इस साल मुंबई में मानसून की पहली ही बरसात में हाहाकार मच गया. बताया गया कि 107 साल बाद शहर में इतनी भारी वर्षा हुई, जिससे अनेक क्षेत्र जलमग्न हो गए. जब बिगड़ी परिस्थिति पर आवाज उठी तो स्पष्टीकरण यह दिया गया कि तैयारियां पूरी होने से पहले मानसून आ गया. आश्चर्यजनक है कि मई माह के दूसरे पखवाड़े में मानसून पूर्व बरसात आरंभ होती है, जो अधिक-कम हो सकती है.
इसलिए नालों की सफाई के लिए मई माह का पूरा समय लिया जाना व्यवस्था में खामी उजागर करता है. वैसे मुंबई महानगर उदाहरण मात्र के लिए बारिश से बिगड़ी स्थिति बयां करता है. जिसकी वजह देश का प्रमुख वाणिज्यिक स्थल के साथ राज्य की राजधानी होने से गतिविधियों का केंद्र होना प्रमुख कारण है. किंतु मुंबई के अलावा पुणे, नागपुर, नासिक और छत्रपति संभाजीनगर का भी बरसात के दौरान हाल देखा जाए तो वह समान ही रहता है. बड़े शहरों से आगे छोटे कस्बों का हाल और भी बुरा दिखता है, जिनकी कोई सुनवाई नहीं होती है. निचली बस्तियों में रहने वाले जान-माल का नुकसान उठाते रहते हैं.
बरसात के पानी को नियंत्रित करने के नाम पर स्थानीय निकायों की मानसून पूर्व तैयारी की औपचारिकता का असली चेहरा विधिवत-परंपरागत भ्रष्टाचार से जुड़ा है, जो दिल्ली-मुंबई से लेकर देश के हर शहर में दिखता है. वह नगर पालिकाओं से लेकर नगर परिषद, ग्राम पंचायतों तक फैले सफाई के ढकोसले की पोल खोलता है.
पिछले दिनों मानसून की आहट से पहले नाला सफाई कार्यों की जमीनी सच्चाई को मुंबई उपनगर के पालक मंत्री आशीष शेलार ने उजागर किया. उन्होंने जितनी बातों को सामने रखा, उतनी हकीकत की परतें किसी विपक्ष के नेता नहीं, बल्कि स्वयं सत्ता पक्ष के मंत्री ने खोलीं.
उन्होंने अपने सांताक्रूज-पश्चिम के निरीक्षण दौरे में कई जगहों पर नालों की सफाई का काम मात्र 10 प्रतिशत और कुछ स्थानों पर 30-50 प्रतिशत तक देखा. यानी मानसून पूर्व की तैयारी के प्रचार जितना काम कहीं नहीं दिखा. आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) ने वर्ष 2025-26 के बजट में ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ के लिए 5,545 करोड़ रुपए का प्रावधान किया. दूसरी ओर वर्ष 2024 में नालों की सफाई पर 249.27 करोड़ रुपए और वर्ष 2025 में 395 करोड़ रुपए खर्च हुए, मगर हालात नहीं बदले.
मुंबई में पानी की निकासी का महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि सारे नालों का पानी समुद्र में डाला जाता है. यदि उनकी समय पर सफाई नहीं हुई तो जलभराव की स्थिति स्वाभाविक है. यदि सफाई के लिए करोड़ों रुपए के ठेके दिए जा रहे हैं और वास्तविक रूप में नाले कचरे से भरे दिखते हैं तो इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि बीएमसी का बजट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है.
गत वर्ष मानसून के महीनों को याद किया जाए तो पुणे की अनेक सोसाइटियां पानी में डूबी थीं. वाहन तैरते बहे थे. कोल्हापुर में बाढ़ से स्थिति खराब थी. नागपुर और छत्रपति संभाजीनगर के अनेक क्षेत्र पानी से भर गए थे और वहां रहने वालों ने काफी दिक्कतें उठाई थीं. बरसात में नासिक हो या सोलापुर या अहिल्यानगर या फिर जलगांव, अकोला और अमरावती, सभी शहरों में निचली बस्तियां पानी के अनियंत्रित बहाव का शिकार बनती हैं, जिसका सीधा कारण जल निकासी के रास्तों का अवरुद्ध होना होता है.
सभी बड़े शहरों में नगर पालिकाएं नालों की साफ-सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए का बजट प्रावधान करती हैं और समय आने पर उनके आधार पर भुगतान करती हैं. मगर सारी कार्रवाई कागजों पर ही दिखाई देती है. बरसात से समस्या खड़ी होने पर विपक्ष के नेता सत्ताधारियों और अधिकारियों पर आरोप लगाते हैं, लेकिन सत्तांतरण पर स्थितियां जस की तस बनी रहती हैं. मुंबई समेत अनेक शहरों में बरसात बाद के हालात किसी वर्ष विशेष का चित्र नहीं बनते, बल्कि साल दर साल से चली आ रही समस्या का पुनर्स्मरण कराते हैं.
चूंकि कम वर्षा या मौसम बदलने के बाद स्थितियां बदल जाती हैं और आम आदमी अपनी राह खुद बना लेता है, इसलिए कुछ माह बाद यह गंभीर विषय नए वर्ष तक के लिए ठंडे बस्ते में चला जाता है. इस वर्ष राज्य के अनेक स्थानीय निकायों के चुनाव होने जा रहे हैं, इस कारण राजनेताओं की बयानबाजी के लिए यह अच्छा विषय बन चुका है.
वृहद परिप्रेक्ष्य में मुंबई ही नहीं, दिल्ली में नालों की सफाई में 80 करोड़ की हेराफेरी का आरोप लगने पर जांच भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते (एसीबी) को सौंपी गई है. जयपुर में भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं. उत्तर प्रदेश के लखनऊ समेत प्रदेश के अन्य जिलों में नाले-नालियों की सफाई में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाने के लिए ड्रोन कैमरों का उपयोग किया जाएगा. वैसे मुंबई में भी नालों की सफाई के दौरान वीडियो रिकॉर्डिंग के निर्देश थे. चिंताजनक बात यह है कि कोई सरकार अपनी तिजोरी को साफ करने वालों पर लगाम क्यों नहीं कस पा रही है?
महाराष्ट्र के शहर नागपुर में नालों की सफाई के लिए 50 करोड़ रुपए, पुणे में 26.5 करोड़ रुपए, नासिक शहर में 15.4 करोड़ रुपए, जलगांव में दो करोड़ रुपए से अधिक राशि का प्रावधान किया गया है. अकोला- अमरावती जैसे शहर में भी नाला सफाई में 50-50 लाख रुपए से अधिक खर्च हो जाते हैं. मगर बारिश के दौरान परिस्थितियां सभी स्थानों पर एक समान ही रहती हैं.
यह स्पष्ट करती है कि नालों की सफाई सतत भ्रष्टाचार की शिकार है, जिस पर कार्रवाई इसलिए भी नहीं होती है क्योंकि उससे जुड़े ठेकों के तार काफी ऊपर तक जुड़े रहते हैं. मुंबई का शोर अधिक होने के कारण अदालत से लेकर सरकार तक सोच-विचार के लिए मजबूर हैं. बाकी शहरों के बारे कौन और कब ध्यान देगा, जहां नालों की सफाई का मतलब ही हाथ की सफाई है, जो केंद्र से लेकर राज्य सरकारों को न दिखता है और न देखने का कोई प्रयास किया जाता है.