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पंडितराज जगन्नाथ और मुगल शहजादी लवंगी के प्रेम की अनोखी दास्तां को बयां करता उपन्यास 'प्रेम लहरी'

By धीरज पाल | Updated: September 27, 2019 16:59 IST

लेखक त्रिलोक नाथ पांडेय की लिखी पहली औपन्यासिक किताब 'प्रेम लहरी' किसी शाहजादी की किसी ब्राह्मण आचार्य और कवि से यह अकेली प्रेम कहानी है, जो दुरभिसन्धियों (षड्यंत्र) के बीच आकार लेती है। एक ऐसी प्रेम कहानी जो पूरे मुगल का सम्राज्य का तहस-नहस कर देती है। एक ऐसी प्रेम कहानी जिसे लेकर बनारस में आज भी लोग आहें भरते हैं: काश, दाराशिकोह हिंदुस्तान का बादशाह बना होता!

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किताबः 'प्रेम लहरी' (उपन्यास)लेखकः त्रिलोक नाथ पांडेयप्रकाशकः राजकमल पेपरबैक्सपेजः 180मूल्यः 175 रुपये

बनारस की गलियों में, गंगा के किनारों और लहरों में आज भी पंडितराज जगन्नाथ के करुण स्तुतिगीत गूंजते हैं। जगन्नाथ पर लवंगी के फिदा होने की अदा आज भी प्रेमियों के दिल की हूक उठाती है।

लेखक त्रिलोक नाथ पांडेय द्वारा लिखा उपन्यास 'प्रेम लहरी' ब्राह्मण आचार्य और शाहजहां के राजकवि पंडितराज जगन्नाथ और मुगल शासक शाहजहां की पत्नी मुमताज महल की 14वीं संतान शहजादी गौहरआरा उर्फ लवंगी के प्रेम की अनोखी दास्ता बयां करता है। मध्यकालीन इतिहास में हिंदू-मुस्लिम प्रेम-अख्यान की ऐसी इकलौती प्रेम कहानी है, जो दुरभिसन्धियों (षड्यंत्र) के बीच आकार लेती है। इस प्रेम कहानी की चर्चा इतिहास में नहीं है और न ही इसका वर्णन किसी इतिहास पुस्तक में मिलता है। 

उपन्यास के बारे में

'प्रेमलहरी' इतिहास के बड़े चौखटे में कल्पना और जनश्रुतियों के धागों से बुनी हुई प्रेमकथा है। 'गंगालहरी' खुद पंडितराज जगन्नाथ का अद्भुत संस्कृत काव्य है जिसमें कहीं-कहीं खुद उनके प्रेम की व्यंजना निहित है। इस उपन्यास में यह हुआ है। मुगल शाहज़ादियों को न शादी की इजाज़त थी न प्रेम करने की। ऐसे में चोरी-छुपे प्रेम-सुख तलाश करना उनकी मजबूरी रही होगी। इस उपन्यास में ऐसे कुछ विवरण आए हैं। 

क्यों पढ़नी चाहिए किताब

उपन्यास कई कड़ी दर कड़ी सहेजी गई है। 'प्रेमलहरी' किताब में पंडितराज जगन्नाथ और मुगल शहजादी गौहरआरा उर्फ लवंगी की प्रेम कहानी ही नहीं बल्कि मुगल शासन काल की संस्कृति का अनोखा वर्णन किया गया है। मुगल शासन की परंपरा, संस्कृति और उनकी शैली का वर्णन मिलता है। मुगल शासन में हिंदू-मुस्लिम धर्म के बीच किस तरह से प्रेम पनपता है, जिसे बेहतरीन ढंग से दर्शाया गया है। किताब में मुहब्बत की मिशाल बने मुमताज महल और शाहजहां के बीच प्यार की दास्तां तो है ही साथ में उनके बेटे दाराशिकोह का हिंदू लड़की के साथ प्रेम और उसके बाद विवाह का भी जिक्र किया गया है। 

 इतिहास खुद को दुहराने के लिए तैयार बैठा था। शाहजहां ने अपने भाइयों और भतीजों का वध करके राजसत्ता हासिल की थी। अब उनके बेटों की बारी थी  

किताब में मुगल शासन काल में उत्तराधिकारी की लड़ाई दिखाई गई है। जिस तरह से बादशाह शाहजहां ने अपने भाइयों और भतीजों का वध करके राजसत्ता हासिल की थी। उसके पीछे की कहानियों को दर्शाया गया है।  वहीं, शाहजहां के पुत्र दाराशिकोह का हिंदू धर्म के प्रति लगाव को किताब में बताया गया है। तभी, कहा जाता है कि कि आज भी बनारस के लोग मानते हैं...

बनारस में आज भी लोग आहें भरते हैं: काश, दाराशिकोह हिंदुस्तान का बादशाह बना होता!'

नायक-नायिका की कहानी

पंडितराज जगन्नाथ और मुगल शहजादी गौहरआरा उर्फ लवंगी की प्रेम कहानी को नायक-नायिका की तरह दिखाया गया है। जगन्नाथ मुगल बादशाह के दरबार में राज कवि थे। जगन्नाथ और शाहजहां की पत्नी बेगम मुमताज महल की 14वीं संतान लवंगी के बीच प्रेम हो जाता है। लवंगी से विवाह करने के लिए जगन्नाथ को इंतहान से गुजरना पड़ता है। दो धर्मों के बीच प्रेम किस तरह रुख अपनाता है और दोनों के मिलन पर किस तरह से समाज उनपर टूट पड़ता है, यह सब किताब में दर्शाया गया है। इतना ही नहीं दोनों का प्रेम मुगल सम्राज्य को उखाड़ फेंकता है। 

यह उपन्यास इतिहास की एक फैंटेसी है, जिसमें किंवदन्तियों के आधार पर मध्यकालीन सत्ता-संरचना के बीच दो धर्मों और दो वर्गों के बीच न पाटी जा सकनेवाली खाली जगह में प्रेम का फूल खिलते दिखाया गया है।

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