ब्लॉग: स्वतंत्रता के साथ ही आती है जिम्मेदारी

By गिरीश्वर मिश्र | Published: August 15, 2023 09:10 AM2023-08-15T09:10:04+5:302023-08-15T09:15:20+5:30

‘स्वतंत्रता’ शब्द सुन कर अक्सर मन में सबसे पहले बंधनों से मुक्ति का भाव आता है। इस स्थिति में किसी तरह के बंधन नहीं रहते और प्राणी को स्वाधीनता का अहसास होता है।

Blog: With Freedom Comes Responsibility | ब्लॉग: स्वतंत्रता के साथ ही आती है जिम्मेदारी

फाइल फोटो

Highlights‘स्वतंत्रता’ शब्द सुन कर अक्सर मन में सबसे पहले बंधनों से मुक्ति का भाव आता है स्वतंत्रता निष्क्रिय शून्यता की स्थिति नहीं है, पर स्वतंत्रता स्वच्छंदता भी नहीं हैसवाल उठते है कि यह स्वतंत्रता किससे चाहिए? और यह भी कि स्वतंत्रता किसलिए चाहिए ?

‘स्वतंत्रता’ शब्द सुन कर अक्सर मन में सबसे पहले बंधनों से मुक्ति का भाव आता है। इस स्थिति में किसी तरह के बंधन नहीं रहते और प्राणी को स्वाधीनता का अहसास होता है। स्वतंत्रता निष्क्रिय शून्यता की स्थिति नहीं है, पर स्वतंत्रता स्वच्छंदता भी नहीं है। वह दिशाहीन नहीं हो सकती। इस बारे में सोचते हुए ये सवाल उठते हैं कि स्वतंत्रता किससे चाहिए? और यह भी कि स्वतंत्रता किसलिए चाहिए ? सच कहें तो स्वतंत्रता या स्वतंत्र (बने) रहना एक क्रिया है, एक जिम्मेदार क्रिया क्योंकि इसमें किसी और पर निर्भरता नहीं रहती। स्वतंत्र होकर संकल्प और आचरण के केंद्र हम स्वयं हो जाते हैं।

स्वतंत्रता बनी रहे और जिस उद्देश्य के लिए है वह पूरा होता रहे ऐसा अपने आप नहीं हो सकता। इसके लिए प्रतिबद्धता और दिशाबोध के साथ जरूरी सक्रियता भी होनी चाहिए। थोड़ी गहराई में जाएं तो यही लगेगा कि स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ है कि अपने कार्य का दायित्व खुद अपने ऊपर लेना, दूसरे के जिम्मे न सौंपना और जिस देश-काल में मौजूद हैं उसके प्रति अपने दायित्वों को स्वीकार करना।

स्वतंत्रता पाने के लिए भारतीय समाज ने बड़ी कीमत अदा की थी लेकिन पिछले छिहत्तर सालों में हमारी सोच-समझ का नजरिया बदला है। औपनिवेशिक प्रभाव के चलते देश की स्वतंत्रता को लेकर अपने दायित्व के बारे में कुछ भ्रम फैले हैं। हम अधिकार की भाषा ज्यादा जानते हैं। संविधान में नागरिकों को दी गई स्वतंत्रताओं को याद रखते हैं पर कर्तव्य भूलते जा रहे हैं। देश हमें क्या दे यह तो याद रहता है पर हम देश को क्या दें यह भूलते जा रहे हैं।

वर्तमान काल भारतीय समाज के लिए चुनौतियों से भरा हुआ है और पथ-प्रदर्शन के पारंपरिक स्रोत सूख रहे हैं। विचार और कर्म के प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। नैतिकता और स्वाभाविक कर्तव्य को छोड़ लोग स्वार्थ, लोभ और मुफ्तखोरी में प्रवृत्त हो रहे हैं। यह परिस्थिति निजी जीवन और समाज की प्रगतिकामी गतिविधियों को बाधित कर रही है। इन सबके चलते नकारात्मकता बढ़ रही है।

