की घटनाएं
By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: September 8, 2025 05:19 IST2025-09-08T05:19:43+5:302025-09-08T05:19:43+5:30
आखिर मौसमी घटनाओं में अचानक इतनी तीव्रता कहां से आ गई है? स्थितियां जलवायु से जुड़े आपातकाल जैसी हैं, जिन्हें वैज्ञानिक और विश्लेषक एक्स्ट्रीम वेदर कंडीशंस (मौसमी परिघटनाओं का अतिशय) कहकर पुकार रहे हैं.

file photo
इस समय पूरा देश मानसूनी बारिश का आनंद उठाने से ज्यादा उसका प्रकोप झेल रहा है. खासकर उत्तर और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में एक ही दिन में अतिशय वृष्टि और लंबी अवधि वाली वर्षा का जो पैटर्न स्थापित हुआ है, उससे हालात आपदा जैसे बन गए हैं. बादल फटने, बाढ़, भूस्खलन, शहरों में जलभराव, सड़कों के धंसने और उनकी टूट-फूट की घटनाएं इतने बड़े पैमाने पर हुई हैं कि याद नहीं पड़ता कि ऐसे दृश्य हाल के दशकों में पहले कभी देखे गए थे. कहा जा रहा है कि मानसून सीजन का यह पूरा आखिरी महीना यानी सितंबर भारी वर्षा का सामना करते हुए बीत सकता है.
आखिर मौसमी घटनाओं में अचानक इतनी तीव्रता कहां से आ गई है? स्थितियां जलवायु से जुड़े आपातकाल जैसी हैं, जिन्हें वैज्ञानिक और विश्लेषक एक्स्ट्रीम वेदर कंडीशंस (मौसमी परिघटनाओं का अतिशय) कहकर पुकार रहे हैं. सवाल है कि क्या यह एक्स्ट्रीम वेदर अचानक पैदा हुआ है या इसके पीछे कोई दीर्घकालिक पैटर्न है?
अगर आंकड़े देखें तो कह सकते हैं कि मौसम जिस तरह के तेवर दिखा रहा है, वह सच में दुर्लभ है. पर मौसम का यह अतिशय या अतिवादी रुख पैदा किन वजहों से हुआ है? एक सामान्य वैज्ञानिक तर्क है कि लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन, लू (हीटवेव) और मानसून के पैटर्न में हो रहे तेज बदलावों ने पृथ्वी को गर्मा दिया है, जिससे ये एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट पैदा हो रहे हैं.
यह तर्क भी दिया जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन और एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स में सीधा संबंध है. बीते 75 वर्षों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि 1950 से 2015 के बीच मध्य भारत में एक दिन में 150 मिलीमीटर से अधिक वर्षा की घटनाएं 75 फीसदी तक बढ़ गई हैं. इसके अलावा, शुष्क मौसम वाली अवधि भी पहले से अधिक लंबी हो रही है.
ऐसा नहीं है कि पहले गर्मी नहीं पड़ती थी और भारी बारिश नहीं होती थी. पर अब फर्क यह है कि इन मौसमी बदलावों की तीव्रता (इंटेंसिटी) और बारम्बारता (फ्रीक्वेंसी), दोनों में तेज इजाफा हो गया है. पिछले डेढ़ दशक में तापमान में भी निरंतर बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. इन कारणों से एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स के मामलों में तेजी आ गई है.
यही नहीं, इन घटनाओं का सीधा संबंध ग्लोबल वॉर्मिंग से पाया गया है. देखा गया कि यदि तापमान में एक डिग्री की बढ़ोत्तरी होती है तो वायुमंडल में नमी और भाप को अपने भीतर समाए रखने की क्षमता सात प्रतिशत तक बढ़ जाती है. इस कारण बड़े-बड़े बादल बनते हैं, तो बिजली कड़कने और उनके अचानक फटने का सबब बनते हैं.
जहां तक ग्लोबल वॉर्मिंग की पैदावार का प्रश्न है, तो यह तथ्य अब हर कोई जानता है कि इसका सबसे बड़ा कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा है. वायुमंडल में ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड की मौजूदगी वातावरण में नमी बढ़ाती है जिससे मानसून और बारिश के पैटर्न प्रभावित होते हैं. मौसमों की बदलती चाल ऐसी कयामत बरपा रही है कि हर कोई हैरान है. ऐसा लग रहा है मानो पृथ्वी पर कोई प्राकृतिक या मौसमी आपातकाल लग गया है और उससे बचने का कोई रास्ता अब नहीं बचा है.