भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: रुपए की गिरावट के कारणों को दूर करें
By भरत झुनझुनवाला | Updated: September 1, 2019 07:09 IST2019-09-01T07:09:18+5:302019-09-01T07:09:18+5:30
जैसे-जैसे देश की कुशलता बढ़ती है अथवा उसकी प्रतिस्पर्धा करने की शक्ति बढ़ती है वैसे-वैसे उसकी मुद्रा ऊपर उठती है. प्रतिस्पर्धा शक्ति को निर्धारित करने में अभी तक बुनियादी संरचना का बहुत योगदान माना जाता था.

रुपए की गिरावट के कारणों को दूर करें
बीते साल अक्तूबर में रुपया लुढ़ककर 74 रुपए प्रति डॉलर के न्यूनतम स्तर पर आ गया था. इसके बाद कुछ समय के लिए सुधार हुआ और वर्तमान में यह पुन: 73 रुपए के पास लुढ़क गया है. विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में यह 75 रुपए प्रति डॉलर या उससे भी कम कीमत पर गिर सकता है.
किसी भी मुद्रा का मूल्य अंतत: उस देश की प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति से निर्धारित होता है. जैसे मान लीजिए किसी खिलौने के उत्पादन में भारत में लागत 73 रुपए पड़ती है. उसी खिलौने के उत्पादन में अमेरिका में एक डॉलर का खर्च आता है. ऐसे में एक भारतीय रुपए का मूल्य 73 रुपए प्रति डॉलर हो जाएगा. यदि हम उस खिलौने को 73 के स्थान पर 60 रुपए में उत्पादित करने लगें तो हमारी मुद्रा का मूल्य भी 73 से बढ़कर 60 रुपए प्रति डॉलर हो जाएगा.
जैसे-जैसे देश की कुशलता बढ़ती है अथवा उसकी प्रतिस्पर्धा करने की शक्ति बढ़ती है वैसे-वैसे उसकी मुद्रा ऊपर उठती है. प्रतिस्पर्धा शक्ति को निर्धारित करने में अभी तक बुनियादी संरचना का बहुत योगदान माना जाता था. अपने देश में बिजली, सड़क, टेलीफोन, हवाई अड्डे इत्यादि की व्यवस्था लचर होने से माल के आवागमन में अथवा सूचना के आदान-प्रदान में खर्च ज्यादा आता था जिससे हमारी उत्पादन लागत ज्यादा होती थी.
बीते पांच वर्षो में एनडीए सरकार ने बुनियादी संरचना में विशेष सुधार किए हैं. आज लगभग पूरे देश में बिजली का गुल होना समाप्तप्राय हो गया है, तमाम हाईवे बन गए हैं, हवाई यात्ना सुगम हो गई है इत्यादि. इसलिए हमारी प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति का निर्धारण अब बुनियादी संरचना के कारण नहीं होता है, ऐसा हम मान सकते हैं।
प्रतिस्पर्धा शक्ति के निर्धारित होने का दूसरा कारण संस्थाएं हैं जैसे न्याय की संस्था, पुलिस की संस्था एवं नौकरशाही की संस्था और संस्थाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार. अपने देश में यदि हमको माल सस्ता बनाना है तो उद्यमी को त्वरित न्याय, पुलिस से संरक्षण एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति देनी होगी. तभी हमारी प्रतिस्पर्धा शक्ति बढ़ेगी. यह दीर्घकालीन परंतु असली बात है.
वर्तमान समय में जो रुपए में गिरावट आ रही है इसका एक प्रमुख कारण तेल का बढ़ता आयात है. हमारी ऊर्जा की जरूरतें बढ़ रही हैं और तदनुसार हमें तेल काआयात अधिक करना पड़ रहा है. इस समस्या को और गहरा बना दिया है ईरान के विवाद ने. ईरान से तेल न खरीदने के कारण विश्व बाजार में तेल की उपलब्धता कम हुई है और तदनुसार तेल के मूल्यों में वृद्धि हो रही है.
इस समस्या का हल सार्वजनिक यातायात को बढ़ावा देना है. जैसे मेट्रो अथवा बस से यात्नी को गंतव्य स्थान पर ले जाने में प्रति व्यक्ति तेल की खपत कम होती है. निजी कार से जाने में तेल की खपत अधिक होती है. इसलिए यदि हमें रुपए की कीमत को उठाना है तो सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था में सुधार करना होगा. साथ-साथ हमें मैन्युफैक्चरिंग के स्थान पर सेवा क्षेत्न पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.
मैन्युफैक्चरिंग में ऊर्जा की खपत ज्यादा होती है, सेवा क्षेत्न में ऊर्जा की जरूरत कम पड़ती है. सेवा क्षेत्न के आधार पर यदि हम आर्थिक विकास हासिल करेंगे तो हमें तेल का आयात कम करना पड़ेगा और हमारा रुपया नहीं गिरेगा. ध्यान दें कि जब हम तेल का आयात अधिक करते हैं उसके लिए हमें डॉलर में पेमेंट अधिक मात्ना में करना होता है. अधिक मात्ना में डॉलर को अर्जित करने के लिए हमें निर्यात अधिक करने पड़ते हैं. निर्यात अधिक करने के दबाव में हमें अपना माल सस्ता बेचना पड़ता है जिसके कारण हमारा रु पया टूटता है.
रुपए के गिरने का एक अन्य कारण हमारे द्वारा मुक्त व्यापार को अपनाना है. जैसा ऊपर बताया गया है कि हमारे न्याय, पुलिस एवं नौकरशाही की संस्थाओं के भ्रष्टाचार के कारण अपने देश में माल के उत्पादन में लागत ज्यादा आती है. ऐसी स्थिति में यदि हम मुक्त व्यापार को अपनाते हैं तो दूसरे देशों से माल का आयात अधिक होता है क्योंकि वहां पर न्याय, पुलिस एवं नौकरशाही की स्थिति हमारी तुलना में उत्तम है.
वहां के उद्यमी को माल के उत्पादन में लागत कम आती है और वह अपने माल को हमारे देश में सस्ता बेच सकता है. इस परिस्थिति में हमारे सामने दो रास्ते खुले हैं. या तो हम अपनी न्याय, पुलिस एवं नौकरशाही की व्यवस्थाओं को सुधारें अथवा हम बाहर से आने वाले माल पर आयात कर बढ़ा दें. मान लीजिए किसी खिलौने की चीन में उत्पादन लागत 60 रुपए आती है जबकि भारत में 73 रुपए आती है.
ऐसे में हमारा माल चीन से पिटता है. हमारी उत्पादन लागत में यदि 13 रुपया न्याय, पुलिस एवं नौकरशाही का हिस्सा है तो इनके सुधार करने से हमारी उत्पादन लागत 60 रुपए हो जाएगी. तब हम चीन में उत्पादित उसी खिलौने से प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे. लेकिन वर्तमान में हमारी लागत ज्यादा है फिर भी हम चीन के माल को मुक्त रूप से अपने देश में प्रवेश करने दे रहे हैं इसलिए 60 रुपए में बना चीन का खिलौना अपने देश में प्रवेश कर रहा है, हमारे आयात बढ़ रहे हैं, हमारे निर्यात दबाव में हैं और हमारा रु पया टूट रहा है.
इस परिस्थिति में यदि हम अपनी संस्थाओं का सुधार नहीं कर सकते हैं तो हमें आयातित माल पर आयात कर बढ़ाने होंगे. जैसे 60 रुपए में बने चीन के खिलौने पर यदि हम 13 रुपए का आयात कर लगा दें तो चीन का माल अपने देश में 73 रुपए में पड़ेगा. तब भारतीय उद्यमी चीन के खिलौने के सामने खड़े हो सकेंगे.