हम स्वतंत्रता का सतही अर्थ लगा कर अपने लिए छूट पाने के अवसर बनाने लगे। लोग अपने हित के लिए रक्षा कवच के रूप में स्वतंत्रता का उपयोग करने लगे। इन सभी प्रवृत्तियों के पीछे उस भौतिकवादी सोच की भी बड़ी भूमिका है, जो भ्रामक और अदूरदर्शी है और जो हमारे अस्तित्व के बड़े सच को झुठलाने वाली है। यहां पर यह याद रखना जरूरी है कि भारतीय चिंतन भौतिक अस्तित्व का विरोध नहीं करता पर उसे ही सर्वस्व नहीं मानता।

आध्यात्मिकता गुणवत्तापूर्ण भौतिक जीवन का सबल आधार होती है क्योंकि उसे अपने सद्भाव और सौहार्द के साथ हम जी सकेंगे। इस प्रसंग में देश के श्रेष्ठतम प्रतीक के रूप स्वीकृत भारत के झंडे को स्मरण करना प्रासंगिक होगा जो देश की प्रतिबद्धता को रूपायित करता है। इसमें सबसे ऊपर की पट्टी केसरिया रंग की है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाती है। बीच की धवल श्वेत पट्टी में सुंदर धर्म-चक्र बना है। यह शांति और सत्य की अभिव्यक्ति है। नीचे की हरे रंग की पट्टी उर्वरता, वृद्धि और पवित्रता को व्यक्त करती है।

गौर करने की बात है कि शांति और सत्य मध्य में है और उसके केंद्र में धर्म चक्र है। इसी पर शेष टिका हुआ है। बल की प्रतीति कराने वाली शक्ति हो या साहस या फिर समृद्धि, उत्पादकता और पवित्रता हो सबके लिए धर्म ही प्राथमिक महत्व का है। भारतीय समाज का स्वभाव और उसकी जीवन-दृष्टि मूलतः धर्म से अनुप्राणित है। उसमें समष्टि चैतन्य के अभिनंदन का भाव निहित है।

इस विश्व दृष्टि में मनुष्य और प्रकृति ओतप्रोत हैं। मनुष्य होने का अर्थ ही है आत्म-विस्तार। हमें नहीं भूलना चाहिए कि जीवन का स्पंदन एक दूसरे से जुड़ कर ही संभव होता है क्योंकि हम जिस सृष्टि के अभिन्न अंग हैं उसमें कुछ भी अकेला, निरपेक्ष और पूर्णतः स्वतंत्र नहीं है।

संसदीय लोकतंत्र की राह पर चलते हुए देश ने कई पड़ाव पार किए हैं। अब तक अनेक विचारधाराओं के दलों को सरकार बनाने का अवसर मिला है और अभिजात्य वर्ग का वर्चस्व टूटता दिख रहा है। समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को राजनीति में भाग लेने का अवसर मिल रहा है।

इनके बावजूद धन-बल और बाहु-बल की भूमिका बढ़ती गई है, साथ ही आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की बढ़ती राजनैतिक पैठ नीति-निर्माण और कार्यान्वयन में जनहित को हाशिए पर धकेल देती है। आशा की किरण भारत की नई पीढ़ी है। युवतर हो रहे भारत के युवक-युवतियों में कई तरह के विचार हिलोरें लेते रहते हैं। वे अक्सर उत्साह और प्रेरणा से सराबोर रहते हैं। जरूरी है कि उनके लिए अच्छी शिक्षा की व्यवस्था हो जहां वे जीवन मूल्यों को ग्रहण कर सकें। वहां उत्साहवर्धक अनुभव और विमर्श का अवसर पैदा कर भारत का भविष्य संवारा जा सकता है।

Web Title: Blog: With Freedom Comes Responsibility

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे