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ब्लॉग: रक्तदान : ताकि रक्त के अभाव में न जाए किसी की जान

By योगेश कुमार गोयल | Updated: June 14, 2024 12:41 IST

जीवनदायी रक्त की महत्ता के मद्देनजर लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 14 जून को एक खास विषय के साथ ‘विश्व रक्तदाता दिवस’ मनाया जाता है।

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ठळक मुद्देरक्त के अभाव में तब असमय होने वाली मौतों का आंकड़ा बहुत ज्यादा था किंतु अब स्थिति बिल्कुल अलग हैविडम्बना ही है कि रक्तदान के महत्व को जानते-समझते हुए भी रक्त के अभाव में दुनियाभर में आज भी प्रतिवर्ष लाखों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैंभारत में भी हर साल रक्त की कमी के कारण बड़ी संख्या में मौतें होती हैं

जीवनदायी रक्त की महत्ता के मद्देनजर लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 14 जून को एक खास विषय के साथ ‘विश्व रक्तदाता दिवस’ मनाया जाता है।दरअसल समय पर रक्त नहीं मिल पाने के कारण दुनियाभर में लाखों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं।

इसीलिए यह दिवस मनाने की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेडक्रॉस तथा रेड क्रिसेंट सोसायटीज द्वारा कार्ल लैंडस्टीनर के जन्मदिवस पर 14 जून 2004 को पहली बार रक्तदाता दिवस मनाने के साथ हुई थी।

14 जून 1868 को जन्मे कार्ल लैंडस्टीनर ने रक्त संबंधी बेहद महत्वपूर्ण खोजें की थीं, जिनके लिए उन्हें चिकित्सा का नोबल पुरस्कार भी मिला था। इस वर्ष विश्व रक्तदाता दिवस की 20वीं वर्षगांठ है और इस विशेष अवसर के लिए ‘दान का जश्न मनाने के 20 साल : धन्यवाद रक्तदाता!’ थीम निर्धारित की गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह थीम निर्धारित करने का उद्देश्य यही है कि उन लाखों स्वैच्छिक रक्तदाताओं को धन्यवाद दिया जाए और उनका सम्मान किया जाए, जिन्होंने दुनियाभर में लाखों लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण में योगदान दिया है।

एक समय था, जब किसी को पता ही नहीं था कि किसी दूसरे व्यक्ति का रक्त चढ़ाकर किसी मरीज का जीवन बचाया जा सकता है। रक्त के अभाव में तब असमय होने वाली मौतों का आंकड़ा बहुत ज्यादा था किंतु अब स्थिति बिल्कुल अलग है। हालांकि फिर भी विडम्बना ही है कि रक्तदान के महत्व को जानते-समझते हुए भी रक्त के अभाव में दुनियाभर में आज भी प्रतिवर्ष लाखों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। भारत में भी हर साल रक्त की कमी के कारण बड़ी संख्या में मौतें होती हैं।

देश में प्रतिवर्ष करीब डेढ़ करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है लेकिन करीब चालीस लाख यूनिट रक्त की कमी रह जाती है। देश की कुल आबादी के लिहाज से देखें और यह मानकर चलें कि एक व्यक्ति साल में केवल एक बार ही रक्तदान करता है तो भी इसका अर्थ है कि आधा फीसदी से भी कम लोग ही रक्तदान करते हैं।

हालांकि एड्स, मलेरिया, हेपेटाइटिस, अनियंत्रित मधुमेह, किडनी संबंधी रोग, उच्च या निम्न रक्तचाप, टीबी, डिप्थीरिया, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, एलर्जी, पीलिया जैसी बीमारी के मरीजों को रक्तदान से बचना चाहिए। माहवारी के दौरान या गर्भवती अथवा स्तनपान कराने वाली महिलाएं भी रक्तदान करने से बचें।

यदि किसी को टाइफाइड हुआ हो और ठीक हुए महीना भर ही हुआ हो, चंद दिनों पहले गर्भपात हुआ हो, तीन साल के भीतर मलेरिया हुआ हो, पिछले छह महीनों में किसी बीमारी से बचने के लिए कोई वैक्सीन लगवाई हो, आयु 18 से कम या 60 साल से ज्यादा हो तो भी रक्तदान न करें।

